पाटीदार अमानत आंदोलत के नेता हार्दिक पटेल ने आखिरकार कांग्रेस का साथ देने का फैसला कर ही लिया है। हालांकि कांग्रेस को राज्य में पाटीदारों का कितना समर्थन मिलेगा इस बात का पता तो 18 नवंबर को चुनाव परिणाम आने पर ही चलेगा।
बहरहाल गुजरात की 180 सीटों में से 80 को प्रभावित करने वाले पाटीदारों में फूट पड़ती दिखाई दे रही है। भाजपा ने हार्दिक के कई धुरंधरों को अपने साथ मिलाकर उन्हें कमजोर करने का भरसक प्रयास किया और अपने हाईटेक प्रचार के जरिए भाजपा को पटेलों के किले में सेंध लगाने में सफलता भी मिली।
आरक्षण की मांग को लेकर सड़क पर आंदोलन करने वाले हार्दिक ने जिस तरह कांग्रेस से समझौता किया उसने भी उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। पटेल पहले ही कड़वा और लेऊबा पाटीदारों में बंटे हुए थे लेकिन अब तो भाजपा ने हार्दिक के कुछ और खास लोगों को पार्टी में शामिल कर लिया है।
हार्दिक को भले ही कांग्रेस का फॉर्मूला पसंद आ गया हो पर कांग्रेस जिस तरह से सर्वे कराने की बात कहकर मामले से पल्ला झाड़ा है उसने भी पाटीदारों के मन में सवाल खड़े किए होंगे। वैसे भी संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं है। भाजपा ने भी लगे हाथों मौके को भुनाते हुए कह दिया कि मूर्खों ने मूर्खों का फार्मूला स्वीकारा।
कांग्रेस को हार्दिक के समर्थन में भाजपा विरोध ज्यादा नजर आ रहा है। जिस अंदाज में हार्दिक ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाजपा का विरोध करने के संकेत दिए, उसका भी गुजरात की राजनीति पर असर पड़ेगा।
कांग्रेस ने यहां जिस आक्रामक अंदाज में अपना प्रचार अभियान शुरू किया था वह अब नदारद सी दिखती है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में टिकट वितरण के बाद से नाराजी है, हालांकि भाजपा में विरोध ज्यादा है लेकिन उनका डेमेज कंट्रोल सिस्टम भी कांग्रेस की अपेक्षा ज्यादा मजबूत है। अब देखना यह है कि कांग्रेस और हार्दिक पटेल की जुगलबंदी गुजरात चुनाव में क्या असर दिखाती है? क्या यह जोड़ी पाटीदारों में भाजपा के प्रति विश्वास को तोड़ पाएगी या फिर पाटीदार आंदोलन 'घर की लड़ाई' ही कहलाएगी।