दीपावली पूजा की शुरुआत धन्वंतरि पूजा से होती है। दूसरा दिन यम, कृष्ण और काली की पूजा होती है। तीसरे दिन लक्ष्मी माता के साथ गणेशजी की पूजा होती है। चौथे दिन गोवर्धन पूजा होती है और अंत में पांचवें दिन भाईदूज या यम द्वीतिया मनाई जाती है। आओ जानते हैं कि पूजा के साथ ही और कौन से मंगल कार्य किए जाते हैं जिससे माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती है।
क्या करें दीपावली पर : दीपावली के दिन श्रीयंत्र की पूजा, हनुमानजी, यमराज, चित्रगुप्त, कुबेर, भैरव, कुलदेवता और पितरों का पूजन जरूर करना चाहिए। लक्ष्मीजी के साथ भगवान विष्णु का भी पूजन करना बहुत शुभ रहता है। पूजन में श्री सूक्त का पाठ करना चाहिए। चाहें तो विष्णुसहस्रनाम, गोपाल सहस्रनाम का पाठ भी कर सकते हैं इसके अलावा दीपावली पर कौड़ियां की पूजा और चांदी की गढ़वी की पूजा, सिक्के की पूजा का भी प्रचलन है।
1. वंदनवार : आम या पीपल के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे अकसर दीपावली के दिन द्वार पर बांधा जाता है। वंदनवार इस बात का प्रतीक है कि देवगण इन पत्तों की भीनी-भीनी सुगंध से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं।
2. रंगोली : रंगोली या मांडना को 'चौंसठ कलाओं' में स्थान प्राप्त है। उत्सव-पर्व तथा अनेकानेक मांगलिक अवसरों पर रंगोली से घर-आंगन को खूबसूरती के साथ अलंकृत किया जाता है। इससे घर-परिवार में मंगल रहता है।
3. दीपक : पारंपरिक दीपक मिट्टी का ही होता है। इसमें 5 तत्व हैं- मिट्टी, आकाश, जल, अग्नि और वायु। हिन्दू अनुष्ठान में पंच तत्वों की उपस्थिति अनिवार्य होती है। सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले दीपक समृद्धि के साथ ही अग्नि और ज्योति का प्रतीक है।
4. मंगल कलश : एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर उसके गले पर मौली बांधी जाती है।
5. शंख : शंख समुद्र मथंन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों में से एक है। लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है। यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है। शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है। तीर्थाटन से जो लाभ मिलता है, वही लाभ शंख के दर्शन और पूजन से मिलता है।
6. स्वस्तिक : दीपावली पर कलश के नीचे और लक्ष्मी माता के समक्ष स्वस्तिक बनाने का महत्व है। स्वस्तिक को शक्ति, सौभाग्य, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना जाता है। हर मंगल कार्य में इसको बनाया जाता है। इस मंगल-प्रतीक का गणेश की उपासना, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ, बहीखाते की पूजा की परम्परा आदि में विशेष स्थान है।
7. सफेद हाथी : विष्णु तथा लक्ष्मी को हाथी प्रिय रहा है। शक्ति, समृद्धि और सत्ता के प्रतीक हाथी को भगवाण गणेश का रूप माना जाता है। समुद्र मंथन में प्राप्त हुआ था ऐरावत हाथी, जो सफेद था। घर में ठोस चांदी या सोने का हाथ रखना चाहिए। इसके होने से घर में शांति रहती है।
8. गरुढ़ घंटी : गरुढ़देव विष्णु के वाहन हैं। माता लक्ष्मी के साथ इनकी पूजा भी आवश्यकत है। यह मंगल प्रतीक है। जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती है। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वारा खुलते हैं।
9. अष्टगंध : केसर, अगर, तगर, चंदन, इलायची, जायफल, जावित्री आदि सुगंधित पदार्थ हैं। घृत, फल, कंद, अन्न, जौ, तिल, चावल आदि पुष्टिकारक पदार्थ हैं। शकर, छुहारा, दाख, काजू आदि मिष्ट पदार्थ है। गिलोय, जायफल, जटामासी, सोमवल्ली आदि रोगनाशक पदार्थ माने गए हैं। अष्टगंध को 8 तरह की जड़ी या सुगंध से मिलाकर बनाया जाता है। अष्टगन्ध में आठ पदार्थ होते हैं- कुंकुम, अगर, कस्तुरी, चन्द्रभाग, त्रिपुरा, गोरोचन, तमाल, जल आदि। यही आठ पदार्थ सभी ग्रहों को शांत कर देते हैं। इसके इस्तेमाल से ग्रहों के दुष्प्रभाव दूर हो जाते हैं। गुग्गुल की सुगंध का भी उपयोग कर सकते हैं।
10. पारंपरिक पकवान : दीपावली पर पारंपरिक पकवान बनाना भी मंगल कार्य ही है। इस दिन पारंपरिक व्यंजन और मिठाई बनाई जाती है। हर प्रांत में अलग-अलग पकवान बनते हैं। उत्तर भारत में ज्यादातर गुझिये, शकरपारे, चटपटा पोहा चिवड़ा, चकली आदि बनाते हैं।