पिछले वर्ष के साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए बॉब डिलन को लेकर हुए विवाद के बाद इस वर्ष के विजेता का नाम एक हद तक अप्रत्याशित हो सकता था। लेकिन कोई भी इस बात से इंकार नहीं कर सकता है कि नोबेल विजेता काजुओ ईशीगुरो समर्थ और वास्तविक रूप से दावेदार उपन्यासकार हैं जिनकी रचनात्मकता का दायरा बहुत बड़ा है और इसके साथ ही वे व्यावसायिक रूप से सफल लेखक भी हैं जिन्होंने एकसाथ कई विधाओं में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है।
हालांकि इस वर्ष उनके स्थान पर एनगूगी वा थियांगो, एडविज डैंटीकैट, मैरिलिन रॉबिंनसन और डैविड ग्रॉसमैन हो सकते थे लेकिन काजुओ ईशीगुरो का नाम भी ऐसा नहीं है, जो कि सम्मान की गरिमा को किसी भी तरह से कम करता हो।
उल्लेखनीय है कि अब तक इस पुरस्कार के जो विजेता साबित हुए हैं उन्हें ऐसा साहित्य रचने के लिए जाना जाता है, जो कि समाज के कमजोर, गरीब और हारे हुए लोगों की कहानियां लिखने के लिए जाने जाते हैं जिसे आमतौर पर 'ऑब्सक्योर' लिटरेचर लिखने वाले के तौर पर माना जाता है। साथ ही नोबेल समिति ऐतिहासिक तौर ऐसे लोगों को भी चुनती रही है, जो कि अपने लेखन के बल पर बड़ी व्यावसायिक सफलता हासिल नहीं कर सके हों। लेकिन जापान मूल के ब्रिटिश लेखक ईशीगुरो की जीत इस अर्थ में बेहद अहम और खास है कि वे इन दोनों ही खूबियों के मालिक हैं।
इस मामले में ईशीगुरो की 'द रिमेंस ऑफ द डे' एक मील का पत्थर कही जा सकती है, क्योंकि इस रचना ने न केवल कारोबारी सफलता हासिल की है वरन उनके रचना जगत की मौलिकता और अनूठापन इसी से उजागर हुआ। इस उपन्यास में यह सब था, जो कि उनकी पहले की किताबों में नहीं थी। इस मार्मिक प्रेमकथा के चारों ओर बुना इतिहास, कथानक की सेटिंग्स और चरित्रों का चित्रण किसी भी लेखक के लिए आदर्श हो सकता है।
ईशीगुरो के चरित्र अक्सर ही ऐसे होते हैं, जो कि समाज के हाशिए पर पड़े होते हैं, जो कि आम नौकर से लेकर वृद्ध लोग भी होते हैं। आजकल के समय में 'ऐसे अन्य लोगों' की कहानियां ही पाठकों के आकर्षण का केंद्र बन गई हैं। ऐसे अन्य लोग पीड़ित महिलाएं, प्रवासी, नौकरों जैसा काम करने वाले लोग और वृद्ध पहले की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हुए हैं। 'रिमेन्स ऑफ द डे' पढ़ने के बाद आप यह भी भूल सकते हैं कि ईशीगुरो एक जापानी लेखक हैं।
इससे यह अंतर भी समझ में आता है कि एक पूरी तरह से ब्रिटिश कहानी कैसी होती है, क्योंकि यह वर्ग स्तरीकरण की एक परिष्कृत तरीके से जांच-पड़ताल करती है और इस कारण से यह अधिक विलक्षण भी होती है। यह सभी जानते हैं कि काजुओ ईशीगुरो जापान से ब्रिटेन पहुंचे प्रवासी माता-पिता की संतान हैं और इस कारण से वे किसी राष्ट्र विशेष के लेखक से अलग प्रतीत नहीं होते हैं। वे जापानी होने से पहले ब्रिटिश साहित्यकार हैं।
उनकी नवीनतम पुस्तक 'द बरीड जाइंट' एक ऐसा अथाह और गहन चिंतन-मनन है, जो कि स्मृति और विस्मृति की प्रकृति को निजी और राष्ट्रीय स्तरों पर देखती है और इस तरह की कहानी हमारे समय के लिए विशेष रूप से अनुकूल है। एक खास बात यह भी है कि ईशीगुरो वास्तव में उन दुर्लभ लेखकों में से एक हैं जिन्होंने बहुत सारी साहित्यिक विधाओं को अपनी लेखनी से सजीव किया है। यह चाहे कोई प्रेम कहानी हो, विज्ञान कथा हो या फिर कोरी कल्पना। उनकी अंतिम किताब में ये सारी विधाएं एक
संपूर्णता के साथ चमचमाती हैं।
उनके लेखन की ताकत तब सामने आती है, जब अपने शब्दों के बल पर वे सीधे, सरल और सहज तथा थके हुए लोगों को बच निकलने का रास्ता देती हैं। ईशीगुरो के लेखन की ताकत, उनका आनंद उनके शब्दों के वर्णनातीत होने में है और यही बात उन्हें एक सुयोग्य नोबेल विजेता बनाती है।