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रिसर्च: आखिर यूरोपीय और दक्षिण एशियाई लोगों पर कोविड संक्रमण का प्रभाव अलग-अलग क्‍यों?

हमें फॉलो करें रिसर्च: आखिर यूरोपीय और दक्षिण एशियाई लोगों पर कोविड संक्रमण का प्रभाव अलग-अलग क्‍यों?
, मंगलवार, 15 जून 2021 (12:28 IST)
नई दिल्ली, कोविड-19 महामारी से करोड़ों की संख्या में लोग संक्रमित हुए हैं, और लाखों लोगों की मृत्यु भी हुई हैं। लेकिन, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि कुछ दूसरे लोगों की तुलना में कोविड संक्रमण से कहीं गंभीर रूप से क्यों बीमार पड़ रहे हैं।

वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दक्षिण एशियाई लोगों में कोरोना संक्रमण के प्रभाव और परिणामों को निर्धारित करने में डीएनए की भूमिका का विश्लेषण किया है। इस अध्‍ययन में कहा गया है कि यूरोपीय लोगों में कोविड के गंभीर संक्रमण के लिए उत्तरदायी वायरस प्रकार के दक्षिण एशियाई लोगों के लिए समान रूप से घातक होने की संभावना कम है। भारत और बांग्लादेश की एक बड़ी आबादी पर किए गए अध्ययन में यह बात सामने आयी है।

इससे पहले यूरोप में रह रहें लोगों पर किए गए एक डीएनए आधारित शोध में कोरोना वायरस के ऐसे प्राकर चिह्नित किए गए थे, जो किसी व्यक्ति को कोरोना संक्रमण और उसके गंभीर प्रभाव के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रजीवल प्रताप सिंह ने कहा दक्षिण एशियाई कोरोना संक्रमित रोगियों पर किया गया संपूर्ण जीनोम आधारित यह अध्ययन एशियाई उप-महाद्वीप में हमारे लिए समय की आवश्यकता है।

डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एवं निदान केंद्र (सीडीएफडी) के निदेशक और सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के मुख्य वैज्ञानिक और इस अध्ययन के निर्देशक डॉ कुमारसामी थंगराज ने कहा है कि इस अध्ययन में हमने महामारी के दौरान तीन अलग-अलग समय पर दक्षिण एशियाई जीनोमिक डेटा के साथ संक्रमण और मामले की मृत्यु दर की तुलना की है। हमने विशेष रूप से भारत और बांग्लादेश की एक बड़ी आबादी पर केंद्रित यह अध्‍ययन किया है।

इस अध्ययन के माध्यम से यह बात भी सामने आई है कि बांग्लादेश की जनजातीय आबादी के बीच कोविड-19 परिणामों से संबंधित आनुवंशिक रूप काफी भिन्न हैं। अध्ययन से जुड़े प्रोफेसर जॉर्ज वैन ड्रिम ने कहा है कि जनसंख्या अध्ययन के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों को बांग्लादेशी आबादी में जाति और आदिवासी आबादी में अंतर करके अपने निष्कर्षों की व्याख्या करने में अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए।

सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के निदेशक डॉ विनय नंदीकुरी ने कहा है कि बढ़ते आंकड़ों के साथ, यह बिल्कुल स्पष्ट होता जा रहा है कि आनुवांशिकी, प्रतिरक्षा और जीवनशैली सहित कई कारक हैं जो कोविड-19 के प्रति संवेदनशीलता के पीछे जिम्मेदार कारक हैं। जनसंख्या आधारित अध्ययन में सीसीएमबी की विशेषज्ञता कोविड-19 महामारी से जुड़ी बारीकियों को समझने में उपयोगी सिद्ध हो रही है।

यह अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एवं निदान केंद्र (सीडीएफडी) के निदेशक और सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के मुख्य वैज्ञानिक डॉ कुमारसामी थंगराज और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे के नेतृत्व में किया गया है।

अध्ययन टीम में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अंशिका श्रीवास्तव और नरगिस खानम, आयुर्विज्ञान संस्थान, बीएचयू से डॉ अभिषेक पाठक और प्रोफेसर रोयाना सिंह, ढाका विश्वविद्यालय से डॉ गाज़ी सुल्ताना, फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी से  डॉ पंकज श्रीवास्तव और बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च से डॉ प्रशांत सुरवंझाला और बर्न विश्वविद्यालय, स्विट्जरलैंड के प्रोफेसर जॉर्ज वैन ड्रीएम  शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)

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