Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

जीडीपी में भारी गिरावट के बाद क्या हैं विकल्प?

हमें फॉलो करें जीडीपी में भारी गिरावट के बाद क्या हैं विकल्प?

BBC Hindi

, बुधवार, 2 सितम्बर 2020 (10:32 IST)
भारत के सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी की विकास दर में लॉकडाउन के शुरूआती महीनों वाली तिमाही में ज़बरदस्त गिरावट हुई है।
 
केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार 2020-21 वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून के बीच विकास दर में 23।9 फ़ीसद की गिरावट दर्ज की गई है।
 
ऐसा अनुमान लगाया गया था कि कोरोना वायरस महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण भारत की जीडीपी की दर पहली तिमाही में 18 फ़ीसद तक गिर सकती है।
 
जनवरी-मार्च तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 3।1 फ़ीसद की वृद्धि देखी गई थी जो आठ साल में सबसे कम थी।
 
जीडीपी के आँकड़े बताते हैं कि जनवरी-मार्च तिमाही में उपभोक्ता ख़र्च धीमा हुआ, निजी निवेश और निर्यात कम हुआ। वहीं, बीते साल इसी अप्रैल-जून तिमाही की दर 5।2 फ़ीसद थी।
 
जीडीपी के इन नए आँकड़ों को साल 1996 के बाद से ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ी गिरावट बताया गया है।
 
इन आँकड़ों पर मंत्रालय ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों के अलावा आँकड़ा इकट्ठा करने के तंत्र पर भी असर पड़ा है। मंत्रालय ने कहा है कि 25 मार्च से देश में लॉकडाउन लगाया गया था, जिसके बाद आर्थिक गतिविधियों पर रोक लग गई।
 
जीडीपी में आई इस गिरावट के क्या मायने हैं और अब इस स्थिति से बाहर निकलने के क्या संभावित विकल्प हो सकते हैं, यही जानने के लिए बीबीसी के सहयोगी सरबजीत धालीवाल ने आर्थिक मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा से बात की।
 
सवाल: इस गिरावट को आप किस तरह देखते हैं? क्योंकि यह वो वक़्त था जिस समय देश में पूर्ण लॉकडाउन था।
जवाब: यह लॉकडाउन के दौरान का ही विवरण है। इसी दौरान के दुनिया के बीस बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों की भी बात करें तो भारत का प्रदर्शन सबसे निचले स्तर पर है। 23।9 फ़ीसद की जो गिरावट दर्ज की गई है, उससे यह पता चलता है कि कृषि क्षेत्र को छोड़कर बाक़ी जितने भी सेक्टर रहे हैं, उनको लॉकडाउन के दौरान मार खानी पड़ी है। 

चाहे वो होटल इंडस्ट्री हो, सर्विस इंडस्ट्री हो सब जगह गिरावट हुई है और इससे संकेत मिलते हैं कि लॉकडाउन के दौरान जो इंडस्ट्रियल या इकोनॉमिकल ऐक्टिविटी बंद थी उसकी वजह से अर्थव्यवस्था पर जो असर पड़ना था वो बड़ा ही स्पष्ट है। इससे यह भी स्पष्ट है कि जो संकट है वो बहुत बड़ा है और आने वाले समय में सरकार के सामने चुनौती होगी कि वो कैसे इससे निपटती है।
 
सवाल: कृषि क्षेत्र इस दौरान प्रभावित नहीं हुआ है। इस बात पर आपकी क्या राय है?
जवाब: जिस दौरान सभी सेक्टर प्रभावित रहे हैं, उस दौरान एकमात्र सेक्टर एग्रीकल्चर है जिसमें पॉज़िटिव ग्रोथ हुई है।
 
एग्रीकल्चर सेक्टर में ग्रोथ रेट 3।4 जीवीए रही है। इससे बड़ा स्पष्ट हो गया कि एग्रीकल्चर ही देश की लाइफ़ लाइन है। एग्रीकल्चर ने ही देश को सँभाला है, देश की अर्थव्यवस्था को सँभाला है और अब देश का दायित्व बनता है कि वो किसानों को सँभाले। क्योंकि जिन लोगों ने देश को सँभाला है कभी उन लोगों को भी तो सँभाला जाना चाहिए। इससे नीति निर्धारकों को भी स्पष्ट हो जाना चाहिए कि कृषि क्षेत्र की क्या भूमिका है। इस लाइफ़ लाइन को और सुदृढ़ करने की ज़रूरत है। इस झटके से एग्रीकल्चर सेक्टर का महत्व भी स्पष्ट हुआ है और अब उसे भी उतना ही महत्व मिलना चाहिए।
 
सवाल: देश में कोरोना का क़हर अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। क्या आने वाले समय में और गिरावट हो सकती है या फिर सुधार की गुंजाइश है?
जवाब: अलग-अलग अर्थशास्त्री बताते हैं कि मौजूदा समय में हम जिस स्तर पर चले गए हैं उससे उभरने में हमें कई साल लगेंगे। और इस बात के भी संकेत आ रहे हैं कि अगर हम पूरे साल का ग्रोथ देखें यानी 2021 का जो फ़ाइनेंशियल ईयर होगा (अगर हम अप्रैल से शुरू करें और अगले साल के मार्च तक) तो उसमें छह फ़ीसद, सात फ़ीसद या फिर पाँच फ़ीसद की गिरावट होगी। ऐसे अभी अनुमानित आँकड़े आ रहे हैं।
 
ऐसे में यह तो स्पष्ट है कि जीडीपी ग्रोथ रेट को सुधरने में अभी समय लगेगा और अभी हमें देखना यह भी है कि सरकार किस तरह की नीतियाँ लेकर आती है। क्योंकि जिस तरह लाखों-करोड़ों लोग बेरोज़गार हो गए हैं, उन्हें कैसे दोबारा काम पर लाया जाता है। इसमें सिर्फ़ वो लोग शामिल हैं जो संगठित क्षेत्र में थे, असंगठित क्षेत्र की तो अभी बात ही नहीं की जा रही है। रीवर्स-माइग्रेशन के तहत जो लोग वापस लौट गए हैं उन्हें कैसे वापस लाया जा सकता है, कृषि सेक्टर में सबसे अधिक असंगठित क्षेत्र के लोग हैं। जहां गुप्त-रोज़गार सबसे अधिक होता है। तो यह चुनौती बड़ी होगी कि कैसे उन्हें भी काम मुहैया कराया जाता है।
 
सवाल: अब इस स्थिति में क्या कुछ किये जाने की आवश्यकता है?
जवाब: मूल तौर पर दो चीज़ें किये जाने की आवश्यकता है। उदाहरण के तौर पर जिस तरह सरकार ने सितंबर में डेढ़ लाख करोड़ तक के टैक्स-कंसेशन कॉर्पोरेट्स को दिए थे, कहा कि इससे डिमांड बढ़ेगी। जबकि ज़्यादातर जानकारों का मानना था कि ऐसा करने से इंवेस्टमेंट नहीं आता है और उससे रोज़गार के अवसर भी नहीं बढ़ते हैं।
 
इसका मतलब साफ़ है कि हमारी इकोनॉमिक सोच उसी टेक्स्ट बुक से चल रही जिसके तहत माना जाता है कि जब तक हम कॉर्पोरेट्स में पैसा नहीं डालेंगे तब तक ग्रोथ नहीं होगी। लेकिन यह लॉकडाउन एक सबक़ भी है और इससे समझ आ जाना चाहिए कि वो एक ग़लत सोच थी और अब अगर डिमांड क्रिएट करनी है तब हमें इस ओर ध्यान देना ही होगा।
 
सरकार इस डेढ़ लाख करोड़ रुपये को खेती में लगा सकती है। जिसके तहत किसान को मदद दी जाए।
 
दूसरा यह कि जिस तरह सरकार ने हाल में ही तीन अध्यादेश जारी किये हैं जिसमें कहा जा रहा है कि किसान को मंडी के तामझाम से आज़ाद कर दिया गया है। यह प्रयोग अमरीका और यूरोप में किया जा चुका है और वहाँ ये प्रयोग फ़ेल रहे हैं। तो क्या कारण है कि हम अमरीका और यूरोप से फ़ेल योजनाएँ अपना रहे हैं। हमें अपने देश की स्थिति और किसान की स्थिति के अनुरूप योजनाएँ बनाने की ज़रूरत है। जिसमें किसान को बाज़ार के हवाले ना छोड़ दिया जाए। एपीएमसी का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए। वहाँ इंवेस्टमेंट की ज़रूरत है। रुरल इकोनॉमी को अब हर हाल में साधने की ज़रूरत है।
 
सवाल: अनलॉक 4 के बाद क्या कोई बदलाव की संभावना देखते हैं?
जवाब: पिछले साल भी कहा गया था कि दीवाली का समय आ गया है तो माँग बढ़ेगी और देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसका मतलब यह हुआ कि जो हमारे अर्थशास्त्री हैं वो किताबी ज्ञान को ही मानकर चलते हैं। जिसमें लिखा है कि त्योहारों के मौसम में माँग बढ़ जाएगी लेकिन ऐसा होता नहीं है।
 
आम लोग इससे कहीं अलग सोचते हैं। लोग ख़र्च करने के बजाय बचाने पर ज़ोर दे रहे हैं। यह समझने की ज़रूरत है कि हमारे समाज में जो यह बचाने की सोच है उसी के आधार पर आगे की नीतियाँ बनाने पर ज़ोर देना चाहिए। लोगों को ऐसे विकल्प दिये जाने चाहिए कि वे बैंकों में ज़्यादा से ज़्यादा और लंबे समय के लिए पैसा सुरक्षित रखें।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

GDP: आंकड़े डराने वाले लेकिन अब भी अर्थव्यवस्था बचा सकती है मोदी सरकार-नज़रिया