-मोनिका कुंडू श्रीवास्तव
एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत में स्वस्थ दिखने वाले अधिकतर शहरी लोग विटामिन की कमी से ग्रस्त हैं।
हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान के वैज्ञानिक 30-70 वर्ष के लोगों में विटामिन के स्तर का अध्ययन करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। इस अध्ययन में 270 प्रतिभागी (147 पुरुष और 123 महिलाएं) शामिल थे। शोधकर्ताओं ने रक्त के नमूनों की मदद से विटामिन के विभिन्न रूपों (ए, बी1, बी2, बी6, बी12, फोलेट और डी) तथा होमोसिस्टीन की मात्रा का मूल्यांकन किया है।
शरीर में कोशिकीय एवं आणविक कार्यों, ऊतकों की वृद्धि और रखरखाव के लिए आवश्यक विटामिन एक प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं। इस अध्ययन में आधे लोग विटामिन बी-2 और 46 प्रतिशत लोग विटामिन बी-6 की कमी से ग्रस्त पाए गए हैं। ये परिणाम महत्वपूर्ण हैं, जो विटामिन बी-2 की कमी को गंभीरता से लेने का संकेत करते हैं।
हालांकि लोग विटामिन की कमी को आमतौर पर नजरंदाज करते हैं और बी-1, बी-2 एवं बी-6 विटामिनों की कमी की ओर कम ध्यान दिया जाता है। संभवत: इसका कारण इन विटामिनों को मापने के लिए विश्वसनीय और आसानी से उपलब्ध तकनीकों की कमी हो सकती है।
विटामिन बी-2 या राइबोफ्लेविन की कमी तंत्रिका संबंधी बीमारियों, एनीमिया और हृदय रोगों से जुड़ी होती है, वहीं विटामिन बी-6 की कमी का संबंध मस्तिष्क की कार्यप्रणाली, दौरे, कैंसर, माइग्रेन, पुराने दर्द, हृदय रोग, कम प्रतिरक्षा और अवसाद से जुड़ा है।
विटामिन बी-1 या थायमिन की कमी से मनोभ्रंश, अल्जाइमर, कैंसर और चयापचय संबंधी रोग हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि फोलेट, विटामिन बी-12 और विटामिन ए के अलावा अन्य विटामिनों की कमी को नजरंदाज करने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
अन्य विटामिनों जैसे बी-12 (46%), फोलेट यानी बी-9 (32%), विटामिन डी (29%), बी-1 (11%) और विटामिन ए (6%) की कमी का आकलन भी किया गया है। विटामिन बी-2 और बी-12 शरीर में फोलेट की उपस्थिति को प्रभावित करते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि फोलेट की कमी विटामिन बी-2 और बी-12 के निम्न स्तरों का कारण हो सकती है।
विटामिन बी-2 और बी-12 का स्तर बढ़ाकर फोलेट की कमी नियंत्रित कर सकते हैं। प्रचुर मात्रा में धूप होने के बावजूद भारतीय लोग विटामिन डी की कमी से ग्रस्त होते हैं। यह मधुमेह के लिए एक प्रमुख जोखिम हो सकता है। विटामिन के अन्य रूपों की अपेक्षा विटामिन 'ए' में कमी के मामले काफी कम देखने को मिले हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि इसका कारण शरीर में पर्याप्त हीमोग्लोबिन का होना हो सकता है।
इस अध्ययन से पता चला है कि लोग भोजन में आवश्यकता से काफी कम विटामिन लेते हैं। पोषण में इस गिरावट के लिए पर्याप्त आहार न लेना जिम्मेदार हो सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि आहार में विटामिन बी-12 (96%) और फोलेट (91%) की कमी एक चिंता का विषय है। आहार में विटामिन बी-2 (71%) की कमी का कारण चावल और गेहूं जैसे अनाजों को पीसकर खाने का परिणाम हो सकता है, क्योंकि ऐसा करने से अनाज में मौजूद राइबोफ्लेविन नष्ट हो जाता है।
इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ. जी. भानुप्रकाश रेड्डी ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि यह अध्ययन आम लोगों, चिकित्सकों और नीति-निर्माताओं को विटामिनों की कमी से जुड़े खतरे के बारे में आगाह करने में मददगार हो सकता है। शरीर में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है।
शोधकर्ता के अनुसार कोई भी एक खाद्य पदार्थ या संपूर्ण भोजन सभी सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता अत: भोजन में विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियां, डेयरी उत्पाद, सूखे मेवे, अंकुरित बीज आदि का सेवन सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा करने में मददगार हो सकता है।
विटामिन बी-12 का निम्न स्तर और काफी हद तक फोलेट, विटामिन बी-2 एवं बी-6 से एमीनो एसिड, होमोसिस्टीन के रूप में वृद्धि का कारण बनता है, जो विभिन्न रक्त संबंधी समस्याओं के लिए जिम्मेदार है। इसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क एवं हृदय स्ट्रोक, कमजोर हड्डियों के कारण फ्रैक्चर और डिमेंशिया जैसे विकार हो सकते हैं।
अध्ययन में आधे से अधिक (52%) लोगों में होमोसिस्टीन बढ़ा हुआ पाया गया है। हालांकि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में उच्च मात्रा में होमोसिस्टीन का पाया जाना उनमें इन बीमारियों के प्रति खतरे की चेतावनी देता है। अनाज अथवा दाल आधारित खाद्य पदार्थ भारतीय भोजन के प्रमुख घटक हैं। सब्जियों, फलों और डेयरी उत्पादों जैसे विटामिन से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन कम करने से इस तरह की पोषण संबंधी समस्याएं होती हैं।
महिलाओं की तुलना में पुरुष 6 प्रकार के विटामिनों का अधिक सेवन करते हैं, पर उनके रक्त में इनका स्तर अपेक्षित मात्रा में नहीं पाया गया। कई बार इन विटामिनों का सेवन पर्याप्त मात्रा में करने के बावजूद कुछ लोगों के शरीर और कोशिकाओं में ये उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। इसके लिए उम्र, पर्यावरण, आनुवांशिकता, पोषण संबंधी विकार और अन्य पोषक तत्वों की स्थिति जैसे कारक जिम्मेदार हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं में एम. शिवप्रसाद, टी. शालिनी, पी. यादागिरि रेड्डी, एम. शेषाचार्युलु, जी. माधवी और बी. नवीन कुमार शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका 'न्यूट्रीशन' में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)
(भाषांतरण : शुभ्रता मिश्रा)