दिलीप कुमार शर्मा, गुवाहाटी से बीबीसी हिंदी के लिए
"सर्बानंद सोनोवाल पर हमें पूरा विश्वास है। हम कोई दूसरे विकल्प पर विचार नहीं कर सकते। लेकिन इस समय जो सब कुछ (विरोध) हो रहा है इसके लिए कहीं टेक्निकल डिफ़ॉल्ट हो सकता है। दिल्ली से इस बारे में सलाह-मशविरा हो रहा है। नागरिकता संशोधन क़ानून के इस मुद्दे पर शनिवार को मुख्यमंत्री के साथ उनके आवास पर हमारे विधायक दल की बैठक होनी है। विधायकों के मन में डर बैठा हुआ है। ऊपरी असम के विधायक दो हिस्सों में बंटे हुए हैं। हम अपनी बात मुख्यमंत्री के सामने रखेंगे।"
असम में नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर हो रहे विरोध के बीच डिब्रूगढ़ से भाजपा विधायक प्रशांत फूकन ने कुछ इस तरह अपनी बात कही।
प्रशांत फूकन साल 2006 में जब पहली बार भाजपा के टिकट पर डिब्रूगढ़ से विधायक चुने गए थे उस समय सर्बानंद सोनोवाल क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद (एजीपी) से डिब्रूगढ़ लोकसभा सीट के सांसद थे। तीन बार लगातार डिब्रूगढ़ से भाजपा के विधायक बने प्रशांत फूकन सीएए के ख़िलाफ़ हो रहे विरोध से उत्पन्न स्थिति को देखते हुए अब तक अपने विधानसभा क्षेत्र में नहीं गए हैं।
विधायक फूकन को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं लोग अपना गुस्सा उन पर न निकाल लें। लिहाजा वो काफी दिनों से गुवाहाटी स्थित विधायक आवास में ही रह रहे हैं।
दरअसल इससे पहले प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री सोनोवाल, केंद्रीय मंत्री रामेश्वर तेली और कई अन्य भाजपा नेताओं के घर पर पथराव और तोड़फोड़ की थी।
भाजपा विधायक फूकन अब चाहते हैं कि मुख्यमंत्री इस मामले का हल निकालने के लिए दिल्ली जाएं और वहां केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इस मुद्दे पर बात करें।
फूकन कहते है,"जो चार महत्वपूर्ण प्वाइंट्स है मैं उन पर सीएम सोनोवाल के साथ बात करूंगा। इनमें पहला प्वाइंट्स होगा हमारी भाषा। असमिया भाषा को आगे बढाना होगा। क्योंकि असम में असमिया भाषा ही चलेगी। इसके अलावा भूमि नीति में बदलाव तथा छह जनजातियों को अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा दिया जाए और चौथा प्वाइंट नागरिकता अधिनियम की धारा 6 (ए) है। अगर ये चार प्वाइंट्स ठीक कर लिए जाएं तो लोगों का गुस्सा कम हो सकता है।"
नागरिकता क़ानून के लागू होने से इसका एक बड़ा प्रभाव असमिया भाषा पर पड़ेगा। अपने ही प्रदेश में असमिया लोगों के भाषाई अल्पसंख्यक होने का ख़तरा बढ़ जाएगा।
दरअसल असम में सालों से बसे बंगाली बोलने वाले मुसलमान पहले अपनी भाषा बंगाली ही लिखते थे, लेकिन असम में बसने के बाद उन लोगों ने असमिया भाषा को अपनी भाषा के तौर पर स्वीकार कर लिया।
राज्य में तकरीबन 48 फ़ीसदी आबादी असमिया बोलती है। लेकिन अगर बंगाली बोलने वाले मुसलमान असमिया भाषा छोड़ देते है तो यह 35 फीसदी ही बचेगी। जबकि असम में बंगाली भाषा बोलने वाले 28 फीसदी है और इस कानून के लागू होने से ये 40 फीसदी तक पहुंच जाएगी।
असमिया लोगों के मन में गुस्सा
आखिर इस विवादित क़ानून के ख़िलाफ़ असमिया लोगों के मन में इतना गुस्सा क्यों है?
विधायक फूकन ने बीबीसी से कहा, "प्रदेश में विरोध हो रहा है लेकिन कुछ लोग बिल्कुल गलत बात फैला रहे हैं कि बांग्लादेश से 2 करोड़ लोग नागरिकता के लिए यहां आ जाएंगे। कोई कह रहा है 3 करोड़ आ जाएंगे। दरअसल कुछ लोग नागरिकता संशोधन क़ानून की गलत व्याख्या कर रहे हैं। जबकि ऐसा कुछ नहीं होगा। असम में बाहर से कोई नया आदमी नागरिकता के लिए नहीं आएगा। हमारी सरकार उन लोगों को नागरिकता देगी जो पहले से ही यहां रह रहे हैं।"
भले ही भाजपा विधायक ये सारी बातें काफी सहजता से बोल रहे थे लेकिन वो यह भी स्वीकार रहे थे कि उनकी पार्टी लोगों को यह बात समझाने में विफल रही।
इससे पहले सोटिया से भाजपा विधायक पद्म हजारिका ने मुख्यमंत्री सोनोवाल से मुलाक़ात करने के बाद कहा था, "हम सभी विधायक एक साथ आए हैं ताकि मौजूदा परिस्थितियों की समीक्षा कर सकें। हम देख रहे हैं कि प्रदर्शन कर रहे लोग विधायकों को चुन-चुन कर निशाना बना रहे हैं। लिहाजा हमने मुख्यमंत्री के साथ अपने विचार साझा किए हैं। हमने मुख्यमंत्री से आग्रह कि वे असमिया लोगों की भाषा, ज़मीन और संस्कृति की सुरक्षा के लिए ज़रूरी कदम उठाएं।"
अपने विधानसभा क्षेत्र में जाने से कतरा रहे करीब 20 से अधिक विधायकों ने मुख्यमंत्री से मुलाक़ात कर नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ लोगों के गुस्से के बारे उन्हें अवगत कराया था।
सोनोवाल का डैमेज कंट्रोल
यही वजह है कि अपने तीन साल से अधिक कार्यकाल में इक्का-दुक्का प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले मुख्यमंत्री सोनोवाल ने शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर लोगों को आश्वस्त करने का प्रयास किया।
मुख्यमंत्री ने अपनी पुरानी बातों को दोहराते हुए कहा, "असम की धरती पुत्रों के अधिकारों को कोई नहीं चुरा सकता और हमारी भाषा या हमारी पहचान को कोई ख़तरा नहीं है।"
लेकिन इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद जब मुख्यमंत्री नलबाड़ी शहर में एक शांति रैली में भाग लेने पहुंचे तो वहां ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने भी एक विरोध रैली निकाली।
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेता अक्षय डेका ने कहा, "असम के लोग अगर आंदोलन नहीं करेंगे तो उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। असम का अस्तित्व बचाने के लिए हमें आंदोलन करना पड़ेगा।"
छात्र राजनीति से असम के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे सर्बानंद सोनोवाल को पिछले विधानसभा चुनाव में 'जातीय नायक' के तौर पर काफी प्रसिद्धि मिली थी, लेकिन नागरिकता क़ानून को लेकर लोगों को उनसे जिस जरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद थी शायद वैसा जवाब उन्होंने अभी तक नहीं दिया।
प्रदेश में नागरिकता क़ानून को लेकर हो रहे विरोध पर मुख्यमंत्री ने अब तक जो भी बयान दिया है, लोग उनकी बात मानने को तैयार क्यों नहीं है?
इस सवाल का जवाब देते हुए वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ नाथ गोस्वामी ने बीबीसी से कहा, "मुख्यमंत्री वही बात दोहरा रहे हैं जो उनके केंद्रीय नेता बोलते है। मुख्यमंत्री बोल रहे है कि असम की भाषा, संस्कृति को कोई नुकसान नहीं होगा। लेकिन प्रदेश में केवल छात्र ही नहीं, नेता-अभिनेता, बुद्धिजीवी, वरिष्ठ नागरिक, वकील, शिक्षक सभी लोग नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ हैं। बीजेपी में ऐसे कई विधायक हैं जो लोगो की इस नारजगी को समझ रहे हैं और वे इस मसले पर सोनोवाल से सौहार्दपूर्ण समाधान करने का आग्रह कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "असम में बीजेपी के 80 फीसदी नेता क्षेत्रीय नारा लगाकर पहले बोलते थे कि असम में राष्ट्रीय पार्टी की कोई प्रासंगिकता नहीं है। फिर वे लोग क्षेत्रीय दल छोड़कर भाजपा मे आ गए। लेकिन ये लोग बीजेपी के राजनीतिक एजेंडे से पहले ही खुश नहीं थे और जब नागरिकता कानून को लेकर व्यापक आंदोलन शुरू हुआ तो ये फिर से सोचने को मजबूर हो गए है। क्योंकि मुख्यमंत्री सोनोवाल और हेमंत विश्व शर्मा वही बात मानते हैं जो अमित शाह बोलते है। इस समय भाजपा में ऐसे करीब 25 विधायक हैं जो राज्य सरकार और प्रदेश बीजेपी की भूमिका से खुश नहीं हैं।"
असम में फिलहाल कर्फ्यू हटा दिया गया है और शुक्रवार से इंटरनेट सेवा को बहाल कर दिया गया है। क्या ऐसे में यह समझा जाए कि राज्य में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ जारी विरोध शांत पड़ गया है?
इस सवाल का जवाब देते हुए पत्रकार गोस्वामी कहते हैं, "नागरिकता क़ानून का यह मुद्दा असमिया लोगों के लिए बहुत संवेदनशील मुद्दा है। यह इतनी जल्दी शांत नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी को इस मसले पर सुनवाई का समय दिया है इसलिए फिलहाल यहां कोई बड़ा आंदोलन नहीं होगा। लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट से आंदोलनकारियों को निराशा मिलती है तो असम में फिर से व्यापक स्तर पर आंदोलन हो सकता है।"
गोस्वामी कहते हैं, "यह आंदोलन अब अगले डेढ़ साल तक यानी विधानसभा चुनाव तक चलेगा। आंदोलन कर रहे ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन तथा असम जातियतावादी युवा छात्र परिषद जैसे कई संगठनों में राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले नेता हैं जो नागरिकता क़ानून के इस मसले पर बीजेपी को पावर से हटाने की राजनीतिक लड़ाई लड़ना चाहते हैं। नए क़ानून के लागू होने से करीब 12 लाख हिंदू बंगाली लोगों को वैध नागरिकता मिल जाएगी जिससे यहां सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा। लोग फिर सड़कों पर प्रदर्शन करेंगे और हिंसा होगी। असम में नागरिकता क़ानून को लेकर शुरू हुआ यह आंदोलन इतनी जल्दी खत्म होने वाला नहीं है।"
नागरिकता क़ानून के विरोध में भाजपा और इसके सहयोगी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से काफी संख्या में लोगों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। असमिया फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता जतिन बोरा ने हाल ही में यह कहते हुए भाजपा छोड़ दी थी कि वे इस क़ानून को स्वीकार नहीं कर सकते। क्योंकि उनकी पहचान असम के लोगों की वजह से है और वे इस मुद्दे पर लोगों के साथ हैं।