Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

ब्लॉग: कांग्रेस और राहुल को इतना इतराने की ज़रूरत नहीं है

Advertiesment
हमें फॉलो करें rahul gandhi
, शनिवार, 2 जून 2018 (11:35 IST)
- राजेश प्रियदर्शी (डिजिटल एडिटर, बीबीसी हिंदी)
 
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनके प्रवक्ता उप-चुनाव के नतीजे आने के बाद जितने ख़ुश दिख रहे हैं उतना ख़ुश होने की वजह उनके पास शायद नहीं है। विपक्षी एकता का फ़ॉर्मूला कामयाब है, ये बात गोरखपुर-फूलपुर के संसदीय उप-चुनाव में ही साबित हो गई थी। कैराना में भी वही बात एक बार फिर दिखाई दी लेकिन मुद्दे की बात ये है कि इन सभी जगहों पर कांग्रेस जूनियर सहयोगी की भूमिका में थी।
 
 
इन उप-चुनावों में कांग्रेस को कर्नाटक, मेघालय और पंजाब में कुछ सफलताएँ मिली हैं लेकिन वो ऐसी नहीं है कि कांग्रेस उन्हें ठोस उपलब्धि या भविष्य का संकेत मान सके। सांसदों की संख्या के हिसाब से सबसे बड़ी और राष्ट्रव्यापी विपक्षी पार्टी होने के बावजूद, बीजेपी विरोधी गठबंधन के निर्विवाद नेतृत्व का कांग्रेस का दावा अभी तक पुख़्ता नहीं है। तीन राज्यों--राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव उसकी अगली बड़ी परीक्षा होंगे, और मोदी-शाह के लिए भी।
 
 
कांग्रेस सिर्फ़ इस बात से ख़ुश हो सकती है कि विपक्ष एकजुट होकर मोदी-शाह को हरा सकता है, लेकिन बीजेपी की हार से कांग्रेस को क्या मिलेगा, इस सवाल का जवाब अभी साफ़ नहीं है। देश की जनता ने इतना ही आश्वासन दिया है कि सब कुछ उतना एकतरफ़ा नहीं है जितना कुछ एक समय पहले लग रहा था।
 
 
कर्नाटक में जेडी (एस) से दोगुनी से अधिक सीटें जीतने के बावजूद, कांग्रेस ने सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को रोकने के लिए कुमारस्वामी को सीएम बनवाया। लेकिन हालात ये हैं कि मंत्रालयों के बँटवारे पर दस से अधिक दिनों तक खींचतान चलती रही और वो आगे भी पूरी तरह ख़त्म नहीं होने वाली।
 
 
कहाँ जूनियर और कहाँ सीनियर पार्टनर होगी कांग्रेस?
अब तक की विपक्षी एकता दो चीज़ों पर टिकी है--बीजेपी का डर और कांग्रेस की उदारता। जब तक मोदी-शाह का डर बना रहेगा और कांग्रेस उदारता दिखाती रहेगी ये सब मामूली खींचतान के साथ चलता रहेगा।
 
 
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, तीनों राज्यों में बीजेपी सत्ता में है और उसका सीधा मुक़ाबला कांग्रेस से है, वहाँ कांग्रेस जूनियर पार्टनर नहीं होगी। यही उसका बड़ा इम्तहान है क्योंकि राहुल गांधी को अपना दम दिखाना पड़ेगा, सपा-बसपा-रालोद जैसे पार्टनर वहाँ नहीं होंगे जिनके कंधे पर चढ़कर वो बीजेपी को हराने की शेख़ी बघार सकें।
 
 
अगर कांग्रेस ये राज्य बीजेपी से छीन पाती है तब उसके पास ख़ुश होने के ठोस कारण होंगे लेकिन इन राज्यों में उसे सब कुछ अपने दम पर करना होगा। गुजरात में कांग्रेस को अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी के कार्यकर्ताओं का बहुत बड़ा सहारा मिला था लेकिन इन तीन राज्यों में ऐसा कोई सहारा नहीं मिलने वाला।
 
 
ज़मीनी स्तर पर कांग्रेस की संगठन क्षमता और उसके कार्यकर्ताओं की प्रतिबद्धता अब तक संदेह के घेरे में रही है। एक-एक वोटर का हिसाब रखने वाली, हर बूथ पर बीसियों कार्यकर्ता खड़े करने वाली, पूरी तरह प्रशिक्षित और प्रतिबद्ध 'पन्ना प्रमुखों' को उतारने वाली बीजेपी से उसे भिड़ना होगा, तब पता चलेगा कि किसमें कितना दम है।
 
 
जब बात सीटों के बँटवारे की आएगी तो कांग्रेस से उम्मीद होगी कि वो मध्य प्रदेश में यूपी से लगी सीटों पर सपा-बसपा के लिए और छत्तीसगढ़ में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के लिए सीटें छोड़ने में उदारता दिखाएगी।
 
 
कांग्रेस को 2019 में मुश्किल सवालों का सामना उन राज्यों में भी करना होगा जहाँ बीजेपी के ख़िलाफ़ दूसरी पार्टियाँ भी मौजूद हैं, मिसाल के तौर पर पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र। इन राज्यों में ममता बनर्जी और शरद पवार जैसे नेताओं के साथ होने वाले सीट शेयरिंग समझौतों में भी कांग्रेस से उदारता दिखाने की उम्मीद की जाएगी।
 
 
इम्तेहान और भी हैं
कई दिलचस्प स्थितियाँ उभरेंगी जिनसे बीजेपी विरोधी गठबंधन को निबटना होगा, मिसाल के तौर पर केरल में क्या होगा? वहाँ वामपंथियों और कांग्रेसियों का सीधा मुक़ाबला है और बीजेपी रास्ते बनाने की कोशिश में जुटी है। या फिर पश्चिम बंगाल जहाँ वामपंथी, तृणमूल, कांग्रेस और बीजेपी चारों मुक़ाबले में हैं।
 
 
ऐसी चर्चाएँ चल रही हैं कि बीजेपी को हराने के लिए हर राज्य में अलग फॉर्मूला तय किया जाएगा ताकि हर राज्य में सबसे मजबूत क्षेत्रीय पार्टी या कांग्रेस, गठबंधन को नेतृत्व दे सके और उसी हिसाब से सीटों का बँटवारा हो।
 
 
अभी इस सियासी सीरियल के कई एपिसोड बाक़ी हैं, राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के विपक्ष के दावेदार नहीं बन सके हैं और ऐसा होने के लिए उन्हें कई और टेस्ट पास करने होंगे, यह केवल उदारता दिखाने भर से संभव नहीं होगा।
 
 
क्या है कांग्रेस की कहानी?
बीजेपी के लिए यह कहना बहुत आसान होगा कि सभी 'हिंदू विरोधी दल एकजुट हो गए हैं', 'छद्म निरपेक्षता वाले जमा हो गए हैं', सभी 'भ्रष्ट और जातिवादी पार्टियाँ एक हो गई हैं', बीजेपी अपने तरीक़े से ये सब साबित करके ही 2014 में सत्ता में आई थी। बीजेपी के पास अब जनता को सुनाने के लिए एक कहानी है, कितने लोग उस पर विश्वास करेंगे वो अलग बात है।
 
 
इस कहानी के नायक ग़रीब परिवार से आने वाले नरेंद्र दामोदारदास मोदी हैं जिन्होंने रात-दिन एक करके नेहरू-गांधी परिवार की वजह से बर्बाद हो गए देश को उबार लिया है, देश को उसका खोया हुआ गौरव मिल गया है, भारत एक महान हिंदू राष्ट्र और विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है, भारत में पाकिस्तान (पढ़ें मुसलमान) की हिमायत करने वाले लोगों के लिए कोई जगह नहीं है, वंशवाद और भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है, इतिहास की ग़लतियाँ सुधारी जा रही हैं, 2022 तक न्यू इंडिया बना लिया जाएगा।
 
 
इसके बरअक़्स विपक्ष न तो बीजेपी के सबसे मज़बूत कार्ड हिंदुत्व की कोई काट खोज पाई है और न ही अपनी कोई नई कहानी बुन पाई है। वो अभी मोदी के ख़िलाफ़ गोलबंद हुए तरह-तरह के लोगों के झुंड की तरह दिख रही है। मोदी जब अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव की तर्ज़ पर कैम्पेन करेंगे, जब उनको सुपरहीरो बनाने वाली एजेंसियाँ जुटेंगी, जब सबसे अमीर पार्टी अपने खज़ाने खोलेगी तब नज़ारा उप-चुनावों जैसा नहीं होगा।
 
 
विपक्ष को और राष्ट्रव्यापी पार्टी कांग्रेस को एक पॉजिटिव एजेंडा के साथ मैदान में उतरना होगा। बीजेपी समर्थक पूछते हैं कि 'मोदी नहीं तो कौन?' इसका जवाब विपक्षी गठबंधन के पास नहीं है, कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह की साझा तस्वीर पर लोग यही चुटकी ले रहे थे कि पीएम पद के नौ दावेदार एक साथ दिख रहे हैं।
 
 
"मोदी नहीं तो कौन?" अपने-आप में एक बड़ा सवाल है, लेकिन उससे ज़्यादा बड़ा सवाल है- "हिंदुत्व नहीं तो क्या?" इसका जवाब कांग्रेस या विपक्ष के पास फ़िलहाल नहीं है, वे ख़ुश होने से पहले बड़े मुद्दों और सवालों के जवाब लेकर जनता के सामने जाएँ।
 
 
राहुल गांधी ने मोदी के पीछे-पीछे मंदिर में माथा टेकने के अलावा ऐसा अब तक कुछ नहीं किया है जिससे लगे कि उनके पास मोदी-शाह से निबटने का कोई नुस्ख़ा है। कांग्रेस की उम्मीदें अपनी नीतियों और अभियान की कामयाबी पर नहीं बल्कि बीजेपी की नाकामियों पर टिकी है।
 

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भारत दौरे की तैयारी में चीनी सेना