अनंत प्रकाश, बीबीसी संवाददाता
दिन: शुक्रवार, तारीख़: 3 जुलाई, स्थान: बिकरू गाँव, थाना: चौबेपुर, ज़िला: कानपुर
ये वो तीन जानकारियां हैं जिनसे उत्तर प्रदेश पुलिस के उस एनकाउंटर की कहानी शुरू होती है जिसमें अपराधी की जगह पुलिसकर्मियों की मौत हुई और अपराधी फ़रार हो गए।
पुलिस कर्मियों की मौत कैसे हुई, अपराधी कब - कहां फ़रार हो गए और पुलिसवाले बुलेट प्रूफ़ जैकेट क्यों नहीं पहने हुए थे, ये जानकारियां कब सामने आएंगी, अभी पता नहीं। लेकिन बीती रात बिकरू गांव में क्या, कब और कैसे हुआ, इसकी जानकारी आप यहां पढ़ सकते हैं।
विकास दुबे के घर पहुंची पुलिस की गाड़ियां
बिकरू गांव वो जगह है जिसे विकास और उनके परिवार का गढ़ बताया जाता है। 12 फ़ुट ऊंची दीवारों वाले क़िले नुमा घर में रहने वाले दुबे के ख़िलाफ़ कम से कम 60 मामलों में एफ़आईआर दर्ज हैं।
लेकिन हाल के दिनों में जब राहुल तिवारी नाम के शख़्स ने विकास दुबे के ख़िलाफ़ 307 का मुक़दमा दर्ज कराया तब पुलिस ने उनके यहां दबिश देने का फ़ैसला किया। लेकिन विकास दुबे को पकड़ने के इस प्रयास में एक सर्किल ऑफ़िसर समेत आठ पुलिसकर्मियों की मौत हो गई है। और कई पुलिसकर्मी अभी भी घायल बताए जा रहे हैं।
घटनास्थल पर पहुंचने वाले पत्रकार प्रवीण मोहता ने बीबीसी हिंदी को उस जगह का हाल बयां किया जहां आठ पुलिसकर्मियों की मौत हुई है।
मोहता बताते हैं, “ये घटना कल (गुरुवार) रात की है। बिल्हौर सर्किल के डीएसपी देवेंद्र मिश्र तीन थानों चौबेपुर, बिठूर और बिल्हौर की फ़ोर्स लेकर बिक्रू गांव पहुंचे थे। उनके साथ कई थानों की फ़ोर्स मौजूद थी।”
मुठभेड़ की तैयारी
यूपी पुलिस की कई गाड़ियां धीमे-धीमे बिकरू गाँव की ओर बढ़ रही थीं।
गांव के बीचो बीच स्थित विकास के घर की छत से पूरे क्षेत्र की ख़बर ली जा सकती है। ये घर रणनीतिक रूप से इतनी अच्छी स्थिति में है कि दूर से आते पुलिस के वाहनों को देखकर भागने या संघर्ष करने की रणनीति बनाई जा सकती है।
ऐसे में जब पुलिसकर्मी विकास के घर की ओर बढ़ रहे थे तभी उसके सफ़ेद रंग में पुते घर से सौ मीटर की दूरी पर एक पीले रंग की जेसीबी मशीन दिखाई दी।
प्रवीण मोहता बताते हैं, ”जेसीबी मशीन खड़ी होने की वजह से पुलिस का रास्ता पूरी तरह ब्लॉक हो गया। ऐसे में पुलिस की टीम पूरी तरह फँसकर रह गई।”
घटनास्थल तक पहुंचने वाले एक अन्य पत्रकार अंकित शुक्ल बताते हैं कि उन्होंने जो देखा, वो रूह कंपाने वाला था।
वे कहते हैं, “ये कोई ऐसी घटना नहीं थी कि पुलिस अचानक से आ गई और अपराधियों को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी। ये सोची-समझी रणनीति थी।”
ताबड़तोड़ फ़ायरिंग और ख़ून ही ख़ून
मोहता कहते हैं, “पहली गोली कहां से चली किसी को नहीं पता लेकिन जब एक बार गोलियां चलना शुरू हुईं तो दोनों ओर से ताबड़तोड़ फ़ायरिंग शुरू हो गई।”
“विकास के साथ हमेशा आधे दर्जन से ज़्यादा शूटर रहते हैं और ये शूटर घरों की छतों से पुलिसकर्मियों पर गोलियां बरसा रहे थे। ऐसे में जो पुलिसकर्मी जेसीबी के नीचे से होते हुए विकास के घर की ओर चले गए, वे वापस नहीं लौटे। उसके घर के गेट पर ऊपर से गोलियां और पत्थरों की बरसात की गई। ऐसे में पुलिसकर्मियों ने आसपास के घरों में बने सहन और बाथरूम जैसी जगहों में आड़ लेने की कोशिश की।"
“लगभग दो दर्जन से ज़्यादा पुलिसकर्मी थे जिनमें से ज़्यादातर घायल थे। इनमें से कुछ जान बचाकर खेतों की ओर भाग गए। इसके बाद विकास दुबे के साथ रहने वाले शूटर घर से बाहर निकले और आसपास घरों में छिपे पुलिसकर्मियों को निकालकर उन्हें जान से मार दिया।”
अंकित बताते हैं कि अपनी जान बचाते हुए पुलिसकर्मियों को कहीं भी पनाह नहीं मिली। वे कहते हैं, “बीती रात अपराधियों ने घेरेबंदी करके पुलिसकर्मियों की जान ली। सर्किल ऑफ़िसर को इस तरह मारा गया है कि शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।”
ख़ूनी सुबह...
ख़ुद को बचाते हुए आधे दर्जन से ज़्यादा पुलिसकर्मियों को मारने वाले विकास दुबे जब अपने घर से फ़रार हुए तब उनके घर के बाहर ख़ून ही ख़ून था।
प्रवीण बताते हैं, “कई पुलिसकर्मियों को मारने के बाद विकास दुबे एक मोटरसाइकिल पर बैठकर फ़रार हो गए। पुलिस ने इसके बाद दो लोगों का एनकाउंटर भी किया है।”
सुबह-सुबह घटनास्थल पर पहुंचने वाले अंकित शुक्ल बताते हैं कि विकास दुबे के घर की डेहरी से लेकर गली ख़ून से सनी हुई थी।
वे कहते हैं, “उस जगह पर ख़ून इतना था कि जब हम उसके घर की ओर निकले तब सड़क पर ख़ून बिखरा पड़ा था। एक बाथरूम से चार पुलिसकर्मियों के शव बाहर निकाले गए। और दीवारों पर गोलियों के न जाने कितने निशान हैं।”
इस घटना के बाद पुलिसकर्मियों में भारी ग़ुस्सा है तो वहीं विकास दुबे के गांव में खलबली का माहौल है। ये घटना की जगह पर सबसे पहले पहुंचने वाले दो पत्रकारों के बताए विवरण हैं। इस घटना पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।