Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

असम का ये बंगाली हिंदू गांव ऐसे हमलावरों के निशाने पर आ गया: ग्राउंड रिपोर्ट

हमें फॉलो करें assam bangali hindu
, मंगलवार, 6 नवंबर 2018 (11:23 IST)
- दिलीप कुमार शर्मा (असम के बीशोनिमुख खेरबाड़ी गांव से)
 
असम के तिनसुकिया शहर से नेशनल हाईवे 37 पर महज 63 किलोमीटर आगे बढ़ने पर देश का सबसे लंबा ब्रिज धोला-सदिया पुल आ जाता है। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां आकर इस पुल का उद्घाटन किया था जिसका नाम भूपेन हज़ारिका सेतु रखा गया है।
 
 
इस पुल के बिलकुल पास बाईं तरफ प्रधानमंत्री के हेलीकॉप्टर को उतारने के लिए बनाया गया हेलीपैड शनिवार को हो रही बारिश में धुलकर चमकने लगा था। इस जगह से महज पांच सौ मीटर दूरी पर बसा है बीशोनिमुख खेरबाड़ी गांव, जहां के कई घरों से रुक -रुक कर रोने-बिलखने की आवाजे सुनाई पड़ रही थीं।
 
 
गांव में घुसते ही हाथ में आधुनिक राइफल लिए असम पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवान दिखे। वो जिस कदर चौकन्ने खड़े दिखे, उससे साफ़ पता चल रहा था कि इस इलाके में कोई बड़ी वारदात हुई है।
 
 
दरअसल ये वही गांव है जहां पिछले गुरुवार की शांम करीब साढ़े सात बजे अज्ञात हमलावरों ने बंगाली मूल के पांच लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। तब से यहां सरकार के मंत्रियों, पुलिस अधिकारियों, मीडिया के लोगों और विभिन्न नागरिक संगठनों के नेताओं का आना-जाना लगा है।
 
webdunia
उजड़ गया परिवार
गांव को आने वाली सड़क के मोड़ पर पुलिस ने बैरिकेड लगा दिए हैं। थोड़ी दूर आगे एक छोटे से नाले पर बने लोहे के पुल को पार करने के बाद पहला मकान छोड़कर जैसे ही मैं बांस और टीन की छत वाले दूसरे मकान के अंदर गया, वहां दरवाजे के बाहर जमींन पर एक महिला अपनी दो साल की बच्ची को छाती से चिपकाए बिलकुल गुमसुम बैठी हुई थी।
 
 
पास खड़ी एक दूसरी महिला से पूछने पर पता चला कि ये कोई और नहीं बल्कि गोलीबारी की घटना में मारे गए 22 साल के अविनाश बिस्वास की पत्नी उर्मिला है। पति के बारे में पूछने पर वो चीख-चीख कर रोने लगती है। उर्मिला की शादी को केवल तीन साल ही हुए थे। उर्मिला के परिवार में तीन लोगों की हत्या की गई है।
 
 
हमलावर अविनाश के साथ 18 साल के छोटे भाई अनंत और 55 साल के चाचा श्यामलाल बिश्वास को घर से बुलाकर ले गए थे और बाद में उनकी हत्या कर दी। हमले वाली शाम का जिक्र करते हुए उम्रिला ने बीबीसी को बताया, "मेरे पति और देवर खेत में काम करके घर लौटे थे और शाम को खेत से लाई सब्जियों को टोकरियों में डालते हुए दोस्तों के साथ गप्पें लड़ा रहे थे। उस समय पड़ोस में रहने वाले धनंजय और सहदेब भी हमारे घर आए हुए थे। मैं घर के आंगन में बैठकर बर्तन धो रही थी। इसलिए मैंने कुछ समय के लिए अपनी बेटी को पति की गोद में दे दिया।"
 
 
अपनी बात पूरी करने से पहले उर्मिला भावुक हो जाती हैं। वो रोते हुए बताती हैं, "कुछ लोग सेना की वर्दी पहने हमारे घर में घुस आए। मैं जब तक कुछ सोच पाती वो मेरे पति, देवर और उनके दोनों दोस्तों को अपने साथ ले गए। जब मैं उनके पीछे गई तो उन लोगों ने मुझे धमकाया और कहा कि कुछ देर बाद छोड़ देगें। बेटी को मेरी गोद में देते हुए पति ने कहा था चिंता मत करो मैं अभी आ रहा हूं। ये शब्द मैंने अनके मुंह से आखरी बार सुना था। वे अब कभी नहीं आएंगे। हमलावरों ने मेरे बेगुनाह पति का शरीर गोलियों से छलनी कर दिया।"
 
webdunia
अपनी दो साल की बेटी के माथे पर हाथ फेरती हुई उर्मिला उससे कहती है, "सुनु (बेटी का नाम) अब तुमको प्यार करने के लिए पापा कभी नहीं आएंगे।" उर्मिला और उसका पूरा परिवार चाहता है कि हमलावरों को कड़ी से कड़ी सजा मिले।

 
'बेटे चले गए, परिवार को कौन देखेगा?'
अपने छोटे भाई और दो बेटों को खो चुके 65 साल के मोहनलाल बिश्वास दुख में पूरी तरह टूट चुके हैं। धीमी आवाज में वो कहते हैं, "मैंने अपने दो जवान बेटे और छोटे भाई को खोया है। आखिर हमारा कसूर क्या था? मेरे दोनों बेटे खेतों में काम करके हमारे परिवार की देखभाल कर रहे थे। अब हम बूढ़े पति-पत्नी का ख्याल कौन रखेगा। अविनाश तो चला गया। अब उसकी दो साल की बेटी और पत्नि की देखभाल कौन करेगा?"
 
 
मोहनलाल का परिवार करीब चार दशक पहले असम के नगांव जिले से आकर तिनसुकिया जिले के बीशोनिमुख खेरबाड़ी गांव में बस गया था। वो पुरानी बातों को याद करते हुए कहते है, "हमें इस गांव में रहते हुए सालों गुजर गए लेकिन इस तरह की घटना कभी किसी के साथ नहीं हुई। हमारी ना किसी के साथ कोई दुश्मनी है और न ही किसी ने हमें पहले कभी धमकाया है।"
 
 
सदमे में मां
अपने दोनों बेटों को याद करते हुए मोहनलाल कहते हैं, "आप सोच सकते हैं, मेरे दो जवान बेटों की एक साथ हत्या हुई है। छोटे भाई को मार दिया गया। बेटों के गम में पत्नी की दिमागी हालत बिगड़ चुकी है। रात को नींद नहीं आती है। भूख मर चुकी है। घटना के तीन दिन बाद भी किसी ने कुछ नहीं खाया है। मैं गरीब और कमजोर हूं। दोषियों को कहां सजा दिला पाऊंगा। आप लोग ही मेरे बेटों के हत्यारों को उचित सजा दिलवा सकते हैं।"
 
 
मोहनलाल की पत्नि शामोली बिश्वास अपने बटों की लाश को देखने के बाद से सदमे में हैं। आंगन में बने छोटे से पूजा घर को दिखाती हुई कहती है, "मेरे दोनों बेटे मर गए। इस बार विश्वकर्मा पूजा आप लोगों को करना होगा।" इतना कहने के बाद वो फिर चुप हो जाती है।
 
webdunia
बीशोनिमुख खेरबाड़ी गांव में हिंदू बंगालियों के करीब ढाई सौ घर है। अगर एक-दो घर को छोड़ दे तो यहां बसे सभी लोग अनुसूचित जाति के हैं, जो सालों तक ब्रह्मपुत्र नदी से मछलियां पकड़कर अपना गुजारा कर रहे थे। बाद में बाढ़ के कारण जब मछलियां पकड़ने का काम बंद हो गया तो ये लोग खेती में लग गए। यहां के लोग आर्थिक रूप से काफी पिछड़े हैं।
 
 
'घर से निकलने में लगता है डर'
फायरिंग की घटना में जिंदा बचे एकमात्र शख्स 19 साल के सहदेव नमासूद्र मौत के उस मंजर को याद कर कांप उठते हैं। वो कहते हैं, "आम दिनों की तरह उस दिन भी मैं अविनाश के घर पर आया हुआ था। अविनाश का छोटा भाई अनंत मेरा अच्छा दोस्त था। हम सभी लोग अविनाश के घर के भीतर बनी दुकान के बाहर बैठकर मोबाइल पर गाना सुन रहे थे। तभी अचानक तीन लोग मुंह पर काला कपड़ा बांधे सेना की वर्दी में घर के अंदर आए और हमें साथ चलने को कहा। हमने सोचा सेना के लोग हैं तो हम उनके साथ बाहर रास्ते पर चले गए।"
 
 
"बाहर जाने पर मैंने देखा कि वो छह लोग थे और उनके साथ अविनाश के चाचा और गांव का एक व्यक्ति था। उन्होंने हमसे हिंदी में बात करते हुए कहा कि थोड़ा आगे चलो तुम लोगों से बात करनी है। फिर वो हमें नाले पर बने लोहे के पुल के उस पार ले गए और सभी को कतार में बैठने के लिए कहा। वहां काफी अंधेरा था और वे आपस में असमिया भाषा में बात कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने हमें डराया और जबरन कतार में बैठा दिया। फिर हमलावरों ने पीछे से फायरिंग की। फायरिंग के कारण वहां काफी धुआं फैल गया। मैं डर के मारे बेहोश हो गया था और पास के नाले में जा गिरा। थोड़ी देर बाद जब मुझे होश आया तो मैंने देखा सभी लोग जमींन पर गिरे हुए थे। मैं वहां से भागा और इस घटना की जानकारी गांव वालों को दी।"
 
 
अपने माथे पर गोली की हल्की खरोंच दिखाते हुए सहदेव कहते हैं, "जब भी मेरी आंखों के सामने वो मंजर आता है, मेरा दिल कांप उठता है। कई रातों से सो नहीं पाया हूं। घर से निलकने में डर लगता है।"
 
 
पुलिस के हाथ खाली
बंगाली मूल के लोगों पर हुए हमले को चार दिन बीत चुके हैं। लेकिन आसपास के इलाकों में अभियान चला रही पुलिस अभी तक एक भी हमलावर को गिरफ्तार नहीं कर पाई है।
 
webdunia
बीशोनिमुख खेरबाड़ी गांव में मौजूद सदिया के पुलिस अधीक्षक प्रशांत सागर चांगमाई कहते हैं, "घटना के बाद से पुलिस अलग-अलग इलाकों में हमलावरों की तलाश में अभियान चला रही है। इस घटना के बाद धोला-सदिया पुल पर जांच के दौरान पुलिस ने वार्ता विरोधी उल्फा (आई) के एक लिंक मैन को गिरफ्तार किया है। डिकलाइन गोगोई नामक इस युवक को पुलिस ने पहले भी एक आईईडी बम के साथ गिरफ्तार किया था। फिलहाल उससे पूछताछ की जा रही है। वो पैसो के लिए उल्फा के साथ काम करता है।"
 
 
नागरिकता संशोधन बिल पर राज्य में एक-दूसरे समुदाय के खिलाफ चल रही बयानबाजी के बाद क्या सरकार ने अलर्ट किया था, इस सवाल पर एसपी कहते हैं, "सरकार की तरफ से अलर्ट मैसेज आते रहते हैं और हमने उसके मुताबिक इन इलाकों में पुलिस पेट्रोलिंग की व्यवस्था की थी।"
 
 
एसपी दावा कर रहे थे कि घटना वाले दिन स्थानीय थानेदार और पुलिस के जवान गांव में गश्त लगाने दो-तीन बार गए थे। लेकिन गांव वालों का आरोप है कि घटना के बाद जब थाने में फोन किया तो काफी देर तक फोन बंद आ रहा था। महज दो सौ मीटर की दूरी पर मौजूद थाने से पुलिस को मौके पर आने के लिए आधे घंटे से ज्यादा समय लग गया।
 
 
धोला थाना क्षेत्र के अंतर्गत बसे इस गांव के एक छोर में जहां पांच सौ मीटर की दूरी पर सैखुवा घाट पुलिस आउट पोस्ट है तो दूसरे छोर पर थाना है।लेकिन आश्चर्य की बात है कि हमलावरों की फायरिंग की आवाज को गांव वालों ने दिवाली के पटाखा समझा और पुलिस को वही आवाज सुनाई नहीं दी।
 
 
पुलिस कर रही है जांच
वहीं, एसपी चांगमाई कहते हैं, "इन सब बातों की और गांव वालों के आरोंपो की जांच हो रही है। बाद में हमारे शीर्ष अधिकारी इन सवालों का जवाब देंगे।" तिनसुकिया जिले के सदिया इलाके के आसपास वैसे तो बंगाली मूल के काफी लोग बसे हुए है लेकिन बीशोनिमुख खेरबाड़ी ही एक ऐसा गांव है जहां करीब सौ फिसदी हिंदू बंगाली लोग सालों से रह रहें है।

webdunia
पुलिस इस हमले के पीछे चरमपंथी संगठन उल्फा (आई) को संदेह पर रख अपनी आगे की कार्रवाई कर रही है। जबकि प्रदेश में चारों तरफ हो रही निंदा के बाद उल्फा के परेश बरुआ गुट ने एक बयान जारी कर इस हमले में संगठन की संलिप्तता से इनकार किया है।
 
 
ऐसे में इस हमले को लेकर असम की सत्ता संभाल रही मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल की सरकार सवालों के घेरे में है। क्योंकि प्रदेश में पिछले तकरीबन एक महीने से बंगाली हिंदूओं के नागरिकता वाले मुद्दे पर असमिया-बंगाली संगठन के कुछ नेताओं के बीच तकरारभरी बयानबाजी हो रही थी।
 
 
एक तरफ जहां असम के जातीय संगठन नागरिकता संशोधन बिल का लगातार विरोध कर रहे हैं वहीं बंगाली लोगों के अधिकतर संगठन इस बिल के समर्थन में है।
 
 
मुख्यमंत्री ने दी चेतावनी
बंगाली समुदाय से आने वाले भाजपा विधायक शिलादित्य देव ने भी इस मुद्दे पर काफी 'उत्तेजक' बयान दिए हैं जिसके चलते राज्य के कई थानों में उनके खिलाफ मामले दर्ज हुए हैं। उधर केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता कर रहे कुछ पूर्व उल्फाई नेताओं ने भी 'धमकी' भरे अंदाज में अपनी प्रतिक्रियाएं दी।
 
 
ऐसे आरोप है कि जब प्रदेश में असमिया-बंगाली के बीच आपसी टकराव का एक माहौल बन रहा था उस समय राज्य सरकार ने स्थिति से निपटने के लिए कोई कदम नहीं उठाए। बंगाली मूल के पांच लोगों की हत्या के दो दिन बाद शनिवार को मुख्यमंत्री सोनोवाल ने कहा कि प्रदेश के माहौल को भड़काऊ बयानबाजी से खराब करने वाले सभी पक्षों के खिलाफ उनकी सरकार कानूनी कार्रवाई करेगी।
 
 
इस बीच वार्ता समर्थक पूर्व उल्फा नेता मृणाल हजारिका और जीतेन दत्त को उनके कथित 'धमकी' वाले बयान के लिए गिरफ्तार किया गया है। पुलिस का कहना है कि पूर्व उल्फा नेताओं ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक का समर्थन करने वाले हिंदू बंगाली लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी।
 
 
राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए आल ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के महासचिव लूरिन ज्योति गोगोई ने कहा, "प्रदेश की सरकार अपना राजधर्म निभाने में पूरी तरह विफल रही है।" आसू वही छात्र संगठन है जिसका नेतृत्व करते हुए सर्वानंद सोनोवाल ने एक नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई और इसी पहचान ने उन्हे राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया। 
 
 
असम में जातीय अस्मिता को लेकर हिंदू बंगालियों और असमिया लोगों के बीच टकराव का पूराना इतिहास रहा है। पचास के दशक से ही गैर-कानूनी रूप से बाहरी लोगों का असम में आना एक राजनीतिक मुद्दा बनने लगा था, लेकिन साल 1979 में यह एक प्रमुख मुद्दे के रूप में सामने आया और इसके खिलाफ ऑल असम स्टूडेंट यूनियन के नेतूत्व में व्यापक स्तर पर आंदोलन छेड़ा गया।
 
 
करीब छह साल चले इस आंदोलन में सैकड़ो लोग मारे गए। आखिर में 1985 में तत्कालिन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आसू नेताओं के साथ असम समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते में साफ तौर पर उल्लेख किया गया कि 24 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेश से असम में आए लोगों की शिनाख्त कर उन्हें यहां से बाहर निकाला जाएगा। फिर चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान। असम समझौते के 33 साल बाद सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी यहां नए सिरे से बन रही है।
 
 
कई अनसुलझे सवाल
इस बीच केंद्र सरकार ने पड़ोसी देशों से भारत आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यक आप्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए नागरिकता संशोधन बिल को संसद में पेश कर एक तरह से एनआरसी की प्रासंगिकता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। असमिया लोगों का तर्क है कि सैकड़ो लोगों के बलिदान के फलस्वरूप सालों बाद एनआरसी का काम शुरू हुआ है और सरकार अब नागरिकता संशोधन बिल के जरिए बांग्लादेशी हिंदू बंगालियों को यहां बसाना चाहती है। अगर ऐसा हुआ तो असमिया जाति का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा।
 
 
उल्फा (आई) की गतिविधियों पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का दावा है कि राज्य में जब भी असमिया जाती की भावनाओं से जुड़ा कोई मुद्दा गरमाता है तो उल्फा का परेश बरुआ गुट उसका फायदा उठाने के लिए इस तरह की घटनाओं को अंजाम देता है ताकि संगठन के प्रति लोगों का समर्थन हासिल कर सकें।
 
 
वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ गोस्वामी कहते हैं, "असम के लोग उल्फा या परेश बरुआ के प्रति किसी तरह का समर्थन नहीं करते।" हालांकि तिनसुकिया जिले में जहां बंगाली मूल के लोगों की हत्या की गई है, वो परेश बरुवा का गृह जिला है और वहां एक-दो गांव में उल्फा का थोड़ा असर है।
 
 
हर तरफ डर
गांव में सुरक्षा बलों के साथ गश्त लगाने आए एक पुलिस अधिकारी ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहा कि ये काम उल्फा के परेश बरुवा गुट के लड़कों का ही है। सदिया इलाके में उल्फा (आई) के कुछ कैडर सक्रिय है। पुलिस लगातार इन कैडरों को तलाश रही है लेकिन इन कैडरों के लिए यहां किसी भी घटना को अंजाम देकर अरुणाचल प्रदेश के रास्ते म्यामांर भागना काफी आसान है।
 
 
अपने छोटे भाई सुबल दास को खो चुके 65 साल के सुनिल दास कहते हैं, "हमारे गांव में कभी ऐसी घटना नहीं हुई। इस इलाके में ये एकमात्र बंगाली बहुल गांव है लेकिन असम आंदोलन के समय भी यहां एक भी घटना नहीं हुई।"
 
 
सुबल दास की छह बेटियां हैं। तीन की शादी हो गई और तीन घर पर है। उनकी 15 साल की छोटी बेटी सुमोति रोते हुए कहती है, "मेरे पिता अगर उस दिन ठेला वापस करने नहीं जाते तो आज जिंदा होते।" फायरिंग की घटना में मारे गए 18 साल के धनंजय की मां को रो रो कर बुरा हाल हो गया है। बीशोनिमुख खेरबाड़ी गांव में अधिकतर लोग आपस में रिश्तेदार हैं।
 
 
वे इस घटना से न केवल सदमे में है बल्कि काफी डरे हुए हैं। सरकार ने गांव की सुरक्षा के लिए मोहनलाल के घर के सामने सुरक्षा बलों का एक अस्थाई कैंप बनवाया है, जहां असम पुलिस के जवानों के साथ सीआरपीएफ की एक प्लाटून 24 घंटे गांव की सुरक्षा के लिए तैनात रहेंगे।... लेकिन इस घटना के बाद पूरे प्रदेश में उत्पन्न हुए माहौल को अभी सामान्य होने में थोड़ा वक्त लगेगा।
 

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

'ज़हरीली हवा' से दिल्ली में कैसे बचाएं अपनी जान