अम्माद ख़ालिक़, बीबीसी संवाददाता, इस्लामाबाद
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के नौवें मिशन ने 31 जनवरी से 9 फरवरी तक पाकिस्तान का दौरा किया था और सरकार को आर्थिक मामलों में कुछ और कदम उठाने के लिए कहा था। आईएमएफ ने खास तौर पर गैर-जरूरी सब्सिडी को ख़त्म करने और आमदनी का स्थायी स्रोत तलाशने के लिए कहा था, जिसके नतीजे अब सामने नजर आने लगे हैं।
पाकिस्तान सरकार की तरफ से बुधवार को पेश किए गए मिनी-बजट में 170 अरब पाकिस्तानी रुपए के नए टैक्स लगाए गए हैं।
पेट्रोल, गैस और दूसरी जरूरी चीजों की कीमतों पर टैक्स में इजाफे के बाद यह सवाल पैदा होता है कि आईएमएफ क्यों चाहता है कि पाकिस्तान में हर चीज खासकर पेट्रोल, बिजली, गैस वगैरह आम जनता के लिए और महंगी हो?
बीबीसी ने इस बारे में आर्थिक मामलों के जानकार से बात की और जानना चाहा कि क्या वाक़ई आईएमएफ की नीतियाँ सख़्त हैं और क्या पाकिस्तान में चीजों की कीमत आईएमएफ तय करता है?
आईएमएफ पेट्रोल, गैस और बिजली की कीमत क्यों ज़्यादा चाहता है?
आर्थिक मामलों के जानकार डॉक्टर ख़ाक़ान नजीब ऐसा नहीं मानते हैं। बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं कि पेट्रोल, बिजली और गैस की कीमतों का फैसला आईएमएफ नहीं बल्कि नेपरा और ओगरा जैसे रेगुलेटरी संस्थाएं करती हैं।
उनके अनुसार रेगुलेटरी संस्थाएं जो कीमत तय करती हैं, सरकार अपनी राजनीतिक मजबूरियों के कारण उन कीमतों पर जनता को वो चीज नहीं देना चाहती है और इसलिए सरकार जनता को उन पर सब्सिडी देती है और सरकार को आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है।
उनका कहना था कि रेगुलेटरी संस्था ने सितंबर 2020 में गैस की जो कीमत तय की थी जनता को उससे कम कीमत पर गैस मिल रही है लेकिन इस पर सरकार को अबतक 1600 अरब पाकिस्तानी रुपये का नुक़सान उठाना पड़ा है।
आर्थिक विशेषज्ञ सना तौफ़ीक़ ने इस बारे में बात करते हुए कहा कि आईएमएफ यह नहीं चाहता कि पाकिस्तान में चीजें महंगी हों।
वो कहती हैं, "आईएमएफ की सरकार से मांग है कि वो अपनी अर्थव्यवस्था को सही दिशा में लेकर जाए। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को सही दिशा में ले जाने के लिए जो क़दम उठाने पड़ते हैं उससे महंगाई होती है। गैस, बिजली और पेट्रोल पर दी जाने वाली सब्सिडी ख़त्म करने से कीमतों में इज़ाफ़ा होता है। उससे सरकार का वित्तीय घाटा कम होता होगा। मगर उसकी कीमत आम जनता को चुकानी पड़ती है उसकी क्रय शक्ति कम हो जाती है।"
सरकार का मिनी बजट
सना तौफ़ीक़ के अनुसार, आईएमएफ चाहता है कि पाकिस्तान अपनी करेंसी को फ़्री फ़्लोट पर रखें और आर्टिफ़िशयल तरीक़े से उसको नियंत्रित करने की कोशिश ना करें तो उससे मुद्रा की कीमत में कमी होती है। इस कारण आयात महंगा हो जाता है और इसका प्रभाव भी आम जनता पर पड़ता है।
आर्थिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार शहबाज़ राणा का कहना है कि आईएमएफ चाहता है कि पाकिस्तान की सरकार गैस, बिजली और पेट्रोल जैसी किसी भी चीज़ की आम उपभोक्ता से असल कीमत वसूल करे।
उनके अनुसार दुनिया भर में ऐसा ही होता है लेकिन वो यह भी कहते हैं कि जिस तरह के टैक्स सरकार ने मिनी बजट में लगाए हैं, आईएमएफ को उसी स्वीकार नहीं करना चाहिए।
वो कहते हैं, "जीएसटी का रेट तो बढ़ा दिया गया लेकिन व्यापारियों पर नए टैक्स नहीं लगाए गए। यह आईएमएफ की बहुत बड़ी भूल है क्योंकि एक तरफ वो सरकार पर दबाव डालता है कि आमदनी का स्थायी स्रोत पैदा करें।"
शहबाज़ राणा के अनुसार जीएसटी में वृद्धि से बहुत ज़्यादा महंगाई बढ़ेगी।
पाकिस्तान में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर आईएमएफ पाकिस्तान के आर्थिक मामलों पर इतना प्रभाव रखता है तो फिर पाकिस्तान को क़र्ज़ देने में वो इतनी देरी क्यों कर रहा है?
आईएमएफ की क़र्ज़ देने में हिचकिचाहट क्यों?
डॉक्टर ख़ाक़ान नजीब के अनुसार यह कहना ग़लत ना होगा कि पाकिस्तान और आईएमएफ में इस समय विश्वास की कमी है इस कारण आईएमएफ की सातवां समीक्षा बैठक में भी देरी हुई और अब नवीं मिशन की बैठक भी नवंबर से होते हुए फ़रवरी तक आ गया है।
बुधवार को पाकिस्तान के वित्त मंत्री इस्हाक़ डार ने पिछली सरकार (इमरान ख़ान की सरकार) पर हमला करते हुए कहा था कि इमरान ख़ान अपने ही किए हुए वादे से मुकर गए और उसे मानने से इनकार कर दिया।
वित्त मंत्री के अनुसार इसी कारण आईएमएफ और पाकिस्तान के बीच दूरियां बढ़ गईं और दोनों का एक दूसरे पर विश्वास कम हो गया।
डॉक्टर ख़ाक़ान नजीब का कहना था कि सरकार की तरफ़ से हाल में उठाए गए क़दमों के कारण आईएमएफ का पाकिस्तानी सरकार के प्रति विश्वास बढ़ेगा और इसकी बहुत मज़बूत उम्मीद है कि अगले एक से दो हफ़्तों में सरकार और आईएमएफ के बीच स्टाफ़ लेवल की बातचीत सफल हो जाएगी।
आईएमएफ की हिचकिचाहट
सना तौफ़ीक़ के अनुसार आईएमएफ पाकिस्तान को क़र्ज़ की क़िस्त जारी करने में इसलिए हिचकिचा रहा है क्योंकि पिछले साल सितंबर में सातवीं और आठवीं बैठक के बाद आईएमएफ ने पाकिस्तान को अर्थव्यवस्था के हवाले से चंद क़दम उठाने के लिए कहा था जिनमें गैस, बिजली, पेट्रोल समते कुछ दूसरी चीज़ों पर सब्सिडी ख़त्म करना शामिल था लेकिन सरकार ने यह क़दम उठाने में देरी की और पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार तीन अरब से भी नीचे आ गया।
सना तौफ़ीक़ का कहना है कि अब आईएफ़एफ़ कह रहा है कि पाकिस्तान सरकार पहले ग़ैर-ज़रूरी सब्सिडी ख़त्म करे और अपने घाटे को कम करे उसके बाद आईएमएफ बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा सकता है।
उनका भी मानना है कि सरकार की तरफ़ से उठाए गए क़दमों से आईएमएफ का पाकिस्तान सरकार के प्रति विश्वास बहाल होगा और मार्च में पाकिस्तान को क़िस्त जारी हो सकती है।
आर्थिक विशेषज्ञ क़ैसर बंगाली कहते हैं कि आईएमएफ की हिचकिचाहट के दो मुख्य कारण हैं।
उनके अनुसार आईएमएफ एक बैंक है और कोई बैंक क़र्ज़ देता है तो उसे यह विश्वास होना चाहिए कि उसको अपनी रक़म वापस मिल जाएगी।
क़ैसर बंगाली कहते हैं कि इस समय पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था दो बड़ी समस्याओं से गुज़र रही है। एक बजट घाटा और दूसरा करेंट खाता घाटा।
वो कहते हैं, "हमें इन दोनों घाटों को कम करने की ज़रूरत है। इसी कारण आईएमएफ को क़र्ज़ देने में हिचकिचाहट है।"
जनता को महंगाई से बचाने के लिए आईएमएफ ने कुछ सुझाव दिए हैं?
डॉक्टर ख़ाक़ान नजीब का कहना है कि कोई भी अंतरराष्ट्रीय संस्था यह ज़रूर कहती है कि आप समाज के ग़रीब लोगों के लिए सब्सिडी ज़रूर दें और यही कारण है कि बेनज़ीर इनकम सपोर्ट प्रोग्राम का फ़ंड 360 अरब से बढ़ाकर 400 अरब पाकिस्तानी रुपए कर दिया गया है।
वो कहते हैं कि किसी विशेष वर्ग को सब्सिडी देना सही है लेकिन ट्यूबवेल या कारोबारियों को 118 अरब रुपये की बिजली सब्सिडी देने से नुक़सान बढ़ता है और आईएमएफ के प्रोग्राम के तहत इसको ख़त्म करना ज़रूरी है।
डॉक्टर ख़ाक़ान नजीब के अनुसार सरकार ख़ुद भी कुछ क़दम उठा सकती है जैसे कि देश भर में कम से कम 25 हज़ार से बढ़ाकर 30 हज़ार कर दे।
कम आमदनी वाले व्यक्ति को पेट्रोल सब्सिडी भी दी जा सकती है।
सना तौफ़ीक़ भी कहती हैं कि आईएमएफ को किसी भी देश के ग़रीब और कम आमदनी वाले तब्क़े की फ़िक्र होती है और वो उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए क़दम उठाने के बारे में कहता है कि सरकार अपना ख़र्च कम करे लेकिन लोगों की सामाजिक सुरक्षा पर ख़र्च करे।
उनके अनुसार इसीलिए मिनी-बजट में बेनज़ीर इनकम सपोर्ट प्रोग्राम की रक़म बढ़ाई गई है।
सना कहती हैं कि बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए जो पैसे सरकार ने ख़र्च किए हैं उस मामले में भी उम्मीद है कि आईएमएफ पाकिस्तान सरकार को कुछ रियायत दे सकता है।
जबकि डॉक्टर क़ैसर बंगाली कहते हैं कि किसी देश की जनता के विकास का ख़याल रखने की ज़िम्मेदारी आईएमएफ की नहीं है बल्कि यह उस देश की सरकार की होती है।
बुनियादी आर्थिक समस्या
वो कहते हैं कि इसका एक दूसरा पहलू भी है कि आईएमएफ पाकिस्तान सरकार को सब्सिडी कम करने या ख़त्म करने के लिए तो कह रहा है लेकिन पाकिस्तान के दो बुनियादी आर्थिक समस्या की तरफ़ तवज्जो क्यों नहीं दिलाता है।
बजट घाटे और व्यापार घाटे, सरकार की आमदनी से ज़्यादा ख़र्च हैं तो आईएमएफ सरकार के ख़र्च कम करवाने पर तवज्जो क्यों नहीं देता, रक्षा बजट कम करवाने पर ज़ोर क्यों नहीं देता?
उनका कहना था कि यह सारे सवाल आईएमएफ की राजनीतिक मंशा के बारे में आशंका पैदा करते हैं कि शायद आईएमएफ पाकिस्तान की जनता को तो टैक्स के बोझ तले दबा रहा है लेकिन वो पाकिस्तान की इस्टैबलिश्मेंट (सेना) को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाना चाहता है।
क़ैसर बंगाली का कहना था कि वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ निजीकरण की बात तो करते हैं लेकिन पाकिस्तान की सेना के कारोबार के निजीकरण की बात क्यों नहीं करते।
उनका कहना था कि सरकार ने आईएमएफ के दबाव में जो क़दम उठाएं हैं उससे जनता को कोई राहत नहीं मिल सकती।