Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

अवैध रेत खनन को नमन

हमें फॉलो करें अवैध रेत खनन को नमन
-आकाश कुमार


 
(मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में शुरू हुई 'नमामि नर्मदे' सेवा यात्रा की परिणिति पर  भविष्यवाणी करना इस मायने में अर्थहीन है, क्योंकि शासन-प्रशासन स्वयं ही नहीं जानता कि  इस यात्रा से वह वोट के अलावा क्या कुछ और प्राप्त भी करना चाहता है। -का.सं.)
 
देखने पर ही लोगों के कष्ट दूर करने वाली नर्मदा नदी आज बड़े-बड़े बांधों से बंधकर तालाब में  बदल गई है। ऊपर से अवैध रेत खनन न केवल नर्मदा का प्रवाह रोक रहा है बल्कि उस पर  और उसमें पलने वाले हजारों जीव-जंतुओं, मनुष्यों एवं उनकी आस्था को भी मार रहा है। हाल  ही में मैं मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के पेंड्रा और भीलखेड़ा गांव में गया, जहां पर नर्मदा का  किनारा पहले कहां था और अब कहां है, पता ही नहीं चलता। इन जगहों पर अवैध खनन के  चलते नर्मदा का पानी, जिसे हम सरदार सरोवर बांध का बेकवॉटर भी कह सकते हैं, काफी अंदर  तक आ चुका है। कभी हरी-भरी फसलों से लहलहाने वाले खेत आज विशाल खदान जैसे दिखते  हैं।
 
अवैध रेत खनन के दुष्परिणाम यहां तक फैल चुके हैं कि खदानों से निकली मिटटी को अब रेत  माफिया नर्मदा नदी में ही डाल रहे हैं जिससे कि किनारों के अस्तित्व एवं पारिस्थितकीय तंत्र  पर बहुत ही बुरा असर पड़ा है। कई वैज्ञानिक रिपोर्टों एवं शोधों के द्वारा यह साबित हो चुका है  कि रेत खनन के कारण नदियों के प्रवाह की दिशा एवं तलहटी पर काफी प्रभाव पड़ता है।  नदियों किनारे हो रहे अत्यधिक रेत खनन के कारण आस-पास की जमीनों में जलस्तर में आई  कमी को भी यहां के ग्रामीण महसूस कर रहे हैं। यहां तक कि देश के सर्वोच्च न्यायालय,  राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण एवं उच्च न्यायालयों के कई आदेशों को ताक पर रख अधिकारियों एवं  खनन माफियाओं का यह गंदा खेल खुलेआम व निर्बाध चल रहा है। 
 
एक तरफ हजारों-लाखों टन अवैध रेत नर्मदा किनारों से प्रतिदिन निकाली जा रही है वहीं दूसरी  ओर 'नमामि नर्मदे' यात्रा में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का कहना है कि अगर अमरकंटक क्षेत्र में  सोना भी निकला तो भी खनन नहीं होने दूंगा। सवाल उठता है अमरकंटक, जो कि नर्मदा का  उद्गम स्थल है, का ही संरक्षण क्यों? क्या नर्मदा घाटी के अन्य क्षेत्र महत्व के नहीं हैं या वहां  होने वाले खनन से नर्मदा पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा? इस बात को भी संबंधित  अधिकारियों एवं मुख्यमंत्री को विशेष रूप से संज्ञान में लेना होगा।
 
नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा अवैध रेत खनन को रोकने के लिए किए गए प्रयासों की वजह से  गत वर्षों में कुछ ट्रैक्टर पकड़े भी गए थे जिन्हें कि सिर्फ 15,000 रु. की मामूली राशि एवं  इससे लाखों रु. कमाने वाले परिवार का एकमात्र जरिया बताकर छुड़वा दिया गया। अभी हाल ही  के राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के आदेश में यह स्पष्ट हुआ है कि पकड़े गए ट्रैक्टर ट्रॉलियों को  छोड़ा न जाए एवं छोड़े गए कुछ ट्रैक्टरों पर भी पुनः कार्रवाई की जाए।
 
नर्मदा बचाओ आंदोलन, जो कि नर्मदा नदी की रक्षा एवं यहां के लोगों के हक के लिए पिछले  31 सालों से लड़ रहा है, के कार्यकताओं ने कई बार खदान क्षेत्र में जाकर अवैध खनन को  रुकवाने का प्रयास किया है और आज भी कर रहे हैं। लेकिन खनन विभाग एवं पुलिस द्वारा  पर्याप्त सहयोग न मिलने के कारण इन्हें कई बार खनन माफियाओं का विरोध व हिंसा भी  झेलना पड़ती है। 
 
नर्मदा बचाओ आंदोलन का नाम लेकर निसरपुर के कुम्हार (प्रजापति) समाज के लोगों को घेसा  (बालू और मिट्टी के बीच का तत्व, जो कि ईंट बनाने में प्रयुक्त होता है) लेने से रोका जा रहा  है, जबकि यह पूर्णत: गलत है। अधिकारियों एवं भू-माफिया निमाड़ के लोगों को आंदोलन से  हटाने के लिए ये कार्य कर रहे हैं जबकि रेत खनन, जिसे रोकने की जिम्मेदारी अधिकारियों पर  है, पर कोई रोक नहीं है। जब आंदोलन के कार्यकर्ता अधिकारियों से शिकायत करते हैं तो कई  बार उनका जवाब होता है कि यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
 
मुख्यमंत्री की 'नमामि नर्मदे' यात्रा आरंभ हो चुकी है और उन्होंने यह प्रण लिया है कि वे नर्मदा  को स्वच्छ रखेंगे एवं बचाकर रहेंगे जबकि अवैध खनन को रोकने का तो कोई प्रयास ही नहीं  किया जा रहा है। आखिर सवाल यह है कि 'नमामि नर्मदे' यात्रा के माध्यम से मुख्यमंत्री किसे  और किस प्रकार के संदेश देना चाहते हैं? जबकि यह देखा गया है कि ऐसी यात्राएं अपने पीछे  ढेर सारा कूड़ा-करकट छोड़ जाती हैं। हालांकि यात्रा से जुड़े लोगों का कहना है कि यह यात्रा  अपने पीछे कोई अपशिष्ट पदार्थ नहीं छोड़ेगी। देखते हैं कि ये कितना सच साबित होता है? पर  कहीं-न-कहीं नर्मदा किनारे चल रहा अवैध रेत खनन मध्यप्रदेश सरकार के सुशासन एवं 'नमामि  नर्मदे' यात्रा के द्वारा नर्मदा सेवा पर गंभीर प्रश्न उठा रहा है? (सप्रेस)
 
(आकाश कुमार शोधार्थी हैं।)

साभार- सर्वोदय प्रेस सर्विस 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

सामान उठाकर पीछे पीछे चलता है संदूक