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भारत आए अफ्रीकी चीतों की 'रहस्यमय' मौत की क्या है वजह

हमें फॉलो करें भारत आए अफ्रीकी चीतों की 'रहस्यमय' मौत की क्या है वजह

BBC Hindi

, मंगलवार, 25 अप्रैल 2023 (07:46 IST)
नितिन श्रीवास्तव, बीबीसी संवाददाता
28 फ़रवरी, 2023 को ईरान में 'पिरोज़' नाम ट्रेंड कर रहा था। सोशल मीडिया पर लोग #RIPPirouz लिख उसे अलविदा कह रहे थे। तमाम कोशिशों के बावजूद पिरोज़ की किडनी फेल हो गई और वो चल बसा।
 
पिरोज़ की किडनियां फेल हो रहीं थीं और उसे ईरान के सेंट्रल वेटरिनरी अस्पताल में डायलेसिस पर रखा गया था, उसे 10 माह का होने में महज़ दो दिन ही बाक़ी थे। अपने तीन भाइयों में पिरोज़ अकेला इतना लंबा जी सका था। पिछले वर्ष उसकी माँ ने तीन चीते के बच्चों को क़ैद में रहते जन्म दिया था।
 
ईरान की ये एक और नाक़ाम कोशिश साबित हो रही थी चीतों को अपने अपने यहां बसाने की जबकि एक ज़माने में ईरान में चीते हज़ारों की तादाद में पाए जाते थे।
 
इस घटना के क़रीब एक महीने बाद, 27 मार्च को भारत के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में साशा नाम के चीते ने भी किडनी फेल हो जाने से दम तोड़ दिया। साशा उन आठ नमीबीयाई चीतों में से एक था जिसे पिछले सितंबर ही मध्य प्रदेश के इस राष्ट्रीय उद्यान में लाकर बसाए जाने की पहल की गई थी।
  • भारत में 1952 में चीते को विलुप्त घोषित कर दिया था
  • उसके बाद पिछले साल पीएम मोदी के जन्मदिन पर 17 सितंबर को नामीबिया से आठ चीते लाए गए
  • कुछ महीने बाद दक्षिण अफ़्रीका से 12 चीते लाए गए
  • कुछ सप्ताह पहले एक मादा चीते ने चार स्वस्थ चीतों को पैदा किया
  • 27 मार्च को साशा और 22 अप्रैल को उदय नामक चीते की मौत हो गई
  • इस तरह कूनो नेशनल पार्क में अब कुल 22 चीते हैं
साशा का इलाज करने वाले मेडिकल स्टाफ़ के मुताबिक़, "जब से वो कूनो आया था तब से उसकी तबीयत थोड़ी ढीली रहती थी क्योंकि शायद किडनी का इन्फ़ेक्शन उसे नामीबिया में ही हो गया था। इसीलिए उसे 'बोमा' क्वारंटाइन वाले इलाक़े में ही ज़्यादा रखा गया था।"
 
लेकिन अब एक और मौत हुई है, जो ये सोचने पर मजबूर करती है कि आख़िर चीतों की मौत की वजह क्या है।
 
इसी रविवार, यानी 22 अप्रैल को, कूनो राष्ट्रीय उद्यान में एक और चीते उदय की मौत बेहद रहस्यमय तरीक़े से हो गई। नमीबिया से आठ चीते आने के बाद दक्षिण अफ़्रीका से 12 और चीते बसाने के लिए कूनो लाए गए थे। छह साल का उदय उनमें से एक था।
 
मध्य प्रदेश के प्रमुख वाइल्डलाइफ़ वॉर्डन जेएस चौहान ने बताया, "चीतों का हम लोग रोज़ इंस्पेक्शन करते हैं और शनिवार को हमारी टीम ने उदय को बिल्कुल स्वस्थ पाया था। रविवार को जब टीम निरीक्षण के लिए गई तब उदय कमज़ोर लगा और वो सिर झुका कर चल रहा था। फिर उसे ट्रैंकक्वलाइज़ करके इलाज के लिए लाया गया, लेकिन इस दौरान उसने दम तोड़ दिया।"
 
जेएस चौहान के मुताबिक़, "प्रारम्भिक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट हार्ट अटैक की ओर इशारा करती है। पूरी रिपोर्ट आने का इंतज़ार है, जिसमें ब्लड टेस्ट रिपोर्ट सभी बातों को विस्तार से बता सकेगी।"
 
बीबीसी से हुई एक ख़ास बातचीत में चीता कंज़र्वेशन फंड की निदेशक लॉरी मार्कर ने सोमवार को नमीबिया से बताया, "बतौर वैज्ञानिक हम लोग नेक्रोपसी टेस्ट- जिससे जानवरों की मौत की वजह पता चलती है- का इंतज़ार करेंगे। साथ ही अगर स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या उभर रही है तो उसका हल निकाला जाएगा जिससे भविष्य में मौतें न हों।"
 
चीते और किडनी फ़ेल होने का इतिहास
ग़ौरतलब है कि चीतों की मौत होने का एक बड़ा कारण किडनी फ़ेल होना है, जिसे वैज्ञानिकों और डाक्टरों ने शोध से साबित करने की कोशिश की है।
 
अमेरिकी सरकार के नेशनल सेंटर ऑफ़ बायोटेक्नोलोजी इन्फ़र्मेशन ने साल 1967-2014 के बीच 243 ऐसे चीतों पर शोध किया था जो क़ैद में रह रहे थे।
 
एमिली मिचेल के नेतृत्व में किए गए इस गहन शोध में पाया गया कि, "क़ैद में रहने वाले कुछ चीतों में कम उम्र से ही किडनी ख़राब होने के लक्षण सामने आने लगते हैं जो आगे चल कर जानलेवा बन जाते हैं।"
 
शोध इस नतीजे पर पहुँचा कि क़ैद में या किसी कंट्रोल्ड माहौल में रहने वाले चीते अत्यधिक तनाव लेते हैं, जिसका एक असर उनकी किडनी पर पड़ता है।"
 
चीतों के संरक्षण के लिए काम करने वाली नामचीन संस्था 'चीता कंज़रवेशन फंड' के एक रिसर्च पेपर ने भी इस बात को ओर ध्यान दिया है कि चीतों में किडनी फेल होने के लक्षणों को शुरुआत में ही कैसे पकड़ लिया जाए जिससे उनका सफल इलाज हो सके।
 
मध्य प्रदेश में चीते
बहरहाल, मध्य प्रदेश के 1.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़े जाने से पहले पांच-सात साल उम्र वाले सभी 20 चीतों को एक महीने तक क्वॉरंटीन ज़ोन में रखा गया था, जिससे वे इस आबोहवा के आदी हो सकें।
 
अगले चरण में इन चीतों को क्वारंटीन ज़ोन से बाहर चार वर्ग किलोमीटर के इलाक़े में रखा गया, जिससे कि ये जंगली जानवरों और शिकार वग़ैरह के आदी हो सकें।
 
भारत में नामीबिया से आठ चीते लाए गए और दक्षिण अफ़्रीका से 12। इनमें से अब 18 जीवित हैं। भारत आने वाले चीतों को अभयारण्यों से ही लिया गया है, जहाँ उनका प्रजनन उचित ढंग से किया गया है। दक्षिण अफ़्रीका में लगभग 50 ऐसे अभयारण्य हैं, जिनमें 500 वयस्क चीते हैं।
 
चीता कंज़र्वेशन फंड की निदेशक लॉरी मार्कर ने बीबीसी से हुई एक ख़ास बातचीत में नामीबिया से बताया, "इस प्रोजेक्ट के लिए हमने ख़ासी मेहनत की थी और उम्मीद है कि सब अच्छा रहेगा। ये चीते शेरों और तेंदुओं के अलावा दूसरे जानवरों के आसपास रहते हुए पले-बढ़े हैं। भारत में भी ये अपना घर बसा लेंगे। थोड़ा समय दीजिए, बस।"
 
लॉरी मार्कर के मुताबिक़, उनकी "टीम ने कूनो राष्ट्रीय उद्यान को इन चीतों के बसाए जाने के लिए बेहद उपयुक्त पाया था। इसलिए वे यहाँ लाए गए। मैं ख़ुद पहली खेप के साथ भारत आई थी और सभी पैमाने विश्व-स्तरीय रहे हैं।"
 
चीते के बारे में जानिए ये दिलचस्प जानकारियाँ
  • बाघ, शेर या तेंदुए की तरह चीते दहाड़ते नहीं हैं, उनके गले में वो हड्डी नहीं होती जिससे ऐसी आवाज़ निकल सके, वे बिल्लियों की तरह धीमी आवाज़ निकालते हैं और कई बार चिड़ियों की तरह बोलते हैं
  • चीता दुनिया का सबसे तेज़ दौड़ने वाला जीव है लेकिन वह बहुत लंबी दूरी तक तेज़ गति से नहीं दौड़ सकता, अमूमन ये दूरी 300 मीटर से अधिक नहीं होती
  • चीते दौड़ने में सबसे भले तेज़ हों लेकिन कैट प्रजाति के बाकी जीवों की तरह वे काफ़ी समय सुस्ताते हुए बिताते हैं
  • गति पकड़ने के मामले में चीते स्पोर्ट्स कार से तेज़ होते हैं, शून्य से 90 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार पकड़ने में उन्हें तीन सेकेंड लगते हैं
  • चीता का नाम हिंदी के शब्द चित्ती से बना है क्योंकि इसके शरीर के चित्तीदार निशान इसकी पहचान होते हैं
  • चीता कैट प्रजाति के अन्य जीवों से इस मामले में अलग है कि वह रात में शिकार नहीं करता
  • चीते की आँखों के नीचे जो काली धारियाँ आँसुओं की तरह दिखती है वह दरअसल सूरज की तेज़ रोशनी को रिफ़लेक्ट करती है जिससे वे तेज़ धूप में भी साफ़ देख सकते हैं
स्रोत- ज़ूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ लंदन
 
चिंताएं भी अनेक
दुनिया भर में इस समय चीतों की संख्या लगभग 7,000 है, जिनमें से आधे से ज़्यादा चीते दक्षिण अफ़्रीका, नामीबिया और बोत्सवाना में मौजूद हैं। भारत ने 1950 के दशक में चीते को विलुप्त घोषित कर दिया था। उस समय देश में एक भी जीवित चीता नहीं बचा था। वैसे ये पहला मौक़ा है, जब किसी इतने बड़े मांसाहारी जानवर को एक महाद्वीप से निकालकर दूसरे महाद्वीप के जंगलों में लाया गया।
 
विशेषज्ञ कहते हैं कि जंगली चीतों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना काफ़ी चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि चीते इंसानों की नज़दीकी और पिंजड़ों की वजह से तनाव में आ जाते हैं।
 
बाघों पर लंबे समय से स्टडी करते रहे वाइल्ड लाइफ फ़िल्ममेकर अजय सूरी ने बताया, "बाघों को दूसरे अभयारण्यों से यहां लाकर बसाना संभव है, लेकिन जब तक ये हो न जाए, इस बारे में ज़्यादा अनुमान नहीं लगा सकते।"
 
वैसे सितंबर में अपने कूनो आगमन के बाद से चीतों की संख्या बढ़ी भी है, क्योंकि 70 साल बाद चार स्वस्थ चीते भी कूनो में पैदा हुए हैं।

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