प्रेम, मोहब्बत, इश्क, प्यार, लव...शब्द कोई भी हो एहसास एक ही बयां करता है। जब भी सच्ची मोहब्बत का जिक्र होता है, तो कुछ नाम दिल-ओ-दिमाग में आ ही जाते हैं, जो इश्क की इबादत में खुद का फना कर गए, लेकिन उनकी रूह से खुदा की इस इनायत को कोई अलग नहीं कर पाया। अब ये नाम ही सच्चे प्रेम का पर्याय बन चुके हैं। इन्हीं में हीर और रांझा की प्रेमकहानी को भी गिना जाता है।
पंजाब की सरजमीं पर पैदा हुए प्यार के दो पंछी थे, जिनमें एक थी हीर और दूसरा रांझा। पंजाब के झंग शहर में, जाट परिवार में जन्मीं हीर, अमीर, खानदानी और बेहद खूबसूरत थी। वहीं रांझा चनाब नदी के किनारे बसे गांव तख्त हजारा के जाट परिवार में जन्मा। उसका पूरा नाम था धीदो, और रांझा जटोंक उपजाति थी। चार भाईयों में सबसे छोटा था वह।
रांझा के तीनों भाई खेतों में मेहनत करते, लेकिन वही सबसे छोटा होने के कारण मजे की जिंदगी जीता। बांसुरी बजाने का वह शौकीन था, सो उसका दिन इस शौक को पूरा करते निकलता। लेकिन उसकी भाभियों को यह नागवार था, इसलिए उन्होंने रांझा को खाना-पीना देना ही बंद कर दिया। यह बात रांझा को नागवार गुजरी, और वह घर छोड़कर निकल पड़ा।
भटकते हुए वह हीर के गांव झंग पहुंचा, जहां हीर को उसने पहली बार देखा। वहां हीर के घर उसने गाय-भैंसों को चराने का काम किया। खाली समय में वह छांव में बैठकर बांसुरी बजाया करता था। हीर तो उसके मन को मोह ही चुकी थी, रांझे की बांसुरी सुन हीर भी मंत्रमुग्ध सी हो गई। अब हीर भी उसे पसंद करने लगी थी। दोनों के मन में एक दूसरे के लिए कब मोहब्बत पैदा हुई, उन्हें भी पता न चला।
अब दोनों बस एक दूसरे का दीदार करने के मौके ढूंढते और एक दूसरे का सामना, साथ उनके मन को बेहद भाता। दोनों छुप-छुपकर मिलने लगे। लेकिन दिन हीर के चाचा ने दोनों को मिलते हूए देख लिया और हीर के पिता चूचक और मां मलकी तक यह बात पहुंच गई। फिर क्या था, हीर की शादी जबरदस्ती एक सैदा खेड़ा नामक आदमी से कर दी गई।
अब रांझे के लिए यहां कुछ बचा न था। उसका मन अब दुनिया-जहान में लगता न था। वह जोग यानि संन्यास लेने बाबा गोरखनाथ के डेरे, टिल्ला जोगियां चला गया। वह अपना कान छिदाकर बाबा का चेला बन गया। अब वह अलख-निरंजन कहते हुए पंजाब के अलग-अलग क्षेत्रों में घूमने लगा। एक दिन अचानक वह हीर के ससुराल पहुंच गया। दोनों एक दुसरे को देखकर अपने प्रेम को रोक नहीं पाए और भागकर हीर के गांव आ गए। हीर के मां-बाप उन्हें शादी करने की इजाजत तो दे दी, लेकिन हीर के चाचा को यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था। जलन के कारण ही हीर का वह ईर्ष्यालु चाचा कैदो, हीर को लड्डू में जहर डालकर खिला देता है। जब तक यह बात रांझा को पता चलती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
रांझा के लिए यह दुख बेहद पीड़ादायी था। वह इस दुख को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने भी वही जहरीला लड्डू खा लिया, जिसे खाकर हीर की मौत हुई। हीर के साथ-साथ रांझा ने भी दम तोड़ दिया और इस प्रेमकहानी का अंत हो गया। दोनों को झंग में एक साथ दफनाया गया, जो मजारें अब भी वहां बनी हुई हैं।