Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

उफ़! ये गर्मी.. कितनी गर्मी बर्दाश्त कर सकता है इंसान का शरीर

हमें फॉलो करें उफ़! ये गर्मी.. कितनी गर्मी बर्दाश्त कर सकता है इंसान का शरीर

BBC Hindi

, शुक्रवार, 2 जुलाई 2021 (07:45 IST)
सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
कनाडा में इस साल गर्मी के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं। वहाँ हीट वेव यानी ऐसी लू चली कि कई लोग गर्मी की वजह से मर रहे हैं। मंगलवार को वहाँ 49.5 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया। लगातार तीसरे दिन वहाँ गर्मी के, एक के बाद एक, सारे रिकॉर्ड टूट गए। इससे पहले कनाडा में 45 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान कभी रिकॉर्ड नहीं किया गया था।
 
एनवायरन्मेंट कनाडा के वरिष्ठ जलवायु विज्ञानी डेविड फ़िलिप का कहना है, "अब से पहले कनाडा को ठंडे मौसम के लिए जाना जाता था। कनाडा दुनिया का दूसरा ठंडा देश है और यहाँ बर्फबारी भी जम कर होती है।"
 
ऐसी रिकॉर्डतोड़ गर्मी के पीछे जानकार 'हीट डोम' को वजह बता रहे हैं, जो सदी में एक बार आता है। 'हीट डोम' गर्म हवाओं का एक पहाड़ होता है, जो बहुत तेज़ हवा की लहरों के उतार चढ़ाव से बनता है। गर्म हवा वातावरण के ऊपर की ओर फैलती है और उच्च दवाब, बादलों को डोम से दूर धकेलता है।
 
कनाडा के अलावा उत्तर पश्चिम अमेरिका में भी इस बार रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ रही है। अमेरिका के नेशनल वेदर सर्विस ने कहा है कि सोमवार को उत्तर पश्चिम अमेरिका के पोर्टलैंड, ओरेगन में तापमान 46।1 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया और सिएटल, वाशिंगटन में 42।2 डिग्री सेल्सियस। जब से अमेरिका में तापमान का रिकॉर्ड रखना शुरू किया गया है, तब से इतना अधिक तापमान पहले कभी रिकॉर्ड नहीं किया गया।
 
पोर्टलैंड में तो स्ट्रीट कार सर्विस ही बंद करनी पड़ी, क्योंकि गर्मी की वजह से केबल की तार भी ख़ुद-ब-खुद पिघलने लगी। भारत की बात करें तो चूरू और फलोदी में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के आस-पास चला जाता है।
 
webdunia
इंसानी शरीर किस हद तक गर्मी बर्दाश्त कर सकता है?
जब गर्मी से केबल की तार तक पिघल सकती हैं तो ज़रा सोचिए मानव शरीर कैसे इतनी गर्मी को झेलता होगा? सवाल ये भी उठता है कि हमारा शरीर बाहर का कितना अधिक तापमान झेल सकता है?
 
राजस्थान मेडिकल एंड हेल्थ के उदयपुर जोन के जॉइंट डायरेक्टर डॉक्टर जुल्फिकार अहमद क़ाज़ी के अंतर्गत उदयपुर समेत 6 ज़िलों के अस्पताल आते हैं। वहाँ हीट स्ट्रोक का क़हर काफ़ी रहता है।
 
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया कि चाहे गर्मी हो या सर्दी हमारे शरीर के अंदर का तंत्र हमेशा शरीर का तापमान 37.5 डिग्री सेल्सियस बनाए रखने के लिए काम करता है। दिमाग़ का पीछे का हिस्सा जिसे 'हाइपोथैलेमस' कहते हैं, वो शरीर के अंदर तापमान को रेग्यूलेट करने के लिए ज़िम्मेदार होता है।
 
पसीना निकलना, सांस लेना (मुंह खोल कर), दिक़्क़त होने पर खुली हवादार जगह पर जाना, ये सब एक तरह से शरीर के अंदर बने वो सिस्टम है जिससे शरीर अपना तापमान नियंत्रित रखता है। अक़्सर तापमान बढ़ने पर हमारी धमनियाँ ( ब्लड वेसल्स) भी चौड़ी हो जाती हैं ताकि खून ठीक से शरीर के हर हिस्से तक पहुँच सके।
 
मानव शरीर 37.5 डिग्री सेल्सियस में काम करने के लिए बना है। लेकिन उससे दो-चार डिग्री ऊपर और दो-चार डिग्री नीचे तक के तापमान को एडजस्ट करने में शरीर को दिक़्क़त नहीं आती। लेकिन किसी भी तापमान पर शरीर ठीक से काम करे, ये केवल बाहर के तापमान पर निर्भर नहीं करता। इसके साथ कई और बातें हैं जिन पर ये निर्भर करता है।
 
अमेरिका की इंडियाना विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर ज़ैकरी जे श्लैडर कहते हैं, इंसानी शरीर किस हद तक गर्मी बर्दाश्त कर सकता है, इसका सीधा जवाब नहीं हो सकता।
 
प्रोफ़ेसर ज़ैकरी ने थर्मल स्ट्रेस के बारे में काफ़ी रिसर्च की है। बीबीसी को भेजे ईमेल जवाब में वो कहते हैं कि इस सवाल का जवाब बाहर के परिवेश के अलावा कई और बातों पर निर्भर करता है।
 
"मसलन कितनी देर आदमी उस तापमान में एक्सपोज़ है, मौसम में आर्द्रता कितनी है, शरीर पसीना/पानी को कैसे निकाल रहा है, शारीरिक गतिविधि का स्तर कैसा है, इंसान ने कैसे कपड़े पहने है, अनुकूलन की स्थिति क्या है आदि...ये तमाम बातें भी शरीर को बढ़ते तापमान के साथ एडजस्ट करने में मदद करती हैं।"
 
अक्सर गर्मी के साथ मौसम में आर्द्रता यानी ह्यूमिडिटी भी बढ़ जाती है, जिससे पसीना ज़्यादा निकलता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शरीर गर्मी से छुटकारा पाने के लिए पसीने के वाष्पीकरण पर बहुत अधिक निर्भर करता है। पसीने का वाष्पीकरण तापमान पर निर्भर नहीं है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हवा में कितना पानी है"
 
हाइपरथर्मिया
डॉक्टर अहमद कहते हैं कि आर्द्रता ज़्यादा होने पर सांस लेने संबंधी दिक़्क़तें ज़्यादा बढ़ जाती हैं। पसीना भी ज़्यादा आता है और शरीर में पानी की मात्रा तेज़ी से कम होने लगती है।
 
जब शरीर लम्बे समय तक सूर्य की किरणों को सीधे झेलती है तो शरीर में पानी की कमी होने लगती है। पसीना और पेशाब के रास्ते शरीर से पानी निकलता है। अगर बाहर से पानी/तरल पदार्थ शरीर के अंदर नहीं जाता तो शरीर का तापमान सामान्य (37.5 डिग्री) से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है। इस वजह से बुख़ार जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। कभी-कभी उससे भी भयानक स्थिति पैदा हो जाती है। इस अवस्था को हाइपरथर्मिया कहते हैं।
 
डॉक्टर अहमद कहते हैं कि अगर बाहर का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता है तो मानव शरीर कुछ हद तक इसे बर्दाश्त करने के लिए तैयार रहता है। लेकिन मुश्किल तब आती है जब अचानक से तापमान बढ़ जाता है।
 
हीट स्ट्रोक क्या है?
* सांसें तेज़ चलने लगे
* पसीना बहुत ज़्यादा आने लगे
* शरीर तपने लगे
* पल्स रेट 85 से 100 के बीच हो जाए
ऐसे हालात को डॉक्टर 'हीट स्ट्रोक' कहते हैं।
 
जब मरीज़ की स्थिति इससे ज़्यादा ख़राब हो जाए - जिसमें ऊपर लिखी दिक़्क़तों के अलावा मांसपेंशियों में दर्द और चमड़ी का सिकुड़ना जैसी नौबत आ जाए तो उस स्थिति को 'हीट एक्ज़ॉशन' कहते हैं।
 
लंबे समय तक अत्याधिक गर्मी झेलने पर इस तरह दिक़्क़त बढ़ जाती है। उम्रदराज़ लोग, छोटे बच्चे और पहले से दूसरी बीमारी (जैसे किडनी, हार्ट, डायबिटीज़) झेल रहे लोगों में ये दिक़्क़त कई बार जानलेवा हो सकती हैं और कई अंग काम करना बंद कर देते हैं।
 
बचाव के तरीके
हीट स्ट्रोक के शिकार मरीज़ की हालात पर निर्भर करता है कि उसका इलाज कैसे होगा। इसमें लक्षण के हिसाब से उपचार की ज़रूरत होती है। लेकिन शुरुआत में लक्षण दिखते ही मरीज़ के शरीर को ठंडा करने की कोशिश की जानी चाहिए। पहले पसीना पोछें। फिर पूरे शरीर को ठंड़े कपड़े से पोछने के इंतजाम किए जाने चाहिए जिसे कोल्ड स्पॉन्जिंग भी कहते हैं। इसके बाद ज़रूरत के हिसाब से ओआरएस का घोल पिलाएं।
 
अगर हालात फिर भी ना सुधरे तो ड्रिप लगाने की ज़रूरत हो सकती है। इसलिए तुंरत डॉक्टर की सलाह लें। नहीं तो जान जाने का ख़तरा हो सकता है।
 
हीट वेव क्या है?
अमूमन ऐसी नौबत तब आती है जब इलाके में हीट वेव का प्रकोप होता है। गर्मी में मौसम विभाग की तरफ़ से इस तरह के हीट वेव की चेतावनी पहले ही जारी कर दी जाती है।
 
रीजनल मीटियोरॉलॉजी डिपार्टमेंट, नई दिल्ली में वैज्ञानिक डॉक्टर कुलदीप श्रीवास्तव कहते हैं, किसी भी जगह पर 'हीट वेव' घोषित करने के दो पैमाने होते हैं।
 
पहला - तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होना चाहिए।
दूसरा - पिछले पाँच दिनों का तापमान औसत तापमान से 4.5 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा हो।
 
ये दोनों पैमाने जिस दिन के तापमान में फिट बैठते हैं तो उस दिन के लिए मौसम विभाग 'हीट वेव' की चेतावनी जारी करता है। अगर तापमान 45 डिग्री के पार चला जाए, तो दोनों पैमानों की ज़रूरत नहीं होती, मौसम विभाग उसे 'हीट वेव' करार दे सकता है। अगर दिन का तापमान पिछले चार दिन के तापमान से 6।5 डिग्री ज़्यादा हो जाए तो उस दिन 'सीवियर हीट वेव' की चेतावनी जारी की जाती है।
 
धरती पर सबसे अधिक तापमान
कनाडा और उत्तर पश्चिम अमेरिका में आजकल जो तापमान है, उतना तापमान भारत सहित दुनिया के दूसरे देशों में पहले भी देखा गया है। कैलिफोर्निया की डेथ वैली में 16 अगस्त 2020 को 55 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया था।
 
पिछले साल मापे गए तापमान से पहले, दो तापमान इस 'रिकॉर्ड' श्रेणी में दर्ज है -
पहला - फरनेस क्रीक नाम की जगह पर 1913 में 56.6 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज़ किया गया। दूसरा ट्यूनीशिया में 1931 में 55 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज़ किया गया। लेकिन इन दोनों ही रीडिंग्स को लेकर विशेषज्ञों की राय सहमति वाली नहीं है।
 
'बीबीसी वेदर' के साइमन किंग कहते हैं, "आधुनिक समय के वैज्ञानिक और मौसम विशेषज्ञ मानते हैं कि ये दोनों ही रीडिंग्स सही नहीं थी।
 
जब इस तरह के उच्च तापमान की जानकारी रहती है तब विश्व मौसम संगठन (WMO) अलग-अलग कई तरीक़ों से इसकी पुष्टि करता है।" डब्लूएमओ से इस बारे में हमने सम्पर्क साधने की कोशिश की है। लेकिन उनका जवाब नहीं आया है।
 
यह भी दलील दी जाती है कि दूसरी जगहों पर डेथ वैली से भी ज़्यादा तापमान हो सकता है लेकिन चूँकि वहाँ कोई वेदर स्टेशन नहीं है, इसलिए उसके बारे में मौसम पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों को पता नहीं चल पाता है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कोरोनावायरस: डॉक्टरों पर क्यों हो रहे हैं हमले?