Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

विश्व आदिवासी दिवस: भारत के सबसे पुराने आदिवासियों को जानें

हमें फॉलो करें विश्व आदिवासी दिवस: भारत के सबसे पुराने आदिवासियों को जानें
World Tribal Day : हर साल 9 अगस्त को 'विश्व जनजातीय दिवस' मनाया जाता है। 'विश्व जनजातीय दिवस' अर्थात् विश्व की सभी जनजातियों का दिवस। जनजाति को आदिवासी भी कहते हैं। आदिवासी अर्थात् जो प्रारंभ से यहां रहता आया है। 
 
आइए जानते हैं यहां भारतीय आदिवासियों की 10 रोचक बातें...
 
1. आदि का अर्थ मूल, प्रारंभ और शुरू होता है। करीब 400 पीढ़ियों पूर्व सभी भारतीय वन में ही रहते थे और वे आदिवसी थे परंतु विकासक्रम के चलते पहले ग्राम बने फिर कस्बे और अंत में नगर। यदि से विभाजन होना प्रारंभ हुआ। जो वन में रह गए वे वनावासी, जो गांव में रह गए वे ग्रामवासी और जो नगर में चले गए वे नगरवासी कहलाने लगे।
 
2. भारत में रहने वाला हर व्यक्ति आदिवासी है लेकिन चूंकि विकासक्रम में भारतीय वनों में रहने वाले आदिवासियों ने अपनी शुद्धता बनाए रखी और वे जंगलों के वातावरण में खुले में ही रहते आए हैं तो उनकी शारीरिक संवरचना, रंग-रूप, परंपरा और रीति रिवाज में कोई खास बदलावा नहीं हुआ। हालांकि जो आदिवासी अब गांव, कस्बे और शहरों के घरों में रहने लगे हैं उनमें धीरे धीरे बदलवा जरूर आएंगे। 
 
3. प्रारंभिक मानव पहले एक ही स्थान पर रहता था। वहीं से वह संपूर्ण विश्व में समय, काल और परिस्थिति के अनुसार बसता गया। विश्वभर की जनतातियों के नाक-नक्ष आदि में समानता इसीलिए पायी जाती है क्योंकि उन्होंने निष्क्रमण के बाद भी अपनी जातिगत शुद्धता को बरकरार रखा और जिन आदिवासी या जनतातियों के लोगों ने अपनी भूमि और जंगल को छोड़कर अन्य जगह पर निष्क्रमण करते हुए इस शुद्धता को छोड़कर संबंध बनाए उनमें बदलाव आता गया। यह बदलाव वातावरण और जीवन जीने के संघर्ष से भी आया।
 
4. पश्चिमी भारत (गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र) में भील, कोली, मीना, टाकणकार, पारधी, कोरकू, पावरा, खासी, सहरिया, आंध, टोकरे कोली, महादेव कोली, मल्हार कोली, टाकणकार आदि प्रमुख है। 
 
5. भारत के उत्तरी क्षेत्र जम्मू-कश्मीर, उत्तरांचल और हिमाचल प्रदेश में मूल रूप में लेपचा, भूटिया, थारू, बुक्सा, जॉन सारी, खाम्पटी, कनोटा जातियां प्रमुख हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र (असम, मिजोरम, नगालैंड, मेघालय आदि) में लेपचा, भारी, मिसमी, डफला, हमर, कोड़ा, वुकी, लुसाई, चकमा, लखेर, कुकी, पोई, मोनपास, शेरदुक पेस प्रमुख हैं। पूर्वी क्षेत्र (उड़ीसा, झारखंड, संथाल, बंगाल) में जुआंग, खोड़, भूमिज, खरिया, मुंडा, संथाल, बिरहोर हो, कोड़ा, उंराव आदि जातियां प्रमुख हैं। इसमें संथाल सबसे बड़ी जाति है।
 
6. दक्षिण भारत में (केरल, कर्नाटक आदि) कोटा, बगादा, टोडा, कुरूंबा, कादर, चेंचु, पूलियान, नायक, चेट्टी ये प्रमुख हैं। द्वीपीय क्षेत्र में (अंडमान-निकोबार आदि) जारवा, ओन्गे, ग्रेट अंडमानीज, सेंटेनेलीज, शोम्पेंस और बो, जाखा, आदि जातियां प्रमुख है। इनमें से कुछ जातियां जैसे लेपचा, भूटिया आदि उत्तरी भारत की जातियां मंगोल जाति से संबंध रखती हैं। दूसरी ओर केरल, कर्नाटक और द्वीपीय क्षेत्र की कुछ जातियां नीग्रो प्रजाति से संबंध रखती हैं।
 
7. भारत में लगभग 461 जनजातियां हैं। उक्त सभी आदिवासियों का धर्म हिन्दू है, लेकिन धर्मांतरण के चलते अब यह ईसाई, मुस्लिम और बौद्ध भी हैं। भारत के आदिवासियों का धर्म क्या है इस संबंध में कई तरह के भ्रम पैदा किए जाते हैं। यह भ्रम 300 वर्षों से जारी आधुनिक काल की राजनीति के चलते हैं। 
 
8. सचाई ये हैं कि भारत के आदिवासियों का मूल धर्म शैव है। वे भगवान शिव की मूर्ति नहीं शिवलिंग की पूजा करते हैं। उनके धर्म के देवता शिव के अलावा भैरव, कालिका, दस महाविद्याएं और लोक देवता, कुल देवता, ग्राम देवता हैं। भगवान शिव को आदिदेव, आदिनाथ और आदियोगी कहा जाता है। आदि का अर्थ सबसे प्राचीन प्रारंभिक, प्रथम और आदिम। शिव आदिवासियों के देवता हैं। शिव खुद ही एक आदिवासी थे। भारत की प्राचीन सभ्यता में भी शिव और शिवलिंग से जुड़े अवशेष प्राप्त होते हैं जिससे यह पता चलता है कि प्राचीन भारत के लोग शिव के साथ ही पशुओं और वृक्षों की पूजा भी करते थे। आर्यों से संबंध होने के कारण आर्यो ने उन्हें अपने देवों की श्रेणी में रख दिया। आर्य लोग शिव की पूजा नहीं करते थे लेकिन आदिवासियों के देवता तो प्राचीनकाल से ही शिव ही रहे हैं।
 
9. मूल रूप से आदिवासियों का अपना धर्म है। ये शिव एवं भैरव के साथ ही प्रकृति पूजक हैं और जंगल, पहाड़, नदियों एवं सूर्य की आराधना करते हैं। इनके अपने अलग लोक देवता, ग्राम देवता और कुल देवता हैं। जैसे नागवंशी आदिवासी और उनकी उप जनजातियां नाग की पूजा करते हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता में शिव जैसी पशुओं से घिरी जो मूर्ति मिली है इससे यह सिद्ध होता है कि आदिवासियों का संबंध सिंधु घाटी की सभ्यता से भी था।
 
10. 400 पीढ़ियों के प्रारंभिक काल में ये जातियां थीं- देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, भल्ल, वसु, अप्सराएं, पिशाच, सिद्ध, मरुदगण, किन्नर, चारण, भाट, किरात, रीछ, नाग, विद्‍याधर, दार्द, पक्थ (पख्‍तू), अहीर, मेघ, मानव, वानर, निषाद, मत्स, अश्मक, कलिंग, यवन, शिना, शूर, पुरु, यदु, तुर्वश, अनु, द्रुह्मु, अलिन, भलान, शिव, विषाणिन, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, तक्षक व लोहड़, मद्र, कंबोज, भरत, आदि। कालक्रम के चलते इने नाम बदलते गए। इस तरह हम भारतीयों के नाक-नक्ष की बात करें तो वह चीन और अफ्रीका के लोगों से बिल्कुल भिन्न है। यदि रंग की बात करें तो भारतीयों का रंग यूरोप, अफ्रीका के लोगों से पूर्णत: भिन्न है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नागासाकी दिवस, जानें किस नाम का बम गिराया था जापान के इस शहर पर