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कोरोना वायरस: क्या खाएं कि आपके शरीर से हार जाए वायरस

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BBC Hindi

, गुरुवार, 22 अप्रैल 2021 (12:29 IST)
ज़ारिया गोवेट (बीबीसी फ़्यूचर)
 
कोरोनावायरस से पैदा हुई महामारी यानी कोविड-19 का प्रकोप किस दवा से ख़त्म होगा? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए दुनियाभर के शोधकर्ता मेहनत कर रहे हैं। अभी तक एक ही बात साफ़ है कि जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत है उन पर कोविड-19 का हमला घातक नहीं होता। अब बाज़ार इसी बात को भुनाने में लग गया है। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के अनेक उपाय मीडिया, सोशल मीडिया पर सुझाए जा रहे हैं।
 
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। हर महामारी के समय में ऐसी बातें होती रहती हैं। 1918 में जब स्पेनिश फ्लू फैला था तब भी इसी तरह की बातें हुई थीं और आज 2021 में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है। हालांकि इन सौ वर्षों में मेडिकल साइंस के लिहाज़ से इंसान ने काफ़ी तरक़्क़ी कर ली है।
 
हाल में इन दिनों एक अफ़वाह सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल है। कहा जा रहा है कि ज़्यादा से ज़्यादा हस्तमैथुन से ब्लड सेल बढ़ते हैं। साथ ही ऐसे फल खाने की सलाह दी जा रही है जिनमें विटामिन-सी और एंटीऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में हो। बहुत से लोग तो प्रो-बायोटिक्स लेने की सलाह भी दे रहे हैं। कोई कह रहा है कि ग्रीन-टी और लाल मिर्च से कोविड-19 के कमज़ोर किया जा सकता है।
 
रिसर्च कहती है कि सुपर फ़ूड बाज़ार का फैलाया हुआ एक मिथक है। साइंस की रिसर्च में इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि इनसे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। अमरीका की येल यूनिवर्सिटी की इम्युनोलॉजिस्ट अकीको इवासाकी का कहना है कि प्रतिरोधक क्षमता के 3 हिस्से होते हैं- त्वचा, श्वसन मार्ग और म्यूकस झिल्ली। ये तीनों हमारे शरीर में किसी भी संक्रमण रोकने में मददगार हैं। अगर कोई वायरस इन तीनों अवरोधकों को तोड़कर शरीर में घुस जाता है, तो फिर अंदर की कोशिकाएं तेज़ी से सतर्कता बढ़ाती हैं और वायरस से लड़ना शुरू कर देती हैं।
 
अगर इतने भर से भी काम नहीं चलता है तो फिर एडॉप्टिव इम्यून सिस्टम अपना काम शुरू करता है। इसमें कोशिकाएं, प्रोटीन सेल और एंटीबॉडी शामिल हैं। शरीर के अंदर ये रोग प्रतिरोधक क्षमता उभरने में कुछ दिन या हफ़्ता भर लग सकता है। एडॉप्टिव इम्यून सिस्टम कुछ ख़ास तरह के विषाणुओं से ही लड़ सकता है।
 
हल्की खांसी, नज़ला, बुख़ार, सिरदर्द के लक्षण किसी वायरस की वजह से नहीं होते हैं। बल्कि ये हमारे शरीर की उस प्रतिरोधक क्षमता का हिस्सा होते हैं, जो हमें जन्म से मिलती है। बलग़म के ज़रिए बैक्टीरिया को बाहर निकालने में मदद मिलती है। बुखार, शरीर में वायरस के पनपने से रोकने का माहौल बनाता है। ऐसे में अगर किसी के कहने पर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली चीज़ों का सेवन कर भी लिया जाए, तो उसका असल में कोई फ़ायदा होने नहीं वाला है।
 
अक्सर लोग मल्टी विटामिन के सप्लीमेंट इस उम्मीद में लेते रहते हैं कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाएगी। रिसर्च कहती हैं कि जो लोग पूरी तरह सेहतमंद हैं उन्हें इसकी ज़रूरत ही नहीं।
 
अतिरिक्त सप्लीमेंट लेने की आदत का शिकार सिर्फ़ आम इंसान नहीं हैं। पढ़े-लिखे लोग भी इस जाल में फंस जाते हैं। मिसाल के लिए 2 बार नोबेल अवॉर्ड विजेता लाइनस पॉलिंग ज़ुकाम से लड़ने के लिए हर रोज़ 18,000 मिलीग्राम विटामिन सी लेने लगे। ये मात्रा शरीर की ज़रूरत से 300 गुना ज़्यादा थी। विटामिन-सी, नज़ला ज़ुकाम से लड़ने में बहुत थोड़ी ही मदद कर पाता है।
 
इसे लेकर बाज़ार का बिछाया हुआ मायाजाल ज़्यादा है। जानकारों का कहना है कि विकसित देशों में जो लोग संतुलित आहार लेते हैं, उन्हें अपने खाने से ही शरीर की ज़रूरत के मुताबिक़ विटामिन-सी मिल जाता है। वहीं विटामिन-सी का ज़्यादा सेवन गुर्दे में पथरी की वजह बन सकता है।
 
जानकारों के अनुसार जब तक शरीर में किसी विटामिन की कमी ना हो, तब तक किसी भी तरह का सप्लीमेंट हानिकारक हो सकता है। सिर्फ विटामिन-डी का सप्लीमेंट ही फ़ायदेमंद साबित हो सकता है।
 
अकीका इवासाकी के मुताबिक़ बहुत सी स्टडी में पाया गया है कि विटामिन-डी की कमी से सांस संबंधी रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। इसकी कमी से ऑटो इम्युन वाली बीमारियां भी हो सकती हैं।
 
लोगों में विटामिन-डी की कमी का होना सिर्फ़ ग़रीब देशों की समस्या नहीं है, बल्कि पैसे वाले देशों में भी ये एक गंभीर मसला है। एक स्टडी के मुताबिक़ 2012 तक सारी दुनिया में एक अरब से ज़्यादा लोग ऐसे थे जिनमें विटामिन-डी की कमी थी। विटामिन-डी की कमी उन लोगों में ज़्यादा होती है, जो धूप से दूर घरों में अंदर रहते हैं।
 
हस्तमैथुन को लेकर सदियों से कई भ्रांतियां समाज में रही हैं। यहां तक कि वर्षों तक इसे कई बीमारियों की जड़ समझा जाता रहा। लेकिन मॉडर्न रिसर्च इसके स्वास्थ्य संबंधी कई फ़ायदे गिनाते हैं। लेकिन ये दावा सरासर ग़लत है कि हस्तमैथुन कोविड-19 से बचाने में सक्षम है।
 
शरीर में व्हाइट सेल्स से विषैले ऑक्सीजन पदार्थ निकलते हैं, जो दुधारी तलवार की तरह काम करते हैं। एक तरफ़ तो ये शरीर में किसी बैक्टीरिया या वायरस को बढ़ने से रोकते हैं, तो दूसरी ओर स्वस्थ कोशिकाओं को ख़त्म करते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर करते हैं। इसीलिए सभी कोशिकाओं को स्वस्थ और सुरक्षित रखने के लिए एंटी ऑक्सीडेंट की ज़रूरत होती है। हमें ये एंटी ऑक्सीडेंट काफ़ी मात्रा में फलों, सब्ज़ियों से मिल जाते हैं। इसके लिए अलग से सप्लीमेंट लेने की ज़रूरत नहीं है। एंटी ऑक्सीडेंट रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कितने मददगार हैं, इस पर भी अभी रिसर्च जारी है। लेकिन, ये रिसर्च अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं।
 
कुछ बैक्टीरिया ऐसे होते हैं, जो शरीर के दोस्त होते हैं। हमारी सेहत के लिए उनकी बहुत ज़रूरत होती है। कई बार शरीर में इन बैक्टीरिया की कमी हो जाती है। इसीलिए बाज़ार से प्रोबायोटिक्स के सप्लीमेंट लेने पड़ते हैं। संकट के इस दौर में कुछ वेबसाइट पर दावा किया जा रहा है कि प्रोबायोटिक्स कोविड-19 से लड़ने में मददगार है। ऐसे तमाम दावे झूठ हैं। इस दावे पर अभी तक कोई भी रिसर्च पक्के सबूत पेश नहीं कर पाई है।
 
अब सवाल ये है कि आख़िर कोविड-19 से बचा कैसे जाए। इसके लिए फ़िलहाल तो यही ज़रूरी है कि जितना हो सके सोशल डिस्टेंसिंग और साफ़ सफ़ाई का ध्यान रखिए। संतुलित आहार लीजिए। नियम से व्यायाम कीजिए। किसी वेलनेस एक्सपर्ट के बहकावे में आकर ख़ुद ही अपने डॉक्टर मत बनिए। परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लीजिए।
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