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मोदी को टक्कर देना 6 साल बाद भी इस क़दर मुश्किल क्यों

हमें फॉलो करें मोदी को टक्कर देना 6 साल बाद भी इस क़दर मुश्किल क्यों

BBC Hindi

, शनिवार, 30 मई 2020 (08:27 IST)
शेखर अय्यर, वरिष्ठ पत्रकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल का पहला साल आज यानी 30 मई को पूरा कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी को छह साल प्रधानमंत्री रहने के बाद इस बात का बख़ूबी अहसास है कि वो अब भी अजेय हैं। विपक्ष उनके सामने अब भी बहुत छोटा है।
 
विपक्ष के किसी भी नेता को वो रुतबा नहीं मिल पाया है। हालांकि कांग्रेस मोदी के दूसरे कार्यकाल में महाराष्ट्र और झारखंड की सत्ता तक पहुंची। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस का कोई मुख्यमंत्री नहीं है लेकिन बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने में कामयाब रही।
 
राहुल गांधी की उम्मीद
राहुल गांधी को उम्मीद है कि वो पीएम मोदी को कड़ी चुनौती देंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि बीजेपी की सरकार कई समस्याओं को ठीक से निपटाने में नाकाम रही है।
 
लेकिन मोदी सरकार राजनीतिक मोर्चे पर समस्याओं से नहीं जूझ रही है, इसलिए राहुल गांधी या कांग्रेस के किसी नेता के लिए उन पर भारी पड़ना आसान नहीं है।
 
मोदी सरकार आर्थिक मोर्चे पर समस्याओं में घिरी हुई है और ये समस्याएं बहुत ही जटिल हैं। कहा जा रहा है कि आर्थिक मोर्चे पर ये समस्याएं इतनी बड़ी हैं कि पीएम मोदी चाहकर भी कोई निदान नहीं ढूंढ सकते।
 
प्रधानमंत्री के सामने जो नई चुनौतियां और उनके कारक हैं वो उनकी व्यक्तिगत सीमाएं और मजबूरियों के कारण नहीं हैं।
 
अच्छे दिन से आत्मनिर्भर तक
मोदी को पता है कि वो 2014 में अच्छे दिन के वादे के ज़रिए सत्ता पर काबिज हुए और 2020 में आत्मनिर्भर का नारा दे रहे हैं।
 
मोदी को अब भी एक मज़बूत और लोकप्रिय नेता माना जा रहा है। ऐसी छवि बनी है कि वो कड़े फ़ैसले लेने में हिचकते नहीं हैं और नई लीक बनाने की भी कोशिश करते हैं। मोदी इस बात से भी बेफ़िक्र रहते हैं कि जिस राह पर चलने का फ़ैसला किया है वो कहां जाएगी और क्या नतीजे मिलेंगे।
 
अपने दूसरे कार्यकाल के बाक़ी साल पीएम मोदी इन छवियों के साथ आगे बढ़ते दिखेंगे, जिसकी झांकी पहले साल में दिख चुकी है। कश्मीर में अलगाववाद और विद्रोह को चारा मुहैया करना वाले अनुच्छेद 370 का ख़ात्मा सरकार ने ऐसे ही किया।
 
बीजेपी का अगला अहम कदम
एक मास्टरस्ट्रोक के ज़रिए कश्मीर क़ानूनी और प्रशासनिक स्तर पर पूरे देश में समाहित हो गया। लेकिन अनुच्छेद 370 को हटाने भर से हर जगह न तो चुनाव में जीत मिलने लगी और न ही जम्मू और कश्मीर में हमेशा के लिए इस्लामिक चरमपंथी हमले ख़त्म हो गए।
 
इसके साथ ही मोदी सरकार ने तीन तलाक़ को लेकर भी अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। तीन तलाक़ ख़त्म होने से मुस्लिम महिलाओं को राहत मिली क्योंकि पुरुष शादी तोड़ने में मनमानी करते थे।
 
तीन तलाक़ बिल में ग़ैर-बीजेपी पार्टियों का वो चेहरा भी दिखा जिसमें उन्होंने लैंगिक समानता से ज़्यादा वोटबैंक को तवज्जो दी। बीजेपी ने यह संदेश भी दे दिया है कि उसका अगला क़दम यूनिफॉर्म सिविल कोड है।
 
मोदी की प्रतिबद्धता
इसके साथ ही मोदी सरकार ने आतंकवाद निरोधी क़ानून को अनलॉफुल एक्टिविटिज (प्रिवेंशन) एक्ट में संशोधन कर और कड़ा किया। इसके तहत अब किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है, जो कि कई देशों में पहले से ही ऐसा किया जाता था।
 
2019 के ख़त्म होते-होते सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर पर भी फ़ैसला दे दिया। अयोध्या में जहां मस्जिद थी अब वहां मस्जिद नहीं रहेगी और राम मंदिर बनेगा। मस्जिद 1992 में लालकृष्ण आडवाणी की अगुआई वाली बीजेपी के अभियान में तोड़ी गई थी।
 
बीजेपी को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद वो बाबरी विध्वंस मामले में दोषमुक्त हो गई है और अदालत के फ़ैसले को मुसलमानों के बड़े तबके ने स्वीकार कर लिया है।
 
नागरिकता संशोधन क़ानून
मोदी सरकार को नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए को लेकर काफ़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा। सीएए के तहत पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के ग़ैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रवाधान है।
 
सीएए को लेकर भारत के मुसलमानों के मन में कई तरह की आशंकाएं रहीं और इसके विरोध में प्रदर्शन भी हुए।
दिल्ली का शाहीन बाग़ सीएए विरोधी प्रदर्शन का प्रतीक बन गया।
 
इसके बाद एनपीआर यानी नेशनल पॉप्युलेशन रजिस्टर और एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर फोर सिटिज़न्स का मसला आया।
 
एनआरसी के कारण असम में बड़ी संख्या में लोग परेशान हुए। सीएए को लेकर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से लेकर दिल्ली के जामिया तक में हिंसा हुई।
 
दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे
यह हिंसा दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे में बदल गई। इसमें 50 से ज़्यादा हिन्दू और मुसलमान मारे गए। यह दंगा मोदी सरकार के लिए किसी धब्बे की तरह रहा जो अब तक किसी भी तरह की सांप्रदायिक दंगा नहीं होने देने का दावा करती थी।
 
हालांकि इससे पहले लिंचिंग के कई वाक़ये सामने आए थे। इसके अलावा बीजेपी को झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनाव में क़रारी हार मिली।
 
महाराष्ट्र में 30 साल पुरानी सहयोगी शिव सेना बीजेपी से अलग हो गई और उसने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई।
 
महाराष्ट्र में लंबे समय तक सरकार बनाने को लेकर सियासी नाटक चलता रहा और इसका अंत केंद्र सरकार की उस छवि के साथ हुआ कि सत्ता हासिल करने के लिए राज्यपाल को मोहरा बनाया गया।
 
आर्थिक फ़ैसले
इस दौरान सबसे साहसिक आर्थिक क़दम रहा 10 सरकारी बैंकों का बड़े बैंकों में विलय। इससे वर्कफोर्स का सही इस्तेमाल हुआ और खर्चों में भी कटौती हुई।
 
लेकिन सरकार के इन तमाम कामों के असर पर वैश्विक आर्थिक संकट के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में आई परेशानी भारी पड़ी।
 
2020 की शुरुआत और मोदी सरकार के आम बजट से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि अर्थव्यवस्था में कोई क्रांतिकारी सुधार होने जा रहा है।
 
मध्य वर्ग में सरकार की नीतियों को लेकर निराशा रही। मोदी सरकार के लिए आर्थिक चुनौतियां लगातार बड़ी हो रही हैं।
 
कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के फैलाव को रोकने के लिए लागू लॉडाउन से अर्थव्यवस्था की हालत और बिगड़ी।
 
कोरोना संकट
बड़ी तादाद में कोविड 19 की जांच के कारण संक्रमितों की संख्या बढ़ती दिख रही है लेकिन इस बीमारी की वृद्धि दर में गिरावट आई है। शुक्र है कि पीएम मोदी ने वक़्त रहते देश भर में कड़ी पाबंदियां लगाईं। अस्पतालों में मौजूदा सुविधाओं को दुरुस्त किया गया।
 
भारत में कोविड 19 से मरने वालों का प्रतिशत महज़ 2।87 है। मोदी इस मामले में श्रेय लेने का दावा कर सकते हैं लेकिन कुछ राज्यों ने भी अच्छे काम किए हैं। आज की तारीख़ में भारत कोरोना से संक्रमितों की कुल संख्या 173,491 और मृतकों की संख्या 4980 हो गई है।
 
कोरोना वायरस से लड़ाई के साथ लॉकडाउन के कारण उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मज़दूरों की परेशानी इस सरकार को असहज करने वाली रही।
 
मज़दूरों की बेबसी
सैकड़ों किलोमीटर की दूरी भूखे-प्यासे मज़दूर पैदल और साइकिल से जाते दिखे। वो किसी तरह से अपना गाँव पहुंचना चाहते हैं।
 
मोदी सरकार इन मज़दूरों की बेबसी को लेकर घिरी कि उसने लॉकडाउन को लेकर कोई तैयारी नहीं की थी। इन तमाम सवालों और परेशानियों की बीच मोदी सरकार ने 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की।
 
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पाँच दिनों तक हर दिन तक पैकेज की रक़म के आवंटन को लेकर प्रेस कॉन्फ़्रेंस की। अब सरकार के सामने चुनौती है कि जो पैकेज के जिस आवंटन की बात की है वो ज़मीन पर सच साबित हो।
 
मोदी सरकार अब भी बड़े सुधारों, संरचनात्मक बदलाव और कारोबार की सुगमता में भरोसा करती है। बीजेपी ने 2019 के घोषणापत्र में 2022 में भारत की आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर पार्टी के 75 माइलस्टोन की बात कही थी।
 
अगर मोदी सरकार वाक़ई 75 माइलस्टोन हासिल करने में कामयाब रहती है तो भारत के प्रगति की कहानी कोरोना वायरस की महामारी पर भारी पड़ेगी।

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