सांकेतिक चित्र
मूलत: 13 अखाड़ें हैं। हाल ही में किन्नर अखाड़े को जूना अखाड़ा में शामिल कर लिया गया है। उक्त तेरह अखाड़ों के अंतर्गत कई उप-अखाड़े माने गए हैं। शैव पंथियों के 7, वैष्णव पंथियों के 3 और उदासिन पंथियों के 3 अखाड़े हैं। तेरह अखाड़ों में से जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है। इसके अलावा अग्नि अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा एवं अटल अखाड़ा आदि सभी शैव से संबंधित है। वैष्णवों में वैरागी, उदासीन, रामादंन और निर्मल आदि अखाड़ा है। बड़ा उदासी संप्रदाय अखाड़ा का संक्षिप्त परिचय।
उदासीन का शाब्दिक अर्थ है उत्+आसीन= उत् = ऊंचा उठा हुआ अर्थात ब्रह्रा में आसीन = स्थित, समाधिस्थ। यहां प्रस्तुत है छोटे उदासीन अखाड़ें के महंतों की जानकारी। उदासीन अखाड़ा नाम से छोटा और बड़ा उदासीन अखाड़ा प्रचलित है।
उदासीन संप्रदाय के तीन अखाड़े :
1. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)।
1. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)।
3. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)।
1. बड़ा उदासी संप्रदाय सिख-साधुओं का एक सम्प्रदाय है जिसकी कुछ शिक्षाएं सिख पंथ से लीं गयीं हैं। इसके संस्थापक गुरु नानक के पुत्र श्रीचन्द (1494–1643) थे।
2. सनातन धर्म को मानने वाले इन संप्रदाय के लोग पंचतत्व की पूजा करते हैं और गुरु हरगोविंद के पुत्र बाबा गुरांदित्ता ने इस सम्प्रदाय के संगठन एवं विकास में भरपूर सहयोग दिया।
3. सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देवी जी अपने चार साथी मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। ये चारों ओर घूमकर उपदेश देने लगे।
4. कहते हैं कि 1500 से 1524 तक इन्होंने 5 यात्रा चक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी में "उदासियां" कहा जाता है।
5. उदासीन सम्प्रदाय के चारों धूनों और पांचों बख्शीशों- मींहा साहेब जी, भगत भगवान जी, दीवाना जी, अजीतमल्ल सोढ़ी जी, बख्तमल जीद्ध एवं दस उप बख्शीशों के उदासीन महात्माओं ने सम्पूर्ण भारत में धर्म और संस्कृति के प्रचार केन्द्रों की स्थापना की। इसी परम्परा में संत निर्वाण प्रियतमदास जी भी हुए हैं जिनका जन्म 1777 को अंकोला जिले के अमरावती स्थान आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था। योगीराज बाबा बनखण्डी साहेब जी महाराज धूनीवन नेपाल भी हुए।
6. बनखण्डी निर्वाणदेव जी ने हरिद्वार कुम्भ मेले के शुभ अवसर पर समस्त उदासीन भेष को एकत्रित किया और विक्रम संवत 1825 माघ शुक्ल पंचमी को गंगा तट राजघाट, कनखल में श्री पंचायती अखाड़ा उदासीन की स्थापना की। आचार्य श्रीचन्द्रदेव जी के बाद उदासीन सम्प्रदाय को निर्वाणजी ने कार्य करने की शक्ति दी। इस संप्रदाय ने देश और समाज पर आए संकटों के समाधान में हमेशा अपना योगदान दिया।