Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

नोटबंदी कड़वी‍ दवा, डॉक्टर को बीमारी का पता नहीं

हमें फॉलो करें नोटबंदी कड़वी‍ दवा, डॉक्टर को बीमारी का पता नहीं
, बुधवार, 8 नवंबर 2017 (15:38 IST)
नई दिल्ली। नोटबंदी के शुरुआती दिनों में सरकार बहुत उत्साहित थी और प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए कुल 50 दिन का समय मांगा था। रिजर्व बैंक शुरुआत में रोजाना बता रहा था कि बैंकों में कितने रद्द नोट वापस आ गए हैं। लेकिन दिसंबर के आखिरी दिनों में अचानक यह जानकारी देना बंद कर दी गई क्योंकि जिस गति से रद्द नोट बैंकों में वापस आ रहे थे, उससे सरकार की फजीहत होनी तय थी और नोटबंदी के बाद तक कुल कितने रद्द नोट वापस आ चुके हैं, इसे बताने में रिजर्व बैंक महीनों आना-कानी करता रहा। नोटबंदी के एक साल बाद भी रिजर्व बैंक की नोटों की गिनती जारी है और सरकारी जानकारों के अनुसार पूरी गिनती में छह माह और लग सकते हैं। 
 
जब संसद ने मामले में हस्तक्षेप करना चाहा तो रिजर्व बैंक ने संसदीय समिति को यह कह कर टरका दिया कि अभी रद्द नोटों की गिनती जारी है, जबकि 97 प्रतिशत रद्द नोट बैंकों में वापस आ चुके हैं। यह जानकारी दिसंबर के आखिरी दिनों में सार्वजनिक हो चुकी थी। देर से आई भारतीय रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट ने नोटबंदी की सरकारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
 
इस रिपोर्ट से उजागर हुआ कि 500 और 1000 रुपए के रद्द किए नोटों में से 99 फीसदी नोट रिजर्व बैंक के पास वापस आ गए हैं। नोटबंदी के समय रिजर्व बैंक के मुताबिक 15.44 लाख करोड़ रुपए के रद्द नोट प्रचलन में थे। इनमें से 15.28 लाख करोड़ रुपए बैंकिंग सिस्टम में वापस लौट आए हैं। महज 16000 करोड़ रुपए के प्रतिबंधित नोट वापस नहीं आए।
 
रिजर्व बैंक की इस रिपोर्ट ने बता दिया कि नोटबंदी अपने घोषित लक्ष्यों को पाने में बुरी तरह नाकाम रही। अब तक प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्री यह बताने में असमर्थ रहे हैं कि नोटबंदी के इलाज से देश का क्या भला हुआ, व्यापार बढ़ा, रोजगार में इजाफा हुआ या आर्थिक विकास दर बढ़ी। पर इतना सबको मालूम है कि नोटबंदी के दौरान बैंकों के आगे लगी लंबी-लंबी कतारों के कारण किसी कालेधन के स्वामी की अकाल मौत नहीं हुई। लेकिन 100 से ज्यादा मेहनतकश गरीब लोग नोटबंदी की यातना से अपनी जान खो बैठे।
 
यह केंद्र सरकार का सीधा-सीधा नुकसान है। इसके साथ नोटबंदी से आई भारी नकदी पर रिजर्व बैंक को 18 हजार करोड़ रुपए ब्याज देना पड़ा और नए नोटों की प्रिंटिंग पर साढ़े चार हजार करोड़ रुपए अलग से खर्च करने पड़े। ऐसे नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली की दलीलों में कोई दम नजर नहीं आता है। 
 
प्रधानमंत्री मोदी ने इसे काला धन, भ्रष्टाचार, नकली नोट, आतंकवाद और नक्सलवाद के खिलाफ जंग बताया था। पर वित्तमंत्री कहते हैं कि नोटबंदी का असली मकसद काला धन को समाप्त करना नहीं, वित्त व्यवहार बदलने के लिए किया गया फैसला था। कुल मिलाकर नोटबंदी का फैसला उस कड़वी दवा के जैसा था जिसका बुरा स्वाद अभी लोगों की जुबान पर है लेकिन दवा देने वाले डॉक्टर को पता ही नहीं था कि बीमारी क्या थी और वे किसका इलाज कर रहे थे?  
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नोटबंदी के बाद कश्मीर में बढ़ी हैं आतंकी घटनाएं