Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

फन्ने खान के निर्देशक अतुल मांजरेकर से वेबदुनिया की विशेष बातचीत

हमें फॉलो करें फन्ने खान के निर्देशक अतुल मांजरेकर से वेबदुनिया की विशेष बातचीत

रूना आशीष

'मेरी कहानी एक ऐसे शख्स से शुरू होती है, जो फनकार है। वो अपने सपने लेकर कुछ बड़ा बनने की ख्वाहिश रखता है लेकिन कहीं वो अपने सपनों के साथ-साथ हकीकत को देखता है और रोजी-रोटी कमाने के चक्कर में आ जाता है। उसके अंदर का कलाकार जो है, वो इन सब में कहीं रह जाता है लेकिन वो कहीं खत्म नहीं होता है। तो 'फनकार' शब्द से 'फन्ने खान' का जन्म हुआ। उत्तर भारत में कहते भी हैं कि अपने आपको कहीं का 'फन्ने खान' समझता है क्या। मैं उस समय की बात कर रहा हूं, जब लोगों के पास टीवी का माध्यम नहीं था। तो कुछ लोग, जो कभी लिखते हैं या गाते हैं तो वे लोग भी अपने सपनों को सच तो करना चाहते हैं लेकिन समय के साथ-साथ उनके ये सपने हॉबी बनकर रह जाते हैं।'
 
बाप-बेटी के रिश्तों की बात करती फिल्म 'फन्ने खान' इस हफ्ते रिलीज हुई है। फिल्म के निर्देशक अतुल मांजरेकर, निर्माता राकेश ओमप्रकाश मेहरा के खास एडिटर्स में से हैं। तो जब इस फिल्म को बनाने का बात आई तो राकेश मेहरा ने अतुल को ही चुना। अतुल से बात की 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष ने।
 
ये बाप-बेटी के रिश्ते पर बनी फिल्म है, इसे चुनने का कोई खास कारण?
ये एक डच फिल्म 'एवरीबडी इज फेमस' का भारतीय रूपांतरण है। मुझे ये ही पसंद आया कि ये बाप-बेटी की कहानी है। मेरी फिल्म बताएगी कि जब मौका पड़ता है तो कैसे एक बाप अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए हर काम करने को तैयार हो जाता है। हमेशा टीनएजर्स को लगता रहता है कि मां-बाप उनकी बात नहीं समझते या नहीं मानते, तो इस फिल्म के जरिए मैं उन बच्चों को बताना चाहता था कि मां-बाप तुम्हें प्यार करते हैं। इस कहानी के जरिए टीनएजर्स को मां-पिता की बात बताना चाहता था, वहीं मां-बाप की तरफ से ये जाहिर करना चाहता था कि मां और बाप तुम्हारा भला ही चाहते हैं। वे तुम्हें बेहतर जिंदगी देना चाहते हैं। वे तुम्हारा ध्यान रखने में कोई भी कमी नहीं करना चाहते हैं। वे ये चाहते हैं कि जो चीज उन्हें नहीं मिली, वे उनके बच्चों को मिल सके। जो गलती वे कर चुके हैं, कम से कम बच्चे न करें।
 
आपको लगता है कि नई पीढ़ी इस फिल्म को पसंद करेगी?
आज की नई पीढ़ी बहुत स्मार्ट है। हमारे समय की बात करूं तो मैं बांद्रा पूर्व का निवासी रहा हूं। मेरी दुनिया भी उतनी ही सीमित थी। जो हम सीख रहे थे, वे किताबों या अखबारों से सीख रहे थे। हमें बहुत कुछ चीजों को सोचकर समझना पड़ता था। लेकिन आज के बच्चे इंटरनेट के जरिए पूरी दुनिया के नागरिक बन चुके हैं। वे घर में बैठे एक क्लिक से किसी भी देश में होने वाली घटना को देख सकते हैं।
 
'सेक्रेड गेम्स' जैसे डिजिटल शोज देखने के बाद आपको लगता है कि नई पीढ़ी को खुलापन दिखाना पड़ेगा?
अगर कहानी की जरूरत है कि खुलापन दिखाया जाए, तो दिखाना पड़ेगा। लेकिन अगर कहानी में जरूरत ही नहीं, तो मैं अपनी फिल्म में क्यों कोई चीज दिखाऊं? वैसे भी निर्देशक का काम है कहानी को सही तरीके से कहना। फिर कहानी में जो पात्र हैं, इसके जरिए वो कहानी को नई दिशा देता है। मेरा काम है कहानी और अपने पात्रों के लिए सच्चे बने रहना।
 
'अच्छे दिन...' गाना क्या मोदी सरकार से प्रेरित तो नहीं?
(हंसते हुए) नहीं, वीडियो देखिए तो समझ में आएगा कि ये एक पिता कह रहा है कि उसके अच्छे दिन कब आएंगे? उसकी बेटी कब नाम कमाएगी? ये एक पिता है, जो खुद कभी सिंगर नहीं बन पाया लेकिन चाहता है कि उसकी बेटी जरूर गायिका बन जाए। इसमें कहीं कोई राजनीतिक रंग नहीं है।
 
अनिल कपूर के कैरेक्टर के लिए कोई खास तैयारी की गई?
नहीं, मैं बचपन में अपने गली या मुहल्ले में कई बार ऑर्केस्ट्रा देखता था जिसमें कभी कोई जूनियर किशोर कुमार होता था, तो कोई जूनियर रफी। किशोर कुमार के गाने, जो कभी राजेश खन्ना पर पिक्चराइज किए गए हों, तो वो गायक भी राजेश खन्ना का ही तरह अदाएं करता था और लोगों को वो पसंद भी आता था। मुझे ये सब बड़ा रोचक लगता था। मैं कई बार सोचता था कि एक समय के बाद जब ये लोग ऑर्केस्ट्रा का हिस्सा नहीं होते तो क्या करते हैं? कहां जाते हैं या कहीं यूं ही गुम हो जाते हैं? तो मेरे दिल के इन सवालों को मैंने इस फिल्म में दिखाया है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हॉरर फिल्म की शूटिंग के दौरान श्रद्धा और राजकुमार के साथ घटी अजीब घटना