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प्रसिद्ध हिन्दी कहानीकार और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि।
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हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार के बारे में जानें।
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8 अक्टूबर को मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि।
Munshi Premchand Ki Kahani : हिन्दी साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि 08 अक्टूबर को मनाई जा रही है। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उन्हें एक कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में भी जाना जाता है। मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही नामक गांव में हुआ था, जो कि वाराणसी से 4 मील दूर था। आइए यहां जानते हैं मुंशी प्रेमचंद के बारे में खास जानकारी :
मुंशी प्रेमचंद का बचपन और परिवार के बारे में जानें : प्रेमचंद एक संयुक्त परिवार में रहते थे तथा उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल और माता आनंदी देवी थीं। और उनके पिता डाकघर में मुंशी/ बाबू थे, जो उस जमाने में महज 20 रुपए का मासिक वेतन कमाते थे और इतने कम वेतन में वे किस प्रकार अपने बच्चों को अच्छा भोजन और अच्छे वस्त्र दे सकते थे। अत: उनका बचपन गरीबी में ही बीता।
लमही ग्राम में जहां उनका जन्म हुआ, वहां का श्रीवास्तव परिवार लेखकों के लिए प्रसिद्ध था तथा इस परिवार के लोगों ने प्रायः मुगल कचहरियों में बाबू के रूप में काम किया था। इसी कारण प्रेमचंद के स्वभावतः मुगल सभ्यता की छाप उन पर और उनके परिवार पर पड़ी थी। प्रेमचंद के अनुसार वे लिखते हैं कि- 'मेरे पास पतंग खरीद कर उड़ाने के लिए भी पैसे नहीं रहते थे। यदि किसी की पतंग का धागा कट जाता था तो मैं पतंग के पीछे दौड़ता और उसे पकड़ता था।' उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया और खुद भी विधवा विवाह किया था।
मुंशी प्रेमचंद का व्यक्तित्व कैसा था : मुंशी प्रेमचंद का व्यक्तित्व चांदनी के समान निर्मल था। यही निर्मलता उनके बचपन से ही उनमें झलकती थी। प्रेमचंद ने अपने जीवन में अपनी लेखनी से देशभक्ति, प्रामाणिकता और समाज सुधार का प्रचार किया, तथा वे स्वयं भी जीवन में उसी राह पर चलते भी रहे। उन्होंने देश की जनता के लिए ताउम्र लिखा और जनता के लिए ही जिये। प्रेमचंद आम आदमी के चितेरे थे। उनकी रचनाओं में आम आदमी की भाषा दिखाई पड़ती है। उन्होंने निम्न और मध्य वर्ग के जीवन को अपने साहित्य का हिस्सा बनाया। उन्होंने जो लिखा उसे जीया भी।
प्रेमचंद का लेखन, बीमारी और निधन के बारे में जानें : प्रेमचंद जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों के एक साल को छोड़कर पूरा समय वाराणसी और लखनऊ में गुजरा, जहां अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन तथा साहित्य-सृजन किया, उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल किताबें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, संपादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि रचना की।
जिस युग में प्रेमचंद ने कलम उठाई थी, उस समय उनके पीछे ऐसी कोई ठोस विरासत नहीं थी और न ही विचार, लेकिन होते-होते उन्होंने गोदान जैसे कालजयी उपन्यास की रचनाएं लिखी हैं। तथा बड़े घर की बेटी, गबन, गोदान, प्रेमाश्रम, ईदगाह, ठाकुर का कुआं, पंच परमेश्वर, पूस की रात, सेवासदन, रंगभूमि, कर्मभूमि, निर्मला, फिल्म संसार से क्या मिला आदि कई रचनाएं उनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। प्रेमचंद के मन की इच्छा आम आदमी तक अपने विचार पहुंचा कर उनकी सेवा करना थी, अत: उन्होंने सन् 1934 में अजंता सिनेटोन नामक फिल्म कंपनी से समझौता करके फिल्म संसार में प्रवेश किया। और 'शेर दिल औरत', 'मिल मजदूर' नामक 2 कहानियां लिखीं।' लेकिन फिल्म निर्माताओं का मुख्य उद्देश्य जनता का पैसा लूटना था, इस वजह से उनको सिनेमा जगत से अरुचि हुई और वे आठ हजार रुपए की सालाना आय को छोड़कर वाराणसी आ गए। लेकिन फिल्म नगरी से लौटने के बाद उनका स्वास्थ्य निरंतर बिगड़ता गया और जलोदर रोग की लंबी बीमारी के कारण 08 अक्टूबर 1936 को उनकी मृत्यु हो गई। इस तरह कई अद्भुत कृतियां लिखने वाले मुंशी प्रेमचंद इस दुनिया को अलविदा कह गए।
मुंशी प्रेमचंद जी के अनमोल कथन क्या हैं :
1. आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है।
2. आदमी का सबसे बड़ा शत्रु उसका अहंकार है।
3. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसे चाहती है, नचाती है।
आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म ओर अधिकार है।
4. धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें तो यह कोई महंगा सौदा नहीं।
5. जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है; उनका सुख छीनने में नहीं।
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