माता लक्ष्मी के कई रूप है। उत्तर भारत और दक्षिण भारत में देवी लक्ष्मी को अलग अलग रूप में पूजा जाता है। आओ जानते हैं कि कितने रूप हैं और दिवाली के दिन किस लक्ष्मी को पूजना चाहिए।
दक्षिण भारत में : दक्षिण भारत में लक्ष्मीजी की अभिव्यक्ति को दो रूपों में देखा जाता है- 1. श्रीरूप और 2. लक्ष्मी रूप। श्रीरूप में वे कमल पर विराजमान हैं और लक्ष्मी रूप में वे भगवान विष्णु के साथ हैं। श्रीरूप को श्रीदेवी कहा जाता है। भूदेवी धरती की देवी हैं और श्रीदेवी स्वर्ग की देवी। पहली उर्वरा से जुड़ी हैं, दूसरी महिमा और शक्ति से। भूदेवी सरल और सहयोगी पत्नी हैं जबकि श्रीदेवी चंचल हैं। विष्णु को हमेशा उन्हें खुश रखने के लिए प्रयास करना पड़ता है। दक्षिण भारत में श्रीदेवी की पूजा का ज्यादा प्रचलन है।
उत्तर भारत में : उत्तर भारत में लक्ष्मी के 'विष्णुपत्नी लक्ष्मी' एवं 'राज्यलक्ष्मी' दो रूप प्रचलित है। एक भृगु की पुत्री और विष्णु की पत्नी हैं तो दूसरी समुद्र मंथन से उत्पन्न है। महाभारत में भी इसी रूप का उल्लेख मिलता है। उत्तर भारत में दोनों की ही पूजा का प्रचलन है।
विष्णुप्रिया लक्ष्मी : ऋषि भृगु की पुत्री माता लक्ष्मी थीं। उनकी माता का नाम ख्याति था। महर्षि भृगु विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षियों में स्थान मिला है। राजा दक्ष के भाई भृगु ऋषि थे। इसका मतलब वे राजा दक्ष की भतीजी थीं। माता लक्ष्मी के दो भाई दाता और विधाता थे। भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती उनकी (लक्ष्मीजी की) सौतेली बहन थीं। सती राजा दक्ष की पुत्री थीं।
समुद्र मंथन की लक्ष्मी : समुद्र मंथन की लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है। उनके हाथ में स्वर्ण से भरा कलश है। इस कलश द्वारा लक्ष्मीजी धन की वर्षा करती रहती हैं। उनके वाहन को सफेद हाथी माना गया है। दरअसल, महालक्ष्मीजी के 4 हाथ बताए गए हैं। वे 1 लक्ष्य और 4 प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं और मां महालक्ष्मीजी सभी हाथों से अपने भक्तों पर आशीर्वाद की वर्षा करती हैं।
अष्टलक्ष्मी : संपूर्ण भारत में लक्ष्मी के आठ रूप भी प्रचलित है। खासकर महाराष्ट्र में इसकी मान्यता ज्यादा है। अष्टलक्ष्मी माता लक्ष्मी के 8 विशेष रूपों को कहा गया है। माता लक्ष्मी के 8 रूप ये हैं- आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी। विशेष अवसरों पर उक्त लक्ष्मी रूप की पूजा कर प्रचलन है। इसमें से दीपावली के दिन धनलक्ष्मी की पूजा होती है।
उल्लू और हाथी: एक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू है और धन की देवी महालक्ष्मी का वाहन हाथी है। कुछ के अनुसार उल्लू उनकी बहन अलक्ष्मी का प्रतीक है, जो सदा उनके साथ रहती है। देवी लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी भ्रमण करने आती हैं। परंतु इस मान्यता की पुष्टि संभव नहीं है।
माता लक्ष्मी को चित्र में उल्लू, हाथी या कमल पर विराजमान बताया जाता है। उल्लू पर बैठी हुई मां लक्ष्मी का चित्र पूजन में रखने से लक्ष्मी नकारात्मकता लेकर आती है। क्योंकि उल्लू वाहन से आई लक्ष्मी गलत दिशा से आने और जाने वाले धन की ओर इशारा करती हैं। इसलिए उल्लू पर लक्ष्मी का आना उतना शुभ नहीं होता।
दीपावली पर किसे पूजे?
देवी लक्ष्मी का घनिष्ठ संबंध देवराज इन्द्र तथा कुबेर से है। इन्द्र देवताओं तथा स्वर्ग के राजा हैं तथा कुबेर देवताओं के खजाने के रक्षक के पद पर आसीन हैं। देवी लक्ष्मी ही इन्द्र तथा कुबेर को इस प्रकार का वैभव, राजसी सत्ता प्रदान करती हैं। देवी लक्ष्मी जो कमल पर विराजमान है और जिनके आसपास गणेश वा सरस्वती और आसमान ही हाथी सुंड उठाए हों ऐसी लक्ष्मी की पूजा का प्रचलन रहा है या हाथी पर विराजमान लक्ष्मी या विष्णुजी के साथ गरूढ़ पर विराजमान लक्ष्मी की पूजा की जाती है। उल्लू पर विराजमान लक्ष्मी की पूजा नहीं की जाती है। दीपावली के दिन धनलक्ष्मी की पूजा होती है।