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नेताजी सुभाष चंद्र बोस की वो अनूठी प्रेम कहानी

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, मंगलवार, 23 जनवरी 2018 (11:15 IST)
- प्रदीप कुमार
 
ये 1934 का साल था। सुभाष चंद्र बोस उस वक्त ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना में थे। उस वक्त तक उनकी पहचान कांग्रेस के योद्धा के तौर पर होने लगी थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल में बंद सुभाष चंद्र बोस की तबीयत फरवरी, 1932 में ख़राब होने लगी थी। इसके बाद ब्रिटिश सरकार उनको इलाज के लिए यूरोप भेजने पर मान गई थी, हालांकि इलाज का खर्च उनके परिवार को ही उठाना था।
 
विएना में इलाज कराने के साथ ही उन्होंने तय किया कि वे यूरोप रह रहे भारतीय छात्रों को आज़ादी की लड़ाई के लिए एकजुट करेंगे। इसी दौरान उन्हें एक यूरोपीय प्रकाशक ने 'द इंडियन स्ट्रगल' किताब लिखने का काम सौंपा, जिसके बाद उन्हें एक सहयोगी की ज़रूरत महसूस हुई, जिसे अंग्रेजी के साथ साथ टाइपिंग भी आती हो।
 
बोस के दोस्त डॉ. माथुर ने उन्हें दो लोगों का रिफ़रेंस दिया। बोस ने दोनों के बारे में मिली जानकारी के आधार पर बेहतर उम्मीदवार को बुलाया, लेकिन इंटरव्यू के दौरान वे उससे संतुष्ट नहीं हुए। तब दूसरे उम्मीदवार को बुलाया गया। ये दूसरी उम्मीदवार थीं, 23 साल की एमिली शेंकल। बोस ने इस ख़ूबसूरत ऑस्ट्रियाई युवती को जॉब दे दी। एमिली ने जून, 1934 से सुभाष चंद्र बोस के साथ काम करना शुरू कर दिया।
 
1934 में सुभाष चंद्र बोस 37 साल के थे और इस मुलाकात से पहले उनका सारा ध्यान अपने देश को अंग्रेजों से आज़ाद करने पर था। लेकिन सुभाष चंद्र बोस को अंदाजा भी नहीं था कि एमिली उनके जीवन में नया तूफ़ान लेकर आ चुकी हैं।
 
सुभाष के जीवन में प्यार का तूफ़ान
सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरत चंद्र बोस के पोते सुगत बोस ने सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर 'हिज़ मैजेस्टी अपोनेंट- सुभाष चंद्र बोस एंड इंडियाज स्ट्रगल अगेंस्ट एंपायर' किताब लिखी है। इसमें उन्होंने लिखा है कि एमिली से मुलाकात के बाद सुभाष के जीवन में नाटकीय परिवर्तन आया।
 
सुगत बोस के मुताबिक इससे पहले सुभाष चंद्र बोस को प्रेम और शादी के कई ऑफ़र मिले थे, लेकिन उन्होंने किसी में दिलचस्पी नहीं ली थी। लेकिन एमिली की ख़ूबसूरती ने सुभाष पर मानो जादू सा कर दिया।
 
सुगत बोस ने अपनी पुस्तक में एमिली के हवाले से लिखा है, "प्यार की पहल सुभाष चंद्र बोस की ओर से हुई थी और धीरे धीरे हमारे रिश्ते रोमांटिक होते गए। 1934 के मध्य से लेकर मार्च 1936 के बीच ऑस्ट्रिया और चेकेस्लोवाकिया में रहने के दौरान हमारे रिश्ते मधुर होते गए।"
 
26 जनवरी, 1910 को ऑस्ट्रिया के एक कैथोलिक परिवार में जन्मी एमिली के पिता को ये पसंद नहीं था कि उनकी बेटी किसी भारतीय के यहां काम करे लेकिन जब वे लोग सुभाष चंद्र बोस से मिले तो उनके व्यक्तित्व के कायल हुए बिना नहीं रहे। जाने माने अकादमिक विद्वान रुद्रांशु मुखर्जी ने सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू की जीवन को तुलनात्मक रूप से पेश करते हुए एक पुस्तक लिखी है- नेहरू एंड बोस, पैरलल लाइव्स।
 
पेंगुइन इंडिया से प्रकाशित इस पुस्तक में एक चैप्टर है, 'टू वूमेन एंड टू बुक्स'। इसमें बोस और नेहरू के जीवन पर उनकी पत्नियों की भूमिका को रेखांकित किया गया है।
 
सुभाष का लिखा लव लेटर
मुखर्जी ने इसमें लिखा है, "सुभाष और एमिली ने शुरुआत से ही स्वीकर कर लिया था कि उनका रिश्ता बेहद अलग और मुश्किल रहने वाला है। एक-दूसरे को लिखे खतों में दोनों एक दूसरे के लिए जिस संबोधन का इस्तेमाल करते हैं, उससे ये ज़ाहिर होता है। एमिली उन्हें मिस्टर बोस लिखती हैं, जबकि बोस उन्हें मिस शेंकल या पर्ल शेंकल।"
 
ये हक़ीक़त है कि पहचान छुपा कर रहने की बाध्यता और सैनिक संघर्ष में यूरोपीय देशों से मदद मांगने के लिए भाग दौड़ करने के चलते सुभाष अपने प्यार भरे रिश्ते लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतते होंगे। लेकिन एमिली को लेकर उनके अंदर कैसा भाव था, इसे उस पत्र से समझा जा सकता है, जिसे आप सुभाष चंद्र बोस का लिखा लव लेटर कह सकते हैं।
 
ये निजी पत्र पहले तो सुभाष चंद्र बोस के एमिली को लिखे पत्र के संग्रह में शामिल नहीं था। इस पत्र को एमिली ने खुद शरत चंद्र बोस के बेटे शिशिर कुमार बोस की पत्नी कृष्णा बोस को सौंपा था। 5 मार्च, 1936 को लिखा ये पत्र इस तरह से शुरू होता है।
 
"माय डार्लिंग, समय आने पर हिमपर्वत भी पिघलता है, ऐसा भाव मेरे अंदर अभी है। मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूं, ये बताने के लिए कुछ लिखने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं। जैसा कि हम एक-दूसरे को आपस में कहते हैं, माय डार्लिंग, तुम मेरे दिल की रानी हो। लेकिन क्या तुम मुझसे प्यार करती हो।"
 
इसमें बोस ने आगे लिखा है, "मुझे नहीं मालूम कि भविष्य में क्या होगा। हो सकता है पूरा जीवन जेल में बिताना पड़े, मुझे गोली मार दी जाए या मुझे फांसी पर लटका दिया जाए। हो सकता है मैं तुम्हें कभी देख नहीं पाऊं, हो सकता है कि कभी पत्र नहीं लिख पाऊं- लेकिन भरोसा करो, तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगी, मेरी सोच और मेरे सपनों में रहोगी। अगर हम इस जीवन में नहीं मिले तो अगले जीवन में मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।"
 
आत्मा से प्यार का वादा
इस पत्र के अंत में सुभाष ने लिखा है कि मैं तुम्हारे अंदर की औरत को प्यार करता हूं, तुम्हारी आत्मा से प्यार करता हूं, तुम पहली औरत हो जिससे मैंने प्यार किया। पत्र के अंत में सुभाष ने इस पत्र को नष्ट करने का अनुरोध भी किया था, लेकिन एमिली ने इस पत्र को संभाल कर रखा।
 
जाहिर है एमिली के प्यार में सुभाष चंद्र बोस पूरी तरह गिरफ़्तार हो चुके थे। इस बारे में सुभाष चंद्र बोस के घनिष्ठ मित्र और राजनीतिक सहयोगी एसीएन नांबियार ने सुगत बोस को बताया था, "सुभाष एक आइडिया वाले शख़्स थे। उनका ध्यान केवल भारत को आज़ादी दिलाने पर था। अगर भटकाव की बात करें तो केवल एक मौका आया जब उन्हें एमिली से मोहब्बत हुई। वे उनसे बेहद प्यार करते थे, डूबकर मोहब्बत करने जैसा था उनका प्रेम।"
 
सुभाष की मनोदशा उस दौरान किस तरह की थी, ये अप्रैल या मई, 1937 में एमिली को भेजे एक पत्र से ज़ाहिर होता है, जो उन्होंने कैपिटल अक्षरों में लिखा है। उन्होंने लिखा था, "पिछले कुछ दिनों से तुम्हें लिखने को सोच रहा था। लेकिन तुम समझ सकती हो कि मेरे लिए तुम्हारे बारे में अपने मनोभावों को लिखना कितना मुश्किल था। मैं तुम्हें केवल ये बताना चाहता हूं कि जैसा मैं पहले था, वैसा ही अब भी हूं।"
 
"एक भी दिन ऐसा नहीं बीता है, जब मैंने तुम्हारे बारे में नहीं सोचा था। तुम हमेशा मेरे साथ हो। मैं किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता। मैं तुम्हें ये भी नहीं बता सकता कि इन महीनों में मैं कितना दुखी रहा, अकेलापन महसूस किया। केवल एक चीज़ मुझे ख़ुश रख सकती है, लेकिन मैं नहीं जानता कि क्या ये संभव होगा। इसके बाद भी दिन रात मैं इसके बारे में सोच रहा हूं और प्रार्थना करता हूं कि मुझे सही रास्ता दिखाएं।"
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वो शादी जिसका पता ना चला
इन पत्रों में ज़ाहिर अकुलाहट के चलते ही जब दोनों अगली बार मिले तो सुभाष और एमिली ने आपस में शादी कर ली। ये शादी कहां हुई, इस बारे में एमिली ने कृष्णा बोस को बताया कि 26 दिसंबर, 1937 को, उनकी 27वीं जन्मदिन पर ये शादी आस्ट्रिया के बादगास्तीन में हुई थी, जो उन दोनों का पसंदीदा रिजार्ट हुआ करता था।
 
हालांकि दोनों ने अपनी शादी को गोपनीय रखने का फ़ैसला किया। कृष्णा बोस के मुताबिक एमिली ने शादी का दिन बताने के अलावा कोई दूसरी जानकारी नहीं शेयर की। हां, अनीता बोस ने उन्हें ये ज़रूर बताया कि उनकी मां ने ये बताया था कि शादी के मौके पर उन्होंने आम भारतीय दुल्हन की तरह माथे पर सिंदूर लगाया था।
 
ये शादी इतनी गोपनीय थी कि उनके बादगास्तीन रहने के दौरान ही उनके भतीजे अमिय बोस भी उनसे मिलने पहुंचे थे, लेकिन उन्हें एमिली महज अपने चाचा की सहायक भर लगी थीं। इस शादी को गोपनीय रखने की संभावित वजहों के बारे में रुद्रांशु मुखर्जी ने लिखा है कि बहुत संभव रहा होगा कि सुभाष इसका असर अपने राजनीतिक करियर पर नहीं पड़ने देना चाहते होंगे। किसी विदेशी महिला से शादी की बात आने पर उनकी छवि पर असर पड़ सकता था।
 
रुद्रांशु की इस आशंका को इस परिपेक्ष्य में भी देखना चाहिए कि 1938 में सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। शरत चंद्र बोस के सचिव रहे और अंग्रेजी के प्रख्यात लेखक नीरद सी। चौधरी ने 1989 में दाय हैंड ग्रेट अर्नाक: इंडिया 1921-1951 में लिखा है, "ये उनके निजी ज़िंदगी से जुड़ा हिस्सा था। लेकिन जब मुझे जानकारी मिली तब मुझे झटका लगा। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद मुझे ये जानकारी मिली थी कि उन्होंने एक जर्मन महिला से शादी कर ली है, जो कि उनकी सेक्रेटरी रही थीं।"
 
बहरहाल, तीन बार सासंद रहीं और शरत चंद्र बोस के बेटे शिशिर कुमार बोस की पत्नी कृष्णा बोस ने सुभाष और एमिली की प्रेम कहानी पर 'ए ट्रू लव स्टोरी- एमिली एंड सुभाष' लिखी है, जिसमें सुभाष और शेंकल के बीच के प्रेम संबंधों का दिलचस्प विवरण मिलता है। सुभाष चंद्र बोस, एमिली को प्यार से बाघिनी कहकर भी बुलाया करते थे। हालांकि इस बात के भी उदाहरण मिलते हैं कि एमिली इंटेलेक्ट के मामले में सुभाष के आस पास नहीं थीं और सुभाष जब तब इसे ज़ाहिर भी कर देते थे।
 
सुभाष-शेंकल की निशानी
कृष्णा बोस के मुताबिक सुभाष चाहते थे कि एमिली भारत के तब के कुछ समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए विएना से रिपोर्ट लिखने का काम शुरू करें। सुभाष के कहने पर एमिली ने द हिंदु और मॉर्डन रिव्यू के लिए कुछ लेख लिखे थे, लेकिन वो समाचारों के विश्लेषण करने में सहज नहीं थीं, सुभाष कई बार उनसे कहा करते थे, "तुम्हारा लेख ठीक नहीं था, उसे नहीं छापा गया है।"
 
इसकी झलक एक और जगह देखी जा सकती है। 12 अगस्त, 1937 को लिखे एक पत्र में सुभाष एमिली को लिखते हैं, "तुमने भारत के बारे में कुछ किताबें मंगाई हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि इन किताबों को तुम्हें देने का कोई मतलब है। तुम्हारे पास जो किताबें हैं, वो भी तुमने नहीं पढ़ी हैं। "
 
"जब तक तुम गंभीर नहीं होगी तब तक पढ़ने में तुम्हारी दिलचस्पी नहीं होगी। विएना में तुम्हारे पास कितने ही विषयों की किताबें जमा हो गई हैं, पर मुझे मालूम है तुमने उन सबको पलटकर नहीं देखा होगा।"
 
बावजूद इसके हक़ीकत यही है कि सुभाष चंद्र बोस और एमिली एक दूसरे से बेपनाह मोहब्बत करते थे। 1934 से 1945 के बीच दोनों का साथ महज 12 साल का रहा और इसमें भी दोनों साथ में तीन साल से भी कम रह पाए।
 
महज तीन साल तक रहे साथ
इन दोनों की प्रेम की निशानी के तौर 29 नवंबर, 1942 को बेटी का जन्म हुआ, जिसका नाम अनीता रखा गया। इटली के क्रांतिकारी नेता गैरीबाल्डी की ब्राजीली मूल की पत्नी अनीता गैरीबाल्डी के सम्मान में। अनीता अपने पति के साथ कई युद्धों में शामिल हुई थीं और उनकी पहचान बहादुर लड़ाका की रही है।
 
सुभाष अपनी बेटी को देखने के लिए दिसंबर, 1942 में विएना पहुंचते हैं और इसके बाद अपने भाई शरत चंद्र बोस को बंगाली में लिखे खत में अपनी पत्नी और बेटी की जानकारी देते हैं। इसके बाद सुभाष उस मिशन पर निकल जाते हैं, जहां से वो फिर एमिली और अनीता के पास कभी लौट कर नहीं आए।
 
लेकिन एमिली सुभाष चंद्र बोस की यादों के सहारे 1996 तक जीवित रहीं और उन्होंने एक छोटे से तार घर में काम करते हुए सुभाष चंद्र बोस की अंतिम निशानी अपनी बेटी अनीता बोस को पाल पोस कर बड़ा कर जर्मनी का मशहूर अर्थशास्त्री बनाया।
 
इस मुश्किल सफ़र में उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के परिवार से किसी तरह की मदद लेने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं सुभाष चंद्र बोस ने जिस गोपनीयता के साथ अपने रिश्ते की भनक दुनिया को नहीं लगने दी थी, उसकी मर्यादा को भी पूरी तरह निभाया।

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