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बीबीसी कैसे काम करता है और उसे कहाँ से मिलता है पैसा

हमें फॉलो करें बीबीसी कैसे काम करता है और उसे कहाँ से मिलता है पैसा
, मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023 (11:00 IST)
पिछले कुछ दिनों से बीबीसी की फ़ंडिंग को लेकर कई तरह की बातें हो रही हैं और कई भ्रामक रिपोर्ट्स भी मीडिया में आई हैं। कई तरह के दावे भी किए जा रहे हैं। ये भी दावा किया गया है कि बीबीसी को चीन से फंडिंग मिलती है। बीबीसी के काम और उसकी फ़ंडिंग के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। आपकी सहूलियत के लिए हमने बीबीसी के गठन और उसकी फंडिंग को लेकर सारी जानकारियाँ जुटाई हैं।
 
कब और कैसे हुआ बीबीसी का गठन?
बीबीसी का गठन 18 अक्तूबर 1922 को हुआ था। उस समय उसका गठन मार्कोनी समेत शीर्ष वायरलेस मैन्युफ़ैक्चरर्स ने किया था। गठन के समय इसका नाम ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कंपनी था।
 
बीबीसी की ओर से नियमित प्रसारण 14 नवंबर 1922 को मार्कोनी के लंदन स्टूडियो से शुरू हुआ था। 33 वर्षीय स्कॉटिश इंजीनियर जॉन रीथ को बीबीसी का जनरल मैनेजर बनाया गया था।
 
आज की बीबीसी यानी ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन का गठन 1927 में एक रॉयल चार्टर के तहत हुआ यानी सरकार की ओर से नहीं, बल्कि महारानी के फ़रमान से हुआ और आज भी वही परंपरा है।
 
बीबीसी ब्रितानी संसद के प्रति जवाबदेह तो है लेकिन बीबीसी पर किसी तरह का सरकारी नियंत्रण नहीं है, वह पूरी तरह स्वायत्त है और उसकी स्वायत्तता को सुनिश्चित करने के लिए काफ़ी सख़्त नियम और मानक हैं। सर जॉन रीथ को बीबीसी का पहला महानिदेशक बनाया गया।
 
चार्टर में बीबीसी का उद्देश्य, उसके अधिकारों और उसकी ज़िम्मेदारियों का वर्णन था। चार्टर में नीतियों का विस्तार रूप से ज़िक्र था, महानिदेशक और वरिष्ठ कर्मचारियों का काम था उन नीतियों को लागू करना।
 
सबसे लोकप्रिय इंटरनेशनल ब्रॉडकास्टर
बीबीसी दुनिया की सबसे लोकप्रिय और सबसे बड़ी पब्लिक सर्विस इंटरनेशनल ब्रॉडकास्टर है। बीबीसी का काम ब्रिटेन और दुनिया के बाक़ी हिस्सों में स्वतंत्र और निष्पक्ष, विशिष्ट विश्व स्तरीय कार्यक्रम और कंटेट बनाना है, लोगों तक सूचना पहुँचाना है, उन्हें शिक्षित करना है और साथ ही उनका मनोरंजन करना भी है।
 
बीबीसी दुनिया भर में टीवी, रेडियो और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर मौजूद है। इनमें ब्रिटेन में सबसे ज़्यादा देखा जाने वाला चैनल 'बीबीसी वन' भी है जो एक राष्ट्रीय प्रसारक है।
 
बीबीसी इंग्लैंड के अलावा उत्तरी आयरलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स में भी टेलीविज़न चैनल चलाता है। इसके अलावा ब्रिटेन में बीबीसी के कई रेडियो नेटवर्क्स भी हैं। बीबीसी बहुत छोटे बच्चों के लिए सीबीबीज़, उनसे बड़े बच्चों के लिए सीबीबीसी और किशोरों के लिए चैनल-3 भी चलाता है।
 
ब्रिटेन के भीतर बीबीसी के सभी प्रसारण (रेडियो, टीवी, डिजिटल) पूरी तरह से विज्ञापन मुक्त हैं क्योंकि वहाँ रहने वाले लोग बीबीसी को चलाने के लिए लाइसेंस फ़ीस देते हैं।
 
रॉयल चार्टर क्या है?
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस भी टेलीविज़न, रेडियो और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर 40 से अधिक भाषाओं में कार्यरत है। रॉयल चार्टर के प्रावधानों के तहत लाइसेंस फ़ीस का पैसा बीबीसी को मिलता है जिससे वह अपने सभी कार्यक्रम तैयार और प्रसारित करता है, बीबीसी को रॉयल चार्टर के प्रावधानों के मुताबिक़ ही हर साल की अपनी वित्तीय रिपोर्ट सार्वजनिक करनी होती है। बीबीसी के कामकाज पर हर उस व्यक्ति की गहरी नज़र रहती है जो लाइसेंस फ़ीस जमा करता है।
 
इस समय जिन घरों में टेलीविज़न है उन सभी घरों को लाइसेंस फ़ीस देनी होती है, लाइसेंस फ़ीस न देना एक अपराध की श्रेणी में रखा गया है जिसे अब बदलने की माँग हो रही है।
 
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस का एक बोर्ड भी होता है, सभी आउटपुट और सेवाओं के लिए इस बोर्ड की ऑपरेशनल ज़िम्मेदारी होती है। बीबीसी वर्ल्ड सर्विस का बोर्ड ग्लोबल न्यूज़ डायरेक्शन ग्रुप को रिपोर्ट करता है।
 
बीबीसी ने अपनी एम्पायर सर्विस (उस समय वर्ल्ड सर्विस को एम्पायर सर्विस कहा जाता था) 19 दिसंबर 1932 में शुरू किया था। उस समय इस सर्विस को नई शॉर्ट वेव तकनीक से काफ़ी मदद मिली, जिससे दूर-दूर तक प्रसारण संभव था।
 
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एम्पायर सर्विस का ज़्यादा प्रसार हुआ। उस समय उसका नाम ओवरसीज़ सर्विस कर दिया गया। दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति तक ये सेवा 40 भाषाओं तक पहुँच गई थी। 1965 में इसका नाम बीबीसी वर्ल्ड सर्विस कर दिया गया था।
 
शीत युद्ध का समय बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के लिए काफ़ी चुनौतीपूर्ण था। कई देशों में सेवाओं को रोक दिया गया और कई देशों में तो बीबीसी के पत्रकारों को व्यक्तिगत रूप से भी निशाना बनाया गया।
 
इसमें सबसे ज़्यादा चर्चा बीबीसी के बुल्गारिया संवाददाता जॉर्जी मार्कोव की होती है, जिनकी वर्ष 1978 में लंदन में एक ज़हरीले छाते से हत्या कर दी गई थी।
 
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद राजनीतिक बदलाव के बीच कई यूरोपीय भाषाओं की सेवाएँ बंद करनी पड़ीं। साथ ही, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ने अपनी प्राथमिकताएँ भी बदलीं। इसी क्रम में वर्ष 2008 में अरबी में टीवी का प्रसारण शुरू हुआ और 2009 में फ़ारसी टीवी का।
 
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस टीवी की शुरुआत कैसे हुई?
इस बीच 1991 में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ने अपना टीवी न्यूज़ चैनल भी शुरू किया। इसकी शुरुआत यूरोप से हुई थी, लेकिन बाद में इसका विस्तार एशिया और मध्य-पूर्व में भी हुआ।
 
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस टीवी न्यूज़ का गठन बीबीसी की सहायक कंपनी के रूप में हुआ। इसके लिए पैसा सब्सक्रिप्शन और विज्ञापन से मिलता है।
 
वर्ल्ड सर्विस टेलीविज़न न्यूज़ का नाम पहले बीबीसी वर्ल्ड किया गया और फिर 1998 में इसका नाम बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ कर दिया गया।
 
इस समय बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ 200 से ज़्यादा देशों में उपलब्ध है और इसके साप्ताहिक ऑडियंस की संख्या 7।6 करोड़ है।
 
1941 से लंदन का बुश हाउस बीबीसी वर्ल्ड सर्विस का मुख्यालय हुआ करता था लेकिन वर्ष 2012 में वर्ल्ड सर्विस ने बुश हाउस ख़ाली कर दिया और फिर पूरी टीम ब्रॉडकास्टिंग हाउस में शिफ़्ट हो गई, जहाँ बीबीसी के अन्य पत्रकार भी काम करते थे।
 
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस एक अंतरराष्ट्रीय मल्टीमीडिया ब्रॉडकास्टर है। ये रेडियो, टीवी और डिजिटल पर कई भाषाओं और क्षेत्रीय सेवाओं में मौजूद है।
 
बीबीसी कितने लोगों तक पहुँचता है?
  • दुनिया भर में इसके दर्शकों और श्रोताओं की संख्या करोड़ों में है।
  • बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के साप्ताहिक ऑडियंस के एक तिहाई हिस्से की उम्र 15 से 24 के बीच की है।
  • वर्ल्ड सर्विस का एक और हिस्सा है बीबीसी लर्निंग इंग्लिश। बीबीसी लर्निंग इंग्लिश का काम है अंतरराष्ट्रीय ऑडियंस को अंग्रेज़ी सिखाना।
  • अंग्रेज़ी सिखाने के लिए बीबीसी लर्निंग इंग्लिश अपने ऑडियंस को मुफ़्त में ऑडियो, वीडियो और टेक्स्ट मैटेरियल भी उपलब्ध कराता है।
  • हाल के वर्षों में 1940 के बाद से बीबीसी वर्ल्ड सर्विस का सबसे बड़ा विस्तार हुआ है।
  • अब बीबीसी वर्ल्ड सर्विस 40 से अधिक भाषाओं में दुनिया के कई हिस्सों में है। इसकी सेवाएँ अब काहिरा और सोल में भी हैं और बेलग्रेड और बैंकॉक में भी।
  • ब्रिटेन से बाहर बीबीसी वर्ल्ड सर्विस का सबसे बड़ा ऑपरेशन दिल्ली और नैरोबी में है।
  • बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की डिजिटल पहुँच- 14.8 करोड़ (प्रति सप्ताह)
  • बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की टेलीविज़न पहुँच- 13 करोड़ (प्रति सप्ताह)
  • बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की रेडियो पहुँच- 15.9 करोड़ (प्रति सप्ताह)
 
बीबीसी को फ़ंडिंग कैसे मिलती है और क्या है लाइसेंस फ़ीस?
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस को ब्रिटेन के लाइसेंस फ़ीस से फ़ंड मिलता है। साथ ही कुछ पैसा 'फ़ॉरेन, कॉमनवेल्थ एंड डेवेलपमेंट ऑफ़िस' (एफ़सीडीओ) से भी मिलता है। ब्रिटेन में टीवी देखने वाले हर घर को टीवी लाइसेंस फ़ीस देनी होती है। इस समय स्टैंडर्ड सालाना लाइसेंस फ़ीस 159 पाउंड यानी तक़रीबन 15 हज़ार रुपए है।
 
पहले बीबीसी वर्ल्ड सर्विस को ब्रिटेन की सरकार संसद के माध्यम से ग्रांट देती थी। संसद की ओर से मिलने वाली मदद फ़ॉरेन एंड कॉमनवेल्थ ऑफ़िस यानी एफ़सीओ देता था। वर्ष 2010 में ये तय हुआ कि वर्ष 2014-15 से बीबीसी वर्ल्ड सर्विस को लाइसेंस फ़ीस से ही फ़ंडिंग दी जाएगी।
 
हालाँकि पिछले साल ब्रिटेन की सरकार ने अगले दो साल के लिए लाइसेंस फ़ीस को फ़्रीज कर दिया था यानी उसमें कोई बढ़ोतरी करने पर रोक लगा दी थी।
 
पिछले साल की समीक्षा के बाद ब्रिटेन सरकार ने तीन साल के लिए बीबीसी वर्ल्ड सर्विस को 28.3 करोड़ पाउंड देने की घोषणा की थी। जो हर साल 9.44 करोड़ पाउंड होता है।
 
बीबीसी की कमर्शियल कंपनियाँ
लाइसेंस फ़ीस के अलावा बीबीसी को अपनी तीन कमर्शियल कंपनियों से भी आय होती है। इनमें शामिल हैं- बीबीसी स्टूडियोज़ और बीबीसी स्टूडियोवर्क्स। कमर्शियल कंपनियों से होने वाली आय को बीबीसी नए कार्यक्रमों और कंटेट में निवेश करता है।
 
बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ बीबीसी का कमर्शियल न्यूज़ और इंफ़ॉर्मेशन टीवी चैनल है। ये चैनल दुनिया के कई देशों में चौबीसो घंटे प्रसारित होता है। बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ 200 से अधिक देशों में देखा जा सकता है। ये चैनल समाचार, बिज़नेस, स्पोर्ट्स, के अलावा करेंट अफ़ेयर्स और लाइफ़ स्टाइल पर डॉक्यूमेंट्री भी प्रसारित करता है जबकि BBC।com बीबीसी की कमर्शियल न्यूज़ वेबसाइट है। ये वेबसाइट अंतरराष्ट्रीय ऑडियंस के लिए न्यूज़ और फ़ीचर लेकर आती है।
 

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