दिल्ली: 'आप' की वापसी कितनी आसान, कितनी कठिन - नज़रिया

Webdunia
बुधवार, 8 जनवरी 2020 (00:19 IST)
अपर्णा द्विवेदी, वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए
2019 में लोकसभा के चुनाव आए तो बीजेपी ने जमकर जश्न मनाया। दिल्ली की सातों सीटों पर कमल खिला तो केन्द्र और दिल्ली बीजेपी में खुशी की लहर दौड़ गई।
 
बीजेपी का मानना था कि लोकसभा चुनाव में एनडीए की सरकार तो बन गई, लेकिन चुनाव के इन नतीजों में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनावों के भी कुछ पहलू छिपे हैं।
 
बीजेपी को उम्मीद थी कि देश की जनता ने अगर इसी तरह अपना भरोसा बीजेपी पर बरकरार रखा तो दिल्ली विधानसभा चुनाव की तस्वीर भी कमलमय होगी।
 
मगर 2020 में चुनाव की घोषणा होने के बाद दिल्ली बीजेपी में न तो मई 2019 वाला वो उत्साह दिख रहा है और ना ही वो जोश।
 
छह महीने में ऐसा क्या हो गया कि दिल्ली में बीजेपी के हौसले पस्त हैं? लेकिन इस सवाल के साथ एक और सवाल उठता है कि क्या अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी फिर से 67 सीटें जीतने का जलवा दिखा पाएगी?
 
दिल्ली में 'आप'
 
लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सातों सीटों को आम आदमी पार्टी मापदंड नहीं मानती क्योंकि 2014 में भी दिल्ली में बीजेपी ने सभी लोकसभा सीटें जीती थीं लेकिन 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीत ली थीं।
 
उस समय बीजेपी सिर्फ 3 सीटों पर सिमट गई थी और दस साल तक दिल्ली में राज करने वाली कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी।
 
दिल्ली में पांच साल तक राज करने वाली अरविंद केजरीवाल की सरकार ने धीरे-धीरे काम की रफ़्तार पकड़ी और काम करने का तरीका भी बदला। शुरुआती सालों में अरविन्द केजरीवाल काफी उग्र नज़र आते थे। वह बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी पर हर बात को लेकर निशाना साधते थे।
 
क़रीब चार सालों तक उनकी सरकार चीफ़ सेकेट्ररी और उपराज्यपाल से नाराज़गी, धरना, मारपीट और गाली गलौज के लिए ख़बरों में बनी रही।
 
अरविन्द केजरीवाल के इसी रवैये की वजह से पिछला लोकसभा चुना मोदी बनाम केजरीवाल हो गया था और इसका खामियाज़ा आम आदमी पार्टी ने चुनाव में झेला। उसके सारे उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी। लेकिन धीरे-धीरे अरविन्द केजरीवाल ने अपने काम का तरीक़ा बदला।
 
काम करने का दावा
यही वजह है कि पिछले एक साल से 'आप' की अरविन्द केजरीवाल सरकार ने अपने काम का दावा ठोकना शुरू किया। आम आदमी पार्टी ने सत्तर वादे किए थे। अब 'आप' उन्ही सत्तर कामों का रिपोर्ट कार्ड लेकर दिल्ली की जनता के पास पहुंच रही है।
 
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अपनी सरकार की सफलता में मोहल्ला क्लीनिक, अच्छी शिक्षा, सस्ती बिजली, हर मोहल्ले में अच्छी गलियां और सड़कें बनवाने जैसी बातों को गिना रही है।
 
उनका कहना है कि दिल्ली में स्वास्थ्य, बिजली, पानी और शिक्षा का स्तर बेहतर हुआ है जिससे आम आदमी को लाभ पहुंच रहा है और यही वजह है कि अब दिल्ली की जनता अच्छा काम करने वाले अरविन्द केजरीवाल की सरकार को फिर से चुनेगी।
 
'आप' का दावा है कि वो इस बार नया रिकॉर्ड बनाएगी। हालांकि, नागरिकता संशोधन क़ानून जैसे मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल की चुप्पी आम आदमी पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है।
 
'आप' की तरफ़ से राज्यसभा सांसद संजय सिंह जेएनयू छात्रों पर हुए हमले के बाद एम्स में घायलों से मिलकर उनका हाल-चाल ले चुके हैं। हालांकि, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस घटना के तुरंत बाद वहां नहीं पहुंचे। शायद वह किसी के भी पक्ष में खड़े होकर ध्रुवीकरण का हिस्सा नहीं बनना चाह रहे।
 
दिल्ली में कांग्रेस
वहीं दिल्ली में कांग्रेस वापसी के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रही है। साल 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी 54.3 फ़़ीसदी, बीजेपी 32.3 फ़ीसदी और कांग्रेस पार्टी मात्र 9.7 फ़ीसदी मत हासिल कर पाई थी। लेकिन पांच साल बाद, इस बार कांग्रेस को उम्मीद है कि वो बेहतर प्रदर्शन करेगी।
 
कांग्रेस की उम्मीद का एक कारण है कि झारखंड विधानसभा के नतीजे कांग्रेस को काफ़ी उत्सहित कर रहे हैं। कांग्रेस की सहयोगी राजद ने दिल्ली में चुनाव लड़ने की घोषणा कर बिहार-झारखंड के पूर्वाचंली वोटरों में सेंधमारी करने का इरादा ज़ाहिर किया। कांग्रेस को उम्मीद है कि यहीं पूर्वांचली वोट उसके सत्ता के रास्ते को साफ़ करेंगे।
 
हालांकि कांग्रेस ये भी जानती है कि उसका पुराना वोटबैंक आज केजरीवाल सरकार का वोटबैंक है। अब कांग्रेस उसको फिर से हासिल करने की कोशिश में है और लोकलुभावन वादे भी कर रही है।
 
कांग्रेस के वादे
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने ऐलान किया कि राजधानी में कांग्रेस पार्टी की सरकार आने पर सभी बुज़ुर्गों, विधवाओं व दिव्यांगों की पेंशन राशि को बढ़ाकर 5000 रुपये प्रतिमाह किया जाएगा।
 
चूंकि नागरिकता संशोधन क़ानून पर आम आदमी पार्टी की ख़ास प्रतिक्रिया नहीं आई, इसलिए कांग्रेस इस बात को भी भुनाना चाहती है। कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में वो अच्छा प्रदर्शन करेगी।
 
हालांकि, कांग्रेस में गुटबाज़ी काफ़ी है। इसके अलावा कांग्रेस के पास नए चेहरों में कोई चमकता चेहरा नहीं है। इस चुनाव में कांग्रेस को अपने ताकतवर नेता जैसे शीला दीक्षित या सज्जन कुमार की कमी खलेगी।
 
15 साल तक दिल्ली में राज करने वाली शीला दीक्षित ने भले ही चुनाव में हार का सामना किया लेकिन लोगों को उनके चेहरे पर भरोसा था। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उस जगह को भरने वाला कोई नहीं है।
 
दिल्ली में बीजेपी
वहीं दिल्ली में बीजेपी भी अपने नेता की तलाश में है। दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी जिन पूर्वांचली वोटरों पर कब्ज़ा करने की कोशिश में हैं, उनपर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की नज़र है।
 
बीजेपी कच्ची कॉलोनियों को नियमित करने के सहारे भी दिल्ली के लोगों का दिल जीतना चाहती है। साथ ही बीजेपी नागरिकता संशोधन क़ानून, राम मंदिर और राष्ट्रवाद के मुद्दे को भी लेकर भी मैदान में है।
 
दिल्ली में शहरी मतदाताओं के होने के चलते बीजेपी को उम्मीद है कि उसका राष्ट्रवाद का मुद्दा काफ़ी प्रभावी साबित हो सकता है। सिखों को लुभाने के लिए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर गुरु गोविंद सिंह के वीर पुत्रों की याद में बाल दिवस मनाने की परंपरा शुरू करवाने का अनुरोध किया है।
 
बीजेपी दिल्ली की सत्ता से पिछले 21 साल से दूर है और पार्टी इस बार अपने सियासी वनवास को ख़त्म करने के लिए एड़ी चोटी की ज़ोर लगा रही है।
 
बीजेपी केंद्र सरकार के काम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को भुनाने की क़वायद में है क्योंकि दिल्ली में छह महीने पहले ही लोकसभा चुनाव की जंग केजरीवाल बनाम मोदी की हुई थी, जिसमें आप को काफी नुक़सान हुआ था।
 
दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी जहां अपने कामकाज के सहारे सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए हुए है, वहीं कांग्रेस और बीजेपी अपने वोटबैंक को वापस पाने के जुगाड़ में लगी है।
 
छात्रों का आंदोलन
नागरिकता संशोधन क़ानून के बाद देश में दिल्ली विधानसभा का पहला चुनाव है। इस क़ानून का विरोध हो रहा है और उसमें दिल्ली के तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों- जेएनयू, डीयू, और जामिया में कैंपस में विरोध की आग भड़की है।
 
जामिया और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों को हिंसा का भी सामना करना पड़ा। लेकिन ये मुद्दा दिल्ली के चुनावों में छाएगा या नहीं, ये समय बताएगा।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

1984 में हाईजैक हुए विमान में सवार थे मेरे पिता, विदेश मंत्री जयशंकर का बड़ा खुलासा

राम मंदिर में सफाई करने वाली युवती से 9 लोगों ने किया गैंगरेप

जेल मुझे कमजोर नहीं कर सकती, तिहाड़ से बाहर आकर बोले केजरीवाल

पोर्ट ब्लेयर अब कहलाएगा श्री विजय पुरम, अमित शाह ने किया ऐलान

Retail Inflation : अगस्त में बढ़ी महंगाई, 3.65 फीसदी रही खुदरा मुद्रास्फीति

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

iPhone 16 सीरीज लॉन्च होते ही सस्ते हुए iPhone 15 , जानिए नया आईफोन कितना अपग्रेड, कितनी है कीमत

Apple Event 2024 : 79,900 में iPhone 16 लॉन्च, AI फीचर्स मिलेंगे, एपल ने वॉच 10 सीरीज भी की पेश

iPhone 16 के लॉन्च से पहले हुआ बड़ा खुलासा, Apple के दीवाने भी हैरान

Samsung Galaxy A06 : 10000 से कम कीमत में आया 50MP कैमरा, 5000mAh बैटरी वाला सैमसंग का धांसू फोन

iPhone 16 Launch : Camera से लेकर Battery तक, वह सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं

अगला लेख
More