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होती है ‘कॉन्‍टेक्‍ट ट्रेस‍िंग’, कोरोना की लड़ाई में क्‍यों है जरूरी?

हमें फॉलो करें होती है ‘कॉन्‍टेक्‍ट ट्रेस‍िंग’, कोरोना की लड़ाई में क्‍यों है जरूरी?
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नवीन रांगियाल

साल 2020 की फरवरी में कोमल और राजीव की शादी हुई। शादी के बाद दोनों अपने पहले टूर पर स्‍व‍िटजरलैंड गए। उनका प्‍लान था क‍ि करीब 15 द‍िन वे वहां रहेंगे, इसके बाद स्‍पेन चले जाएंगे। लेक‍िन घरवालों ने सूचना दी क‍ि कोरोना वायरस फैल रहा है, इसल‍िए उन्‍हें वापस आ जाना चाह‍िए।

खतरे को देखते हुए वे भारत लौट आए, हालांक‍ि यहां भी कोरोना के मरीज म‍िलने की शुरुआत हो चुकी थी। ट्रेवल ह‍िस्‍ट्री होने की वजह से कोमल और राजीव ने सोचा क‍ि जांच करवा ली जाना चाह‍िए। हालांक‍ि दोनों को कोई लक्षण नहीं थे। इसल‍िए जांच के बाद दोनों की र‍िपोर्ट भी नेगेट‍िव ही आई।

लेक‍िन कुछ द‍िनों बाद कोमल की तबीयत खराब हुई उसे अस्‍पताल ले जाया गया, दोबारा जांच हुई तो वो कोरोना पॉज‍िटि‍व न‍िकली। ठीक इसी तरह राजीव को भी बाद में कोरोना न‍िकला। दोनों का इलाज क‍िया जा रहा है।

लेक‍िन दूसरी तरफ स्‍वास्‍थ्‍य वि‍भाग की जो चुनौती है, वो यह है ‍क‍ि उन लोगों को खोजना जो भारत वापसी के बाद कोमल और राजीव के संपर्क में आए थे। उसके बाद फ‍िर राजीव और कोमल से म‍िलने वाले लोगों से कौन म‍िला।

कोराना पॉज‍िट‍िव लोगों के संपर्क में आने वाले लोगों को ट्रेस करना ही ‘कॉन्‍टेक्‍ट ट्रेस‍िंग’ कहलाता है।

कोरोना के युद्ध में कॉन्‍टेक्‍ट ट्रेस‍िंग सबसे अहम है। यही इससे बचने का सबसे असरदार हथि‍यार है। लेक‍िन कई लोग यह छ‍िपा रहे हैं क‍ि वे प‍िछले द‍िनों कहां गए और क‍िस क‍िस म‍िले, इससे स्‍वास्‍थ्‍य व‍िभाग को बहुत परेशानी आ रही है और यही कोराना के संक्रमण के पसरने का एक कारण है।

डब्‍लूएचओ के मुताबि‍क कॉन्‍टेक्ट ट्रेसिंग तीन तरह से होती है।

संपर्कों की पहचान करना 
यह पहला तरीका है, ज‍िसमें संक्रमि‍त लोगों से पूछताछ की जाती है क‍ि प‍िछले द‍िनों वे कहां कहां गए और क‍िस कि‍स से म‍िले। जैसे राजीव और कोमल स्‍व‍िटजरलैंड से आने के बाद घरवालों के अलावा क‍िन क‍िन र‍िश्‍तेदारों से म‍िले। या क‍िस दोस्‍त और जान पहचान वालों से मुलाकात की।

संपर्कों की सूची तैयार करना 
जब यह पता लग जाए क‍ि संक्रम‍ित लोगों से कौन कौन संपर्क में आया था तो उनकी सूची बनाई जाती है, उन्‍हें सूचना दी जाती है। उन्हें कहा जाता है कि उन्हें खुद को आइसोलेट करना है। इस दौरान अगर कोई लक्षण दिखाई दे, तो तुरंत मेडिकल मदद लेनी होगी। इन्फेक्टेड हो चुके लोगों के संपर्क में कौन-कौन आया था, इसकी जानकारी रखना स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए ज़रूरी होता है, ज‍िससे वे ये जान सकें कि संक्रमण क‍िस राज्‍य या शहर में कहां तक फ़ैल सकता है।

संपर्कों का फॉलो-अप करना
जिन लोगों के संक्रमण होने की आशंका होती है, स्वास्थ्य अधिकारी लगातार उनके संपर्क में रहते हैं। वे उनकी न‍िगरानी करते हैं और ये देखते रहते हैं कि उनमें से किसी को कोई लक्षण दिखने तो शुरू नहीं हुए। अगर ऐसा होता है तो तुरंत जांच की जाती है।

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