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जानिए आखिर क्यों अब AI और Voice ही तय करेंगे डिजिटल मीडिया की तकदीर...

हमें फॉलो करें जानिए आखिर क्यों अब AI और Voice ही तय करेंगे डिजिटल मीडिया की तकदीर...
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संदीपसिंह सिसोदिया

, बुधवार, 8 मई 2019 (19:44 IST)
इन दिनों दुनियाभर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता मतलब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और वॉइस असिस्टेन्ट्स (Voice) की चर्चा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का खासा इस्तेमाल इस समय मीडिया और मनोरंजन व्यवसाय में हो रहा है। सबसे बड़ी खूबी है कि इसकी मदद से मीडिया और इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से जुड़े लोग कंटेंट को लेकर अधिक प्रयोग करने लगे हैं। अब कंटेंट सही मायनों में किंग की भूमिका में है जिसे उपभोक्ता के अनुसार कस्टमाइज और पर्सनलाइज किया जा रहा है। 
 
नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम जैसे प्लेटफॉर्म्स अब परंपरागत टीवी और सिनेमा को पीछे छोड़ रहे हैं तो ग्लोबल मीडिया दिग्गज भी अब तकनीक का सहारा लेते हुए नए और अनूठे प्रयोग करने में जुटे हैं।

स्मार्ट फोन, फेबलैट और इंटेलिजेंट स्पीकर्स की बदौलत अब सिरी, एलेक्सा, गूगल असिस्टेंट, कोर्टाना और सैमसंग बिक्सी जैसे वर्चुअल वॉइस असिस्टेंट्स अब जाने-पहचाने नाम हैं।
 
परंतु, मीडिया में आने वाले समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और वॉइस असिस्टेन्ट तकनीक इंटरनेट पर डिजिटल मीडिया, खासतौर पर भारतीय भाषाओं की तकदीर किस तरह बदल सकती हैं और फिलहाल इस दिशा में क्या नया हो रहा है, जानने के लिए हमने इस क्षेत्र के एक्स्पर्ट्‍स से बात की...

मुकुल देवीचंद (Executive Editor, AI & Voice - BBC) ने वेबदुनिया से खास बातचीत में बताया कि हाल ही में बीबीसी ने एआई और वाइस से डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में एक अनूठा और अपनी किस्म का पहला प्रयोग किया है। उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया में यह प्रयोग भारत में बीबीसी हिंदी के लोकसभा चुनाव सेक्शन पर किया गया है।

AI और वाइस असिस्टेंस तकनीक पर आधारित यह सेवा Purely Reactive मोड पर काम करती है, एंड्रॉइड फोन के गूगल असिस्टेंट पर चुनिंदा वाइस कमांड देने पर यूजर आसानी से बीबीसी का 'इंट्रेक्टिव बुलेटिन' सुन सकता है।

इसमें यूजर्स अपने स्मार्ट फोन पर गूगल वाइस असिस्टेंट की मदद से बीबीसी का विशेष ऑडियो सुन पाएंगे। मुकुल कहते हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए विशेष तौर पर बनाए गए बीबीसी 'इंट्रेक्टिव बुलेटिन' को सुनने के लिए यूजर्स को सिर्फ इतना कहना होगा कि 'BBC Elections से बात कराओ', इसी तरह 'और जानकारी' कहने पर बीबीसी पर मौजूद चुनाव से संबंधित अन्य सामग्री भी आसानी से सुन पाएंगे।
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मुकुल बताते हैं कि यह अपनी तरह का सभंवत: पहला प्रयोग है, जहां Voice Interaction के जरिए यूजर एक नए और अनोखे अनुभव से रूबरू हो सकेंगे। उल्लेखनीय है कि रेडियो से शुरुआत करने वाले मुकुल बीबीसी की अवॉर्ड विनिंग डिजिटल जर्नलिज्म टीम बीबीसी ट्रेंडिंग भी स्थापित कर चुके हैं। 

मुकुल भारतीय भाषाओं में हो रहे इस प्रयोग को लेकर बेहद उत्साहित हैं और बताते हैं कि आने वाले समय में बीबीसी कई तरह के प्रयोग जैसे वर्चुअल रिएलिटी बेस्ड स्टोरी टेलिंग, अधिक कस्टमाइज्ड और पर्सनालाइज्ड कंटेट लेकर आने वाली है। मुकुल के अनुसार यह लगभग 1 दशक पुराने 'स्पोकन वेब' कंसेप्ट पर आधारित नई तकनीक का पहला ट्रायल है और यूजर्स के साथ-साथ हम भी लगातार सीखकर आगे बढ़ रहे हैं।

हालांकि एआई स्पोर्टेड एप्स और कंटेट को लेकर यूजर की चिंताओं जैसे साइबर सुरक्षा, निजता और तकनीक की संवेदनशीलता पर मुकुल का कहना है कि बीबीसी 100 वर्षों से विश्वसनीय मीडिया ब्रांड रहा है और यूजर्स से लगातार मिल रहे फीडबैक की मदद से हम अपने सिस्टम को अधिक सुरक्षित और यूजर्स की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास कर रहे हैं।

इसी तरह ऑटोमेशन को लेकर भी काफी अनिश्चितता/ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। जहां बहुत से लोग इसे अपनी नौकरी पर खतरा मान रहे हैं वहीं ऐसे भी लोग हैं जिनका मानना है कि ऑटोमेशन से कर्मचारियों की उत्पादकता रचनात्मक तरीके से बढ़ाई जा सकती है।

स्वीडन की मीडिया कंपनी मिटमेडिया में कंटेंट डेवलपमेंट की प्रमुख ली एल'स्ट्रेड ने रोबोट पत्रकारिता भी विकसित की है। इसमें ऑटोमेटेड रोबोट्स पाठकों को पर्सनल प्रीफ्रेंस बेस्ड आर्टिकल्स उनकी न्यूज फीड्स पर भेजते हैं। उनका कहना है कि 2016 से ही उनकी कंपनी ने 'पेड कंटेंट स्ट्रेटेजी' अपना ली थी जिसमें सब्सक्राइबर्स को ऑटोमेटेड फीड्स (स्वचालित लेख) पढ़ने को मिलते हैं।

ली बताती हैं कि स्वचालित लेख मौजूदा और नए ग्राहकों के लिए तो रुचिकर हैं ही, साथ ही इससे पत्रकारों को अनूठी कहानियों पर ध्यान केंद्रित करने में भी मदद मिलती है। जो संपादकों को अधिक रचनात्मक और पाठकों के हितों और वर्तमान स्थिति से मेल खाने वाली सामग्री खोजने में मदद करेगा।
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हालांकि एआई और इससे जुड़ी संवेदनशील मुद्दों जैसे प्राइवेसी, साइबर क्राइम जैसे खतरों पर गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का निर्माण हमारी सभ्यता के इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से है।

लेकिन, सच यह भी है कि यदि इसके जोखिम से बचने का तरीका नहीं ढूंढा तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि तमाम लाभों के बावजूद आर्टिफिशियल इंजेलिजेंस के अपने खतरे हैं। 
 
पिचाई स्वीकार करते हैं कि फिलहाल हम नहीं जानते कि इसका स्वरूप आगे क्या होगा, इसलिए इस संदर्भ में और ज़्यादा शोध किए जाने की ज़रूरत है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि डिजिटल मीडिया की दशा और दिशा बदलने लगी है। तो देर किस बात की है, उठाइए अपना स्मार्टफोन और कहिए... Hey Google या Hi Siri और दुनियाभर की जानकारी से हो जाइए रूबरू... 

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