Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

पाकिस्तान जैसे आर्थिक संकट के शिकार देशों को कर्ज क्यों देता है IMF?

हमें फॉलो करें पाकिस्तान जैसे आर्थिक संकट के शिकार देशों को कर्ज क्यों देता है IMF?

BBC Hindi

, रविवार, 5 फ़रवरी 2023 (07:57 IST)
पिछले साल कर्ज को लेकर बातचीत रुकने के बाद पाकिस्तान की उम्मीदें आईएमएफ को लेकर एक बार फिर से जग गई हैं। दरअसल आईएमएफ ने पाकिस्तान को दिए जाने वाले कर्ज की किस्त को रोक रखा है। उसकी तरफ से पाकिस्तान सरकार से टैक्स इकट्ठा करने के मामले में कठोर मांग रखी गई है। इस्लामाबाद में इसी मसले को लेकर बातचीत चल रही है।
 
आईएमएफ यानी 'अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष' दुनिया भर के तमाम देशों को सस्ते दर पर कर्ज मुहैया कराता है। इसकी स्थापना 1944 में की गई थी। पाकिस्तान 11 जुलाई 1950 को आईएमएफ का सदस्य बना था।
 
आईएमएफ क्या है?
आईएमएफ 190 सदस्य देशों की एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है। ये सब मिलकर विश्व की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने की कोशिश करते हैं।
 
कोई भी देश शर्तें पूरी करके इसमें शामिल होने का आवेदन दे सकता है। इन शर्तों में अर्थव्यवस्था से संबंधित जानकारी और कोटा सब्सक्रिप्शन कही जाने वाली देय रकम शामिल है। जो देश जितना अमीर होता है, सब्सक्रिप्शन के लिए उसे उतनी अधिक राशि अदा करनी होती है।
 
किसी अर्थव्यवस्था की निगरानी और उसके समर्थन के लिए आईएमएफ तीन काम करता है:
  • आर्थिक और वित्तीय मामलों की ट्रैकिंग। यह देखता है कि किसी देश का प्रदर्शन कैसा है और उसे किन ख़तरों का सामना है, जैसे ब्रिटेन में 'ब्रेग्ज़िट' की अस्थिरता के बाद व्यापारिक विवादों और पाकिस्तान में चरमपंथियों की हिंसक कार्रवाइयों के आर्थिक प्रभाव।
  • सदस्य देशों को सुझाव दिए जाते हैं कि वह अपनी अर्थव्यवस्था कैसे बेहतर बना सकते हैं।
  • उन देशों के लिए अल्पकालिक ऋण और आर्थिक सहायता जो संकट से दो-चार हैं ।
 
आईएमएफ के इतिहास का सबसे बड़ा 57 अरब डॉलर का कर्ज 2018 में अर्जेंटीना ने लिया था। सदस्य देशों को देने के लिए आईएमएफ के पास कुल राशि एक ट्रिलियन डॉलर है।
 
आईएमएफ के उद्देश्य क्या हैं?
अक्सर आईएमएफ को कर्ज लेने का अंतिम रास्ता समझा जाता है। आर्थिक संकट से प्रभावित किसी भी देश की आख़िरी उम्मीद आईएमएफ से जुड़ी रहती है।
 
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के आर्थिक विशेषज्ञ बेंजामिन फ्रेडमैन कहते हैं, "आईएमएफ के प्रभावों का निर्धारण मुश्किल है, क्योंकि यह जानना असंभव है कि 'इसके हस्तक्षेप से किसी देश में स्थितियों में सुधार हुआ है या हालात और ख़राब हुए हैं और इसका विकल्प क्या हो सकता है।"
 
2002 में ब्राज़ील ने अपने कर्जों की वजह से डिफॉल्ट (दिवालिया) होने से पहले आईएमएफ का कर्ज लिया था। वहां की सरकार जल्द ही अर्थव्यवस्था को सुधारने में सफल हुई और उसने दो साल पहले ही अपने सभी कर्ज चुका दिए।
 
webdunia
आईएमएफ की आलोचना क्यों की जाती है?
आईएमएफ कर्ज देते हुए कभी-कभी सदस्य देशों पर कठोर शर्तें लगाता है। इनकी यह कहकर आलोचना की जाती है कि शर्तें ज़रूरत से ज्यादा मुश्किल हैं।
 
इनमें सरकारी कर्जों में कमी, कॉरपोरेट टैक्सों में कमी और देश की अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी निवेश के लिए खोलना शामिल हैं।
 
सन 2009 में जब यूरोप का आर्थिक संकट शुरू हुआ तो ग्रीस सबसे अधिक प्रभावित हुआ। आईएमएफ से मदद हासिल करने के लिए ग्रीस को अपनी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने पड़े। आलोचकों का कहना है कि आईएमएफ के कहने पर ग्रीस की कम ख़र्च करने की नीति सख़्त हो गई थी जिसने देश की अर्थव्यवस्था और समाज दोनों को नुक़सान पहुंचाया।
 
आईएमएफ की प्रमुख कौन हैं?
2019 से क्रिस्टलीना जॉर्जिवा आईएमएफ की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। वे इससे पहले विश्व बैंक की चीफ़ एग्ज़क्यूटिव थीं जिन्होंने आईएमएफ में क्रिस्टीना लेगार्ड की जगह ली। क्रिस्टीना अब केंद्रीय यूरोपियन बैंक की अध्यक्ष हैं।
 
क्रिस्टलीना जॉर्जिवा बुल्गारिया से संबंध रखने वाली पहली आईएमएफ प्रमुख हैं, जो यूरोपीय संघ का सबसे ग़रीब देश है।
 
आईएमएफ की शुरुआत के बाद से आमतौर पर संस्था का प्रमुख यूरोपीय होता है जबकि विश्व बैंक की अध्यक्षता अमेरिकी नागरिक के पास रहती है।
 
आईएमएफ क्यों बनाया गया था?
आईएमएफ 1944 में अमेरिका में होने वाली ब्रेटन वुड्स कॉन्फ़्रेंस के बाद अस्तित्व में आया था। इस कॉन्फ़्रेंस में दुनिया भर से दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 44 देशों ने हिस्सा लिया था। इनमें ब्रिटेन, अमेरिका और सोवियत यूनियन शामिल थे।
 
इस कॉन्फ़्रेंस में वैश्विक अर्थव्यवस्था के मामलों के साथ-साथ एक सुदृढ़ विनिमय दर की व्यवस्था बनाने और युद्ध से प्रभावित यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चर्चा हुई थी। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विश्व बैंक और आईएमएफ अस्तित्व में आए।
 
आईएमएफ के सदस्य एक फ़िक्स्ड एक्सचेंज रेट की व्यवस्था पर सहमत हुए थे, जिसके बारे में तय हुआ था कि उसे 1970 तक जारी रखा जाएगा।
 
पाकिस्तान कब-कब आईएमएफ के पास गया?
पाकिस्तान के आईएमएफ प्रोग्राम में शामिल होने के बारे में इस संस्था की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार पाकिस्तान के आईएमएफ के साथ अभी तक 23 प्रोग्राम हुए। पहला प्रोग्राम दिसंबर 1958 में तय हुआ, जिसके तहत पाकिस्तान को ढाई करोड़ डॉलर देने का समझौता हुआ था।
 
इसके बाद आईएमएफ प्रोग्रामों का सिलसिला बढ़ता चला गया। अंतिम बार आईएमएफ बोर्ड ने अगस्त 2022 में एक्सटेंडेड फ़ंड फ़ैसिलिटी के सातवें और आठवें रिव्यू के तहत पाकिस्तान को 1.1 अरब डॉलर कर्ज दिया था।
एग्ज़िक्यूटिव बोर्ड ने जुलाई 2019 में पाकिस्तान के लिए छह अरब डॉलर कर्ज की मंज़ूरी दी थी।

आईएमएफ प्रोग्राम के इतिहास के अनुसार फ़ौजी राष्ट्रपति अयूब ख़ान के दौर में पाकिस्तान के आईएमएफ से तीन प्रोग्राम हुए।
 
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की पहली सरकार के दौर में, जो प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो की अध्यक्षता में बनी थी, पाकिस्तान के आईएमएफ से चार प्रोग्राम हुए।
 
फ़ौजी राष्ट्रपति जनरल ज़ियाउल हक़ के दौर में पाकिस्तान आईएमएफ के दो प्रोग्रामों में शामिल हुआ। तो पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पहली सरकार में एक आईएमएफ प्रोग्राम में पाकिस्तान शामिल हुआ।
 
बेनज़ीर भुट्टो के प्रधानमंत्रित्व काल के दूसरे दौर में पाकिस्तान आईएमएफ के तीन प्रोग्राम में शामिल हुआ और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के दूसरे कार्यकाल में पाकिस्तान दो आईएमएफ प्रोग्राम में शामिल हुआ।
 
पूर्व फ़ौजी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के दौर में दो आईएमएफ प्रोग्राम हुए, पीपीपी की 2008 से 2013 में बनने वाली सरकार में एक प्रोग्राम, पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ की 2013 से 2018 तक चली सरकार में एक प्रोग्राम और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के दौर में एक आईएमएफ प्रोग्राम में पाकिस्तान शामिल हुआ जिसे तहरीक-ए-इंसाफ की सरकार गिरने के बाद नवाज़ लीग के नेतृत्व में बनी मिली-जुली सरकार ने जारी रखा।
 
आईएमएफ किसी देश को कर्ज कैसे देता है?
  • सबसे पहले एक सदस्य देश आईएमएफ से आर्थिक सहायता के लिए आवेदन करता है
  • उस देश की सरकार और आईएमएफ का दल आर्थिक व वित्तीय स्थिति और कर्ज की रक़म पर बातचीत करते हैं
  • देश की सरकार और आईएमएफ आर्थिक नीतियों पर सहमति जताते हैं जिसके बाद आईएमएफ उस देश को कर्ज देने पर राज़ी हो जाता है
  • आईएमएफ की शर्तों का मतलब उसकी नीतिगत पहल होती है जो कर्ज लेने के लिए एक देश को करनी होती है
  • पॉलिसी प्रोग्राम आईएमएफ के बोर्ड को पेश किया जाता है हालांकि इमरजेंसी फ़ाइनैंसिंग के तहत इस प्रक्रिया को तेज़ किया जा सकता है
  • एग्ज़ीक्यूटिव बोर्ड कर्ज की मंज़ूरी देता है जिसके बाद आईएमएफ नीतिगत पहल की निगरानी करता है
  • देश की आर्थिक और वित्तीय स्थिति बेहतर होने पर आईएमएफ को कर्ज की रक़म वापस की जाती है ताकि उसे दूसरे सदस्य देशों के लिए उपलब्ध कराया जा सके
 
विकासात्मक बैंकों के उलट आईएमएफ किसी विशेष परियोजना के लिए कर्ज नहीं देता। उसका उद्देश्य देशों को आर्थिक संकट में आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना है। ऐसे में आर्थिक सुदृढ़ता और उत्पादकता के लिए नीतियों पर अमल को सुनिश्चित किया जाता है।
 
किसी देश में आर्थिक संकट की वजह बैलेंस ऑफ़ पेमेंट क्राइसिस (यानी भुगतान में असंतुलन) हो सकती है जिसमें एक देश के पास इतने पैसे नहीं होते कि वह अपना विदेशी कर्ज अदा कर सके या आयात कर सके या फिर उसकी आमदनी और ख़र्च में बड़े घाटे की वजह से मौद्रिक संकट पैदा हो सकता है।
 
आईएमएफ के अनुसार उन संकटों से उत्पादकता में कमी आ सकती है, बेरोज़गारी बढ़ सकती है, आमदनी में कमी आ सकती है और अस्थिरता का वातावरण पैदा हो सकता है। गहरे संकट की स्थिति में दिवालिया होने का ख़तरा बढ़ जाता है और कर्जों की व्यवस्था अपरिहार्य हो जाती है।
 
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का बयान
इस बीच जियो न्यूज़ ने ख़बर दी है कि शुक्रवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि आईएमएफ आर्थिक संकट से उबारने के लिए इस्लामाबाद के साथ कठोर शर्तें रख रहा है।
 
शहबाज शरीफ ने कहा, "इस समय आईएमएफ का एक दल इस्लामाबाद में वित्त मंत्री और उनकी टीम को कठोर शर्तें मानने को कह रहा है। मैं इसके बारे में और अधिक जानकारी इस समय नहीं दे सकता लेकिन हमारी वित्तीय चुनौतियां अकल्पनीय हैं। आईएमएफ की शर्तें उससे कहीं ज़्यादा मुश्किल हैं। लेकिन हमारे पास उन्हें मानने के सिवा और कोई उपाय नहीं है।"

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

असम सरकार का बाल विवाह के खिलाफ बड़ा अभियान