जुगल पुरोहित और अर्जुन परमार, बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली
कोरोना वायरस के कारण देश में पहली बार लॉकडाउन लगाने की घटना को एक साल पूरा हो गया है। क्या आपको ये शब्द याद हैं? - "आज से पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन लगाया जा रहा है। लोगों के घरों से निकलने पर पूरी तरह पाबंदी लगाई जा रही है। अगले 21 दिनों तक आपको यह भूल जाना होगा कि घर से बाहर निकलना क्या होता है।"
24 मार्च रात आठ बजे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश को रोक दिया था ताकि, "कोरोना महामारी को फैलने से रोका जा सके और संक्रमण के चक्र को तोड़ा जा सके"। जिस दिन पीएम ने लॉकडाउन का एलान किया, उस दिन तक देश में कोविड-19 के 519 मामलों की पुष्टि हो चुकी थी। संक्रमण से नौ मौतें भी हो चुकी थीं।
एक और बात
प्रधानमंत्री ने उस रात अपनी स्पीच में बताया था कि उनकी सरकार कोरोना संक्रमण को क़ाबू करने के लिए राज्य सरकारों से मिल कर काम कर रही है। साथ ही सरकार स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह पर भी काम कर रही है।
दरअसल केंद्र सरकार ने यह दिखाया था कि अगले ढाई महीनों तक इस वायरस पर अपनी निगरानी और इसे रोकने की अपनी कोशिश के तहत यह सबको साथ लेकर चली है।
केंद्र सरकार की ओर से कहा गया, "प्रधानमंत्री ख़ुद कोरोना संक्रमण को रोकने और इसके ख़िलाफ़ क़दम उठाने की तैयारियों की निगरानी कर रहे थे।"
हालांकि, बीबीसी की ओर से की गई एक विस्तृत पड़ताल ने साफ़ किया है कि केंद्र की ओर से कोरोना के ख़िलाफ़ सबसे कड़ा क़दम यानी लॉकडाउन लगाने से पहले सलाह-मशविरे की प्रक्रिया बहुत कम या नहीं के बराबर अपनाई गई।
बीबीसी ने सूचना का अधिकार कानून, 2005 का इस्तेमाल करते हुए कई प्रमुख एजेंसियों, संबंधित सरकारी विभागों और कोरोना संक्रमण से पैदा हालातों को क़ाबू करने में जुटे राज्य सरकारों से संपर्क किया।
हमने पूछा कि क्या उन्हें पूरे देश में लगाए जाने वाले लॉकडाउन के बारे में पहले से पता था? क्या उन्हें पता था कि लॉकडाउन लागू करने से पहले उनके विभागों और क्षेत्र को क्या तैयारी करनी है। या फिर लॉकडाउन से पैदा मुश्किल हालातों को कम करने के लिए क्या तैयारी करनी है?
1 मार्च, 2021 को हमने सूचना और प्रसारण मंत्रालय से संपर्क साधा ताकि इस स्टोरी के लिए केंद्र सरकार के नज़रिये का पता चल सके। लेकिन अब तक न तो सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और न ही उनके सचिव अमित खरे इंटरव्यू देने के लिए राज़ी हुए हैं।
बीबीसी ने जिन लोगों से बात की या संपर्क किया, उनमें से अधिकतर ने कहा दुनिया का सबसे बड़ा लॉकडाउन कैसा होगा इस बारे में उनसे कोई मशविरा नहीं किया गया और न ही उनके पास ऐसी कोई जानकारी थी।
तो फिर भारत सरकार ने कैसे यह फ़ैसला ले लिया कि लॉकडाउन लगाना है? और लोगों की मदद के लिए लागू किए जाने वाले लॉकडाउन के बारे में सरकारी मशीनरी और इसके अहम हिस्सों को पता कैसे नहीं था?
आइए पहले इससे जुड़े कुछ संदर्भों को देखते हैं
जनवरी 2020 के मध्य से ही यानी 24 मार्च को लॉकडाउन के ऐलान से दो महीने पहले ही केंद्र सरकार ने कहा था कि वह कोरोना संक्रमण पर पूरी मुस्तैदी से निगाह रखे हुए है और इसे रोकने की तैयारी कर रही है।
22 फरवरी, 2020 को जब भारत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विशाल स्वागत समारोह की तैयारी में लगा था तो देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने ऐलान किया कि, "भारत का मज़बूत हेल्थ सर्विलांस सिस्टम कोरोना संक्रमण को देश में घुसने से रोकने में कामयाब रहा है।"
जब देश में धीरे-धीरे कोरोना के मामले बढ़ने लगे तो 5 मार्च 2020 को उन्होंने संसद में कहा, केंद्र और राज्य सरकारें पीपीई किट और N95 मास्क का बफ़र स्टॉक बनाए हुए हैं। देश के स्पेशलियटी केयर अस्पतालों में आइसोलेशन बेड का पूरा इंतज़ाम है ताकि संक्रमण से लड़ा जा सके।"
फिर भी, तीन सप्ताह से कम वक्त के भीतर ही देश भर में एक कड़ा लॉकडाउन लगा दिया गया। लॉकडाउन लगाने के अपने फ़ैसले को मज़बूती देने के लिए 24 मार्च को केंद्र सरकार ने कहा कि पीएम के ऐलान से पहले ही "30 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश (पहले से ही) पूरी तरह लॉकडाउन लगा चुके हैं।"
लेकिन केंद्र सरकार ने जो नहीं बताया वो यह कि लॉकडाउन के ज़्यादातर फ़ैसले राज्यों ने अपने यहां के हालातों और तैयारियों के मद्देनज़र ख़ुद लिए थे। कुछ राज्यों में लॉकडाउन 31 मार्च, 2020 तक प्रभावी थे। जबकि प्रधानमंत्री ने जिस लॉकडाउन का ऐलान किया था, वह पूरे तीन सप्ताह तक चलने वाला था।
...और बाक़ी दुनिया में क्या हो रहा था
भारत ने जब लॉकडाउन की घोषणा की उस दौरान कुछ यूरोपीय देशों ने लॉकडाउन तो नहीं लगाया था लेकिन वहां बड़े पैमाने पर पाबंदियां लागू कर दी गई थीं।
इनमें इटली (डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक़ उस वक्त तक यहां कोरोना संक्रमण के 60 हज़ार मामले सामने आ चुके थे। लगभग छह हज़ार लोगों की मौतें भी हो चुकी थी), स्पेन (उस वक्त तक कोरोना संक्रमण के 50 हज़ार मामलों की पुष्टि हो चुकी थी और तीन हज़ार लोग मारे जा चुके थे) और फ्रांस (उस वक्त तक यहां कोरोना संक्रमण के 20 हज़ार मामले आ चुके थे और इस कारण 700 मौतें हो चुकी थीं)।
लेकिन चीन में उस वक्त तक कोरोना संक्रमण के 80 हज़ार केस सामने आ चुके थे और 300 मौतें हो चुकी थीं। इसके बावजूद उसने सिर्फ हुबेई प्रांत में लॉकडाउन लगाया था। चीन ने पूरे देश में लॉकडाउन नहीं किया था।
तो फिर लॉकडाउन का फ़ैसला कैसे किया गया?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही 24 मार्च को सार्वजनिक तौर पर लॉकडाउन का ऐलान किया, लेकिन सरकार की फ़ाइलों में यह काम नेशनल डिज़ास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) के आदेश के ज़रिये हो चुका था। यह आदेश संख्या थी 1-29/2020-PP (Pt II) । ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री एनडीएमए के चेयरपर्सन हैं।
एनडीएमए के पॉलिसी एंड प्लान डिवीज़न की ओर से जारी और केंद्रीय गृह मंत्रालय को संबोधित 24 मार्च 2020 के आदेश में कहा गया है, "..लॉकडाउन से संबंधित तमाम क़दमों को पूरे देश में समान रूप से लागू करने और अमल में लाने की ज़रूरत है... एनडीएमए ने भारत सरकार के मंत्रालयों/विभागों, राज्य सरकारों और राज्य प्रशासनों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सुनिश्चित करवाने के लिए निर्देश देने का फ़ैसला किया है ताकि देश में कोविड-19 को देश भर में फैलने से रोका जा सके।"
गृह सचिव एनडीएमए की नेशनल एग्ज़ीक्यूटिव कमेटी के चेयरपर्सन भी हैं। उन्होंने उसी दिन 'निर्देश जारी' किए। इस तरह लॉकडाउन लगाने की पूरी तैयारी चल रही थी।
इस बारे में पता करने के लिए हमने एनडीएमए से संपर्क किया। हमने अपने आरटीआई आवेदन में उन सभी सार्वजनिक प्रशासनों/विशेषज्ञों/व्यक्तियों/सरकारी संस्थानों/निजी संस्थानों और राज्य प्रशासनों की सूची मांगी, जिनसे लॉकडाउन से जुड़े फ़ैसले लागू करने से पहले सलाह-मशविरा किया गया था।
हम यह जानना चाह रहे थे कि 24 मार्च, 2020 से पहले कोरोना संक्रमण पर एनडीएमए की कितनी बैठकें हुईं, जिनमें प्रधानमंत्री मौजूद रहे थे। हमारे आरटीआई आवेदन के जवाब में कहा गया कि ऐसी कोई बैठक नहीं हुई थी। कोरोना संक्रमण को लेकर प्रधानमंत्री की मौजूदगी में एनडीएमए की कोई बैठक नहीं हुई थी।
पीएमओ ने क्या कहा?
याद कीजिये कि इस मामले को किस तरह दिखाया गया- यही कि प्रधानमंत्री ख़ुद इस संक्रमण की शुरुआत से ही इसके बचाव में उठाए जा रहे क़दमों का नेतृत्व कर रहे हैं?
इसलिए हमने कोरोना संक्रमण से जुड़ी पीएमओ की उन सभी बैठकों की सूची मांगी, जिनमें प्रधानमंत्री मौजूद रहे थे। हमने उन सभी मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और सलाहकारों की सूची मांगी, जिनसे नेशनल लॉकडाउन घोषित किए जाने से पहले पीएमओ ने सलाह-मशविरा किया था।
पीएमओ ने दो बार मांगी गई सूचना नहीं दी। एक बार हमारी दरख्वास्त 'अस्पष्ट' कह कर रद्द कर दी गई। कहा गया कि आवेदन 'रोविंग इन नेचर' है। दूसरा आवेदन इस आधार पर ख़ारिज किया गया कि यह आरटीआई एक्ट, 2005 के सेक्शन 7(9) के तहत आता है।
इस सेक्शन में कहा गया है, "किसी सूचना को उस प्रारूप में तभी मुहैया कराया जाएगा जब वह सार्वजनिक अथॉरिटी के संसाधनों को असंगत तौर पर दूसरी ओर न मोड़े या फिर जो रिकॉर्ड मांगा गया है वह तभी दिया जाएगा जब यह सुनिश्चित हो जाए कि यह आवेदन इसकी सुरक्षा और संरक्षण के लिए ख़तरा नहीं है।"
लेकिन सरकार में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के मसले पर काम करने वालीं अंजलि भारद्वाज के मुताबिक़ यह सेक्शन सरकार को सूचना मुहैया कराने से छूट नहीं देता। उन्होंने कहा, "यह सेक्शन सिर्फ़ यह कहता है कि अगर सरकार को लगता है कि आवेदन पर सूचना देने में इसे ज़रूरत से ज़्यादा समय और संसाधन ख़र्च करना होगा तो यह किसी दूसरे रूप में मुहैया कराई जा सकती है। हालांकि मैं सोचती हूं कि सेक्शन 7(9) के तहत सूचना देने से इंकार करना ग़ैरक़ानूनी है।"
24 मार्च को लॉकडाउन का ऐलान करने से चार दिन पहले यानी 20 मार्च को प्रधानमंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की। लेकिन पीएमओ की ओर से जारी इसकी प्रेस-रिलीज़ में 'लॉकडाउन' शब्द का कहीं भी ज़िक्र नहीं था। लिहाज़ा हमने यह जानकारी मांगी कि बैठक में देशभर में लगाए जाने वाले लॉकडाउन पर चर्चा हुई थी या नहीं?
लेकिन पीएमओ ने हमारे आरटीआई आवेदन को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को भेज दिया। इसके बाद वहां से यह गृह मंत्रालय को भेजा गया। और आख़िर में वही प्रेस रिलीज़ देखने को कह दिया गया, जो 20 मार्च की बैठक के बाद पीएमओ की ओर से जारी की गई थी।
अब गृह मंत्रालय की बात करते हैं
इस रिपोर्ट के संदर्भ में इन दो पहलुओं की वजह से गृह मंत्रालय काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। पहला यह कि गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र के तहत ही देश में लगे लॉकडाउन से जुड़े निर्देश जारी किए गए थे।
दूसरा पहलू यह कि लॉकडाउन का फ़ैसला लेने में विभिन्न अहम विभागों और मंत्रालयों ने योगदान दिया था, उसके बारे में जानने के लिए जब भी हमने उन्हें आरटीआई आवेदन किया, उन्हें गृह मंत्रालय भेज दिया गया। जिन विभागों और मंत्रालयों ने हमारे आरटीआई आवेदनों को गृह मंत्रालय को भेजा था उनमें प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ, वित्त मंत्रालय और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी Indian Council for Medical Research (ICMR) जैसी संस्था शामिल थीं।
हमने लॉकडाउन के ऐलान के पहले गृह मंत्रालय में हुए विचार-विमर्श को भी जानने के लिए आरटीआई आवेदन दिया लेकिन इसे भी ख़ारिज कर दिया गया।
आरटीआई आवेदनों को ख़ारिज करने की वजह क्या थी?
हमने गृह मंत्रालय को जो आवेदन दिया था, उसके जवाब में कहा गया, "सूचना के आधिकार, 2005 के सेक्शन 8(1)(a) और (e) के तहत देश के रणनीतिक और आर्थिक हित और इससे जुड़ी ऐसी सूचनाएं, जिनसे विश्वास के संबंध पर विपरीत असर पड़ता है, आरटीआई के तहत प्रकट नहीं की जा सकतीं।"
विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में दाख़िल हमारे जिन आरटीआई आवेदनों को गृह मंत्रालय को भेजा गया था, उनके जवाब में भी यही दोहराया गया।
कुछ मामलों में गृह मंत्रालय ने उन आवेदनों को उन्हीं मंत्रालयों और विभागों को वापस भेज दिया, जहां से वे इसके पास आए थे। गृह मंत्रालय ने उन्हीं मंत्रालयों को हमारे उन आवेदनों का जवाब देने को कहा।
क्या राज्यों को लॉकडाउन के फ़ैसले के बारे में पता था?
देश की राजधानी दिल्ली में लेफ्टिनेंट गवर्नर, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को केंद्र की ओर से लॉकडाउन लगाए जाने से पहले विचार-विमर्श किए जाने की कोई सूचना नहीं थी।
इसी तरह का जवाब असम और तेलंगाना के सीएमओ (Chief Ministers offices) ने भी दिया। उनका भी कहना था कि उनके पास कोई ऐसी जानकारी नहीं थी, जिससे ये संकेत मिलता कि लॉकडाउन लगाने से पहले कोई विचार-विमर्श हुआ था।
यह भी दिलचस्प है कि जब हमने उत्तर प्रदेश सीएमओ को इस संबंध में अपना आरटीआई भेजा तो उन्होंने इसे यह कहकर लौटा दिया कि केंद्र सरकार से ही पता कर लें।
पूर्वोत्तर भारत को महामारी से बचाने के लिए संबंधित राज्यों के साथ मिल कर काम कर चुके केंद्र के उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (Ministry of Development of North Eastern Region -DONER) ने भी कहा कि लॉकडाउन से पहले उससे कोई मशविरा नहीं किया गया।
कोरोना वायरस मामले में बने मंत्रियों के समूह का क्या हुआ? क्या कैबिनेट में कभी लॉकडाउन पर चर्चा हुई?
3 फरवरी, 2020 को सरकार ने 'पीएम के निर्देश पर एक उच्चस्तरीय मंत्री समूह के गठन' का ऐलान किया, ताकि "नोवल कोरोना वायरस के प्रबंधन की समीक्षा की जा सके"।
मंत्रियों के इस समूह की अगुवाई कर रहे थे स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन। इसमें नागरिक उड्ड्यन मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय की अगुवाई करने वाले मंत्री भी शामिल थे।
3 फरवरी से लॉकडाउन लागू होने के बीच मंत्रियों के इस समूह की कई बार बैठकें हुईं। उन्होंने सभी अंतरराष्ट्रीय कॉमर्शियल यात्री विमानों की भारत में एंट्री रोकने समेत कई अहम ऐलान किए।
हमने कैबिनेट सचिवालय से भी यह पूछा कि क्या उनके पास ऐसी कोई सूचना थी, जिससे यह पता चले कि मंत्रियों के इस समूह ने लॉकडाउन लगाने की सिफारिश की थी या फिर इस पर कोई सलाह-मशविरा किया था।
हमने कैबिनेट सचिवालय से यह सवाल क्यों पूछा?
हमने कैबिनेट सचिवालय से इसलिए पूछा क्योंकि "यह (कैबिनेट ) सचिवालय ही कैबिनेट और इसकी कमेटी को सचिवालय संबंधी सहायता देता है। साथ ही यह अंतर-मंत्रालय को-ऑर्डिनेशन के ज़रिये सरकार के अंदर फैसले लेने में मदद करता है। यह देश में किसी बड़े संकट की स्थिति को संभालने और इसके प्रबंधन में भी मदद करता है। ऐसी स्थिति में तमाम मंत्रालयों के बीच को-ऑर्डिनेशन से जुड़ी गतिविधियों को अंजाम देना भी कैबिनेट सचिवालय का ही काम है।"
हालांकि कैबिनेट सचिवालय ने भी हमारा आरटीआई आवेदन गृह मंत्रालय को भेज दिया। इसके कुछ ही दिनों के बाद गृह मंत्रालय से यह जवाब आ गया "मांगी गई सूचना आरटीआई एक्ट, 2005 के सेक्शन 8(1) (a) और (e) के दायरे में नहीं आती।"
यही आरटीआई आवेदन स्वास्थ्य मंत्रालय में भी दाखिल किया गया है लेकिन अभी तक वहां से इसका जवाब नहीं आया है। मंत्रालय का जवाब आते ही हम इसे शामिल कर स्टोरी को अपडेट कर देंगे।
कैबिनेट सचिवालय से जो जानकारी मिली उसमें यह बताया गया कि लॉकडाउन के पहले कुछ दिनों के दौरान यूनियन कैबिनेट की बैठक हुई थी लेकिन इसमें कोरोना महामारी या लॉकडाउन की कोई चर्चा हुई, इस बारे में कोई जानकारी साझा नहीं की गई।
'हमें पता था कि लॉकडाउन लगने वाला है'
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने तो लॉकडाउन के बारे में पूछने पर कोई जवाब नहीं दिया। तब हमने सरकार के थिंक टैंक नीति-आयोग के वाइस चैयरमैन डॉ. राजीव कुमार से इस बारे में पूछा।
डॉ. कुमार को कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल है। उन्होंने कहा, "मैं नहीं समझता कि लॉकडाउन बग़ैर किसी योजना के लगा दिया गया। भारत की विविधता और इसकी कमज़ोरियों को देखते हुए इसे ऐसे ही लॉकडाउन की ज़रूरत थी। हमने लॉकडाउन पर चर्चा की थी। इसके बाद ही इसे लागू किया गया। इसलिए यह कहना ग़लत होगा कि इसे यूं ही लगा दिया गया। पीएम ने हर किसी से बात की थी।"
'लोकतंत्र की शुचिता के ख़िलाफ़'
हमारे आरटीआई आवेदनों पर एनडीएमए और गृह मंत्रालय से हमें जो जवाब मिले थे उनकी समीक्षा करते हुए अंजलि ने कहा, "जब आपदा प्रबंधन की बात आती है तो सरकार के अधिकार काफ़ी व्यापक हो जाते हैं। हालांकि इस अधिकार के साथ ज़िम्मेदारी भी जुड़ी है।"
"कोरोना वायरस के मामले जनवरी में ही आने शुरू हो गए थे और भारत में लॉकडाउन लगाया गया मार्च के आख़िरी हफ्ते में। यह कोई बाढ़ या भूकंप नहीं था जो रातों-रात आ गया हो। इसलिए पीएम ने जब लॉकडाउन का एलान किया तो यह उम्मीद करना स्वाभाविक था कि इसका फ़ैसला करने से पहले सलाह-मशविरा हुआ होगा और सभी क्षेत्रों की तैयारियों का जायज़ा लिया गया होगा।"
हमारे आरटीआई आवेदन जिस तरह से ख़ारिज हुए इस पर उनका कहना था, "जो जवाब मिले हैं, उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता। सरकार के अंदर सलाह-मशविरे की ऐसी कौन-सी बात होती है, जिसे गुप्त रखा जा सकता है और जिसे जनता से साझा नहीं किया जा सकता। यह नज़रिया लोकतंत्र की शुचिता के ख़िलाफ़ है।''
जब उनसे पूछा गया कि राज्यों को तो लॉकडाउन के बारे में जानकारी ही नहीं दी गई तो उन्होंने कहा, "इसका मतलब यह नहीं है कि उनसे सवाल नहीं किए जा सकते। राज्य तो यह कह कर आसानी से पल्ला झाड़ लेंगे कि हमें को कुछ पता ही नहीं था।"