कौन था जनरल कासिम सुलेमानी और क्‍यों उमड़े लाखों लोग उसके जनाजे में?

नवीन रांगियाल
लंबा कद। गोरा रंग। धवल दाढ़ी और चेहरे पर हल्‍की सी खुफिया हंसी। दुनिया की सबसे बड़ी खबर के केंद्र में जो आदमी है, यह उसके हुलिये की एक मोटी-मोटी सी तस्‍वीर है। ऐसे हुलिये के दुनिया में कई लोग हैं, लेकिन इराक में इस आदमी के फ्यूनरल में जो भीड़ जुटी है, वो टीवी की स्‍क्रीन में नहीं समा रही है। इस फ्यूनरल के दृश्‍य को देखने के लिए कैमरा कई जगह पर राउंड करता है, तब जाकर यकीन हो जाता है पूरा ईरान ही इस जनाजे में शामिल हुआ है।

जनरल कासिम सुलेमानी वो शख्‍स है जिसकी मौत के बाद दुनिया पर युद्ध का खतरा मंडरा रहा है, और ईरान में सुलेमानी के जनाजे में जो अवाम उमड़ी है, उससे लगता है कि ईरान युद्ध के पूरे मूड़ में है। हाल ही में इराक की राजधानी बगदाद में अमेरिका के हमले में जनरल कासिम सुलेमानी की मौत हो गई। इसके बाद पूरी दुनिया अमेरिका ईरान के बीच युद्ध के राडार पर खड़ी है।

जानते हैं कौन था जनरल कासिम सुलेमानी और क्‍या है उसकी अंतिम यात्रा में जुटी इतनी भीड़ का रहस्‍य। 

11 मार्च 1957 में पैदा हुए सुलेमानी ने अपनी जवानी के दिनों में करीब 8 लाख आबादी वाले शहर करमन में कंस्‍ट्रक्‍शन का काम किया करता था। बाद में वो यहीं के करमन वॉटर ऑर्गनाइजेशन (जल विभाग) में ठेकेदार बन गया। खाली समय में यहां की लोकल जिम में वर्जिश करता और वेट लिफ्टिंग करता था।

साल 1979 आते- आते सुलेमानी ने आईआरजीसी ज्‍वॉइन कर ली। आईआरजीसी यानी इस्‍लामिक रिवोल्‍यूशनरी गार्ड कॉर्प्स।

20 सालों तक हुई सुलेमानी को मारने की कोशिश
सुलेमानी ने ईरान की ताकत को बढ़ाने के लिए बेहद काम किया। उसने मिडिल ईस्‍ट में भी ईरान की ताकत को बढ़ाया। अपनी खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर सुलेमानी ने लगातार काम किया। नतीजा यह हुआ कि वो अमेरिका के लिए सिरदर्द बन गया। इतना ही नहीं, सऊदी अरब और इसराइल जैसे अमेेरिकी समर्थक देशों के लिए भी ईरान से निपटना मुश्‍किल हो गया था और यह सब सुलेमानी की नीतियों का कमाल था। इस कारण उसे कई बार मारने की कोशिश की गई, करीब 20 सालों तक पश्‍चिमी, इसराइल और अरब देशों की खुफिया एजेंसियां उसे मारने के लिए पीछा करती रही। लेकिन हर बार वो बच निकलता था।

ईरान की अवाम की पकड़ी नब्‍ज 
जनरल कासिम सुलेमानी को पता था कि ईरान की अवाम अमेरिका का बिल्‍कुल भी पसंद नहीं करती है। ईरान के लोगों की यही नब्‍ज उसने पकड़ी थी। वो खुद भी अमेरिका का पुराना दुश्‍मन था। इसलिए वो हमेशा अमेरिका के खिलाफ नीतियां बनाता रहा। इस्लामिक स्टेट के आतंक से बगदाद को बचाने के लिए उसकी लीडरशिप में ही ईरान समर्थित फोर्स का गठन किया गया था। पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्स इसका नाम था। जब ईरान और इराक के बीच 1980 में जंग हुई तो इसमें भी सुलेमानी की अहम भूमिका थी। इस जंग में अमेरिका ने इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन का साथ दिया था।

एक रिपोर्ट में कहा गया था कि एक व्यक्ति जिसे कुछ साल पहले तक ज्यादातर ईरानी लोग सड़कों पर भी नहीं पहचानते थे, वो अब डाक्यूमेंट्री, न्यूज़ रिपोर्ट और पॉप गानों का विषय बन चुका है। दरअसल, सुलेमानी को ईरान में नेशनल हीरो के तौर पर देखना शुरू हो गया था। 

कुर्द लड़ाकों और शिया को किया एकजुट 
सुलेमानी ने इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठन का मुकाबला करने के लिए कुर्द लड़ाकों और शिया मिलिशिया को एकजुट किया था। यह भी कहा जाता है कि सुलेमानी ने हिज्बुल्लाह, फिलीस्तीन में सक्रिय आतंकी संगठन हमास को भी अपना समर्थन दे रखा था। ऐसे में उसका मारा जाना ईरान के लिए एक बड़ा नुकसान है, ईरानी उसे अमेरिका के खिलाफ एक बड़े चेहरे वाले दुश्‍मन के तौर पर देखते थे और साथ ही भावनात्‍मक रूप से भी वे उससे जुड़े थे।

सुलेमानी की मौत के बाद कोई दूसरा चेहरा वहां नहीं है, जिसे जनता अमेरिका के दुश्‍मन के तौर पर इस तरह देखती हो। इसलिए जनरल कासिम सुलेमानी की लोकप्रियता का अंदाजा उसके जनाजे में आई लाखों लोगों की भीड़ को देखकर लगाया जा सकता है।

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