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कोरोना वायरस के चलते फीकी हुई ईद की चमक

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BBC Hindi

, शनिवार, 1 अगस्त 2020 (07:49 IST)
अमृता शर्मा, बीबीसी मॉनिटरिंग
इस बार ईद-उल-अज़हा के मौके पर कोरोना वायरस का असर साफ़ नज़र आ रहा है। संक्रमण के चलते लगे प्रतिबंधों, स्वास्थ्य दिशानिर्देशों और कोरोना के बढ़ते मामलों ने त्योहार के रंग को थोड़ा फीका कर दिया है।
 
भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव समेत सभी दक्षिण एशियाई देशों की सरकारों ने लोगों से संक्रमण को बढ़ने से रोकने के लिए सादगी से ईद मनाने की अपील की है।
 
इसका असर पशुपालकों, व्यापारियों और ग्राहकों पर भी देखने को मिल रहा है। अब लोग बाज़ार जाने से ज़्यादा ऑनलाइन सामान ख़रीदने को तरज़ीह देने लगे हैं।
 
दक्षिण एशिया में ईद-उल-अज़हा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है। ये मुसलमानों के प्रमुख त्योहारों में से एक है।
 
दक्षिण एशियाई देशों ने बकरीद को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग, लॉकडाउन और अंतरराज्यीय परिवहन पर रोक जैसे नियम लागू किए हैं ताकि कोरोना के संक्रमण को रोका जा सके।
 
सभी देश बरत रहे एहतियात
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने 27 जुलाई के अपने संबोधन में लोगों से सादगी से त्योहार मनाने की अपील की थी और साथ ही चेताया था कि बड़ी संख्या में इकट्ठा होने से कोरोना के मामलों में तेज़ी आ सकती है।
 
पाकिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ के दिशानिर्देशों में कम से कम यात्रा करने और ईद की नमाज़ पढ़ते समय सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने जैसी हिदायतें दी गई हैं।
 
पंजाब में प्रांतीय सरकार ने 28 जुलाई से 5 अगस्त तक 'स्मार्ट लॉकडाउन' लागू किया है। 27 जुलाई के डॉन अख़बार में रिपोर्ट किया गया है कि चीफ़ सेक्रेट्री जव्वाद रफ़ीक़ ने कहा था कि ये फैसला सावर्जनिक हित में लिया गया है।
 
बांग्लादेश में भी सरकार ने लोगों से खुली जगहों की बजाए अपनी नज़दीकी मस्जिदों में ही नमाज़ पढ़ने की अपील की है। बांग्लादेश के जहाजरानी मंत्री ख़ालिद महमूद चौधरी ने 24 जुलाई को लोगों से ईद के दौरान यात्रा करने से बचने और अपनी ज़िंदगी ख़तरे में ना डालने का आग्रह किया। ईद के दौरान हज़ारों लोग अपने घर आते हैं।
 
भारत में भी कई राज्यों में घर पर ही ईद की नमाज़ पढ़ने की सलाह ज़ारी की गई है। कई धार्मिक नेताओं ने भी सरकारी नियमों का पालन करने की अपील की है।
 
मालदीव में भी इस्लामिक मंत्रालय ने घोषणा की है की सावधानी बरतते हुए इस साल ईद की नमाज़ राजधानी माले के खुले मैदानों में नहीं होगी। इसके बजाए मस्जिदों में ही नमाज़ पढ़ी जाएगी।
 
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ऑनलाइन पशु व्यापार और डिजिटल साक्षरता का कमी
कोरोना महामारी ने दक्षिण एशिया में पशु बाज़ार को बुरी तरह प्रभावित किया है। यहां पशु व्यापारी प्रतिबंधों का खामियाजा भुगत रहे हैं।
 
ईद-उल-अज़हा के मौके पर बकरे की बलि देने की परंपरा है। इसके कारण इस त्योहार पर पशु बाज़ार का महत्व काफ़ी बढ़ जाता है। लेकिन, इस साल कई दक्षिण एशियाई देशों में ईद पर पशु बाज़ारों में भीड़ को कम करने के लिए ऑनलाइन बिक्री से जुड़े दिशानिर्देश ज़ारी किए गए हैं।
 
हालांकि, दिशानिर्देशों के अलावा लोग संक्रमण के डर के चलते खुद भी बाज़ार जाने से बच रहे हैं और ऑनलाइन खरीद-बिक्री कर रहे हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जानवारों की तस्वीरें या वीडियो डाली जाती है। साथ ही उसकी उम्र, लंबाई, दांतों और स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां दी जाती हैं। इसके आधार पर लोग जानवर पसंद करते हैं।
 
भारत में भी प्रतिबंधों के कारण पशुओं का परिवहन और बिक्री प्रभावित होने से ऑनलाइन पशु व्यापार एक विकल्प के तौर पर सामने आया है।
 
महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने त्योहार को देखते हुए ऑनलाइन पशु व्यापार से जुड़े कड़े दिशानिर्देश ज़ारी किए हैं।
 
हालांकि, न्यूज़ पोर्टल स्क्रॉल की रिपोर्ट के मुताबिक बड़े पैमाने पर ऑनलाइन व्यापार, परिवहन और बकरियों की डिलिवरी के लिए पर्याप्त व्यवस्था ना होने से पशु व्यापारी और उपभोक्ता अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं।
 
इसमें कई चुनौतियां सामने आ रही हैं। जैसे सभी लोगों को ऑनलाइन खरीद-बिक्री के तरीकों की जानकारी नहीं है। वो डिजिटल प्रणाली को लेकर ज़्यादा जागरुक नहीं हैं।
 
साथ ही बकरियों को एक से दूसरी जगह पहुंचाने की सुविधाजनक व्यवस्था नहीं है। इसके अलावा कई लोग इसलिए भी ऑनलाइन खरीद नहीं कर रहे हैं क्योंकि वो फोटा या वीडियो में जानवरों को ठीक से जांच नहीं कर पाते।
 
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
कोविड-19 के प्रतिबंधों का आर्थिक प्रभाव और ऑनलाइन मवेशी बाज़ार से जुड़े दिशानिर्देश कुछ दक्षिण एशियाई देशों में चिंता का विषय बन गए हैं।
 
डॉन अख़बार के 15 जुलाई के एक संपादकीय के मुताबिक, "ईद-उल-अज़हा में होने वाली बलि पाकिस्तान में आर्थिक गतिविधि का एक प्रमुख इंजन है। इसकी अपनी अरबों-करोड़ों की अर्थव्यवस्था है। पशुपालकों से लेकर कसाई और चर्म शोधन उद्योग तक, सभी के हित जानवरों की बिक्री से जुड़े हुए हैं।"
 
इसी तरह, ऑल इंडिया शीप एंडी गोट ब्रीडर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष असलम क़ुरैशी ने स्क्रॉल की एक रिपोर्ट में कहा है, "हमारे व्यापारियों के लिए हर बकरीद के मुक़ाबले इस साल व्यवसाय 30 प्रतिशत तक कम हो गया है।"
 
बांग्लादेश में भी पशु व्यापारियों और किसानों को बड़े नुक़सान का डर सता रहा है।
 
ढाका ट्रिब्यून की 15 जुलाई की एक रिपोर्ट कहती है, "किसानों को डर है कि उन्होंने जानवरों में जो पैसा लगाया है वो उन्हें मिल भी पाएगा या नहीं क्योंकि कोविड-19 के कारण उनकी बिक्री प्रभावित हुई है।"
 
22 जुलाई को आई ढाका ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के मुताबकि एक विकल्प के तौर पर बांग्लादेश ढाका चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (डीसीसीआई) ने "डिजिटल हाट" या डिजिटल मवेशी बाजार की शुरुआत की है।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि खरीदार अब इस डिजिटल हाट पर विभिन्न रंगों, आकारों, स्थानीय और विदेशी नस्लों की गाय, बकरियां और भैंसें चुन सकते हैं।
 

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