Ganesh and mushak story in hindi: शास्त्रों और पुराणों में सिंह, मयूर और मूषक को गणेश जी का वाहन बताया गया है। गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड (1) - में उल्लेख है कि सतयुग में गणेशजी का वाहन सिंह है। त्रेता युग में उनका वाहन मयूर है। द्वापर युग में उनका वाहन मूषक हैं और कलयुग में वे घोड़े पर आरूढ़ होंगे। आओ जानते हैं कि किस तरह गणेशजी का मूषक वाहन बना।
पहली कथा:
पूर्वजन्म में मूषक था एक गंधर्व : एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा इंद्र के दरबार में क्रौंच नामक गंधर्व था। एक बार इंद्र किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे थे लेकिन क्रौंच किसी और ही मूड में था। वह अप्सराओं से हंसी ठिठोली कर रहा था। इंद्र का ध्यान उस पर गया तो नाराज इंद्र ने उसे चूहा बन जाने का शाप दे दिया।
पराशर ऋषि के आश्रम में मूषक रूप में लिया जन्म :
- इंद्र के श्राप के चलते मूषक के रूप में वह सीधे पराशर ऋषि के आश्रम में आ गिरा। क्रौंच का चंचल स्वभाव तो बदलने से रहा। आते ही उसने भयंकर उत्पात मचा दिया, आश्रम के सारे मिट्टी के पात्र तोड़कर सारा अन्न समाप्त कर दिया। आश्रम की वाटिका उजाड़ डाली, ऋषियों के समस्त वल्कल वस्त्र और ग्रंथ कुतर दिए।
- आश्रम की सभी उपयोगी वस्तुएं नष्ट हो जाने के कारण पराशर ऋषि बहुत दुखी हुए और अपने पूर्व जन्म के कर्मों को कोसने लगे कि किस अपकर्म के फलस्वरूप मेरे आश्रम की शांति भंग हो गई है। अब इस चूहे के आतंक से कैसे निजात मिले? तब पराशर ऋषि श्री गणेश की शरण में गए। गणेश जी ने पराशर जी को कहा कि मैं अभी इस मूषक को अपना वाहन बना लेता हूं।
गणेशजी ने इस तरह किया मूषक को अपने वश में:
- गणेश जी ने अपना तेजस्वी पाश फेंका, पाश उस मूषक का पीछा करता पाताल तक गया और उसका कंठ बांध लिया और उसे घसीट कर बाहर निकाल गजानन के सम्मुख उपस्थित कर दिया। पाश की पकड़ से मूर्छित मूषक जब आंख खुली तो भयभीत होकर उसने गणेश जी की आराधना शुरू कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा।
- गणेश जी मूषक की स्तुति से प्रसन्न तो हुए लेकिन उन्होंने कहा कि तूने ऋषियों को बहुत कष्ट दिया है। मैंने दुष्टों के नाश एवं साधु पुरुषों के कल्याण के लिए ही अवतार लिया है, लेकिन शरणागत की रक्षा भी मेरा परम धर्म है, इसलिए जो वरदान चाहो मांग लो।
- ऐसा सुनकर उस उत्पाती मूषक का अहंकार फिर से जाग उठा और वह बोला, 'मुझे आपसे कुछ नहीं मांगना है, आप चाहें तो मुझसे वर की याचना कर सकते हैं।
- मूषक की गर्वभरी वाणी सुनकर गणेश जी मन ही मन मुस्कराए और कहा, 'यदि तेरा वचन सत्य है तो तू मेरा वाहन बन जा। मूषक के तथास्तु कहते ही गणेश जी तुरंत उस पर आरूढ़ हो गए।
- भारी भरकम गजानन के भार से दबकर मूषक को प्राणों का संकट बन आया। तब उसने गणेशजी से प्रार्थना की कि वे अपना भार उसके वहन करने योग्य बना लें। इस तरह मूषक का गर्व चूरकर गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया।
दूसरी कथा :
गजमुखासुर नामक दैत्य ने अपने बाहुबल से देवताओं को बहुत परेशान कर दिया। सभी देवता एकत्रित होकर भगवान गणेश के पास पहुंचे। तब भगवान श्रीगणेश ने उन्हें गजमुखासुर से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिलाया। तब श्रीगणेश का गजमुखासुर दैत्य से भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में श्रीगणेश का एक दांत टूट गया। तब क्रोधित होकर श्रीगणेश ने टूटे दांत से गजमुखासुर पर ऐसा प्रहार किया कि वह घबराकर चूहा बनकर भागा लेकिन गणेशजी ने उसे पकड़ लिया। मृत्यु के भय से वह क्षमायाचना करने लगा। तब श्रीगणेश ने मूषक रूप में ही उसे अपना वाहन बना लिया।