जेम्स गैलहर, हेल्थ और विज्ञान संवाददाता, बीबीसी न्यूज़
चीन के वुहान से फैलना शुरू हुआ कोरोना वायरस कोविड 19 अब दुनिया के 76 देशों में फैल चुका है। भारत में अब तक इसके 29 मामलों की पुष्टि हो चुकी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि 31 दिसंबर 2019 को हुई थी। जिस तेज़ी से वायरस फैला उसे देखते हुए 30 जनवरी 2020 को इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया गया।
लेकिन शुरुआती वक्त में इस वायरस के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी और इस कारण इसका इलाज भी जल्द नहीं मिल पाया। अब तक इस वायरस से बचने के लिए कोई टीका नहीं बन पाया है।
इस वायरस के बारे में और इसके संक्रमण के तरीक़ों के बारे में जानकारी तो उपलब्ध है लेकिन अब तक इसका कोई इलाज नहीं मिला है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत कई देशों में डॉक्टर इससे निपटने के लिए टीका तलाशने के काम में जुटे हैं लेकिन क्या इसका टीका जल्द बन पाएगा?
कब तक बनेगा कोरोना का टीका?
इस वायरस पर शोध करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि उन्होंने इसका टीका बना लिया है और जानवरों पर इसका टेस्ट शुरु कर दिया है। अगर सब कुछ सही रहा तो इसी साल इंसानों में भी इसका परीक्षण शुरु किया जा सकता है।
अगर वैज्ञानिक इस बात से ख़ुश भी हैं कि कोरोना वायरस के लिए टीका मिल गया है तब भी बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन शुरु होने में अभी वक्त लगेगा है।
इसका मतलब ये हुआ कि असल में अभी भी ये नहीं कहा जा सकता कि अगले साल से पहले ये टीका बाज़ार में उपलब्ध हो जाएगा।
कोरोना वायरस कोविड 19 को लेकर बेहद तेज़ गति से काम चल रहा है और टीका बनाने के लिए भी अलग-अलग रास्ते अपनाए जा रहे हैं। ऐसे में इसके टीके को लेकर फ़िलहाल कोई गारंटी नहीं है।
अब तक चार तरह के कोरोना वायरस पाए गए हैं जो इंसानों में संक्रमण कर सकते हैं। इन वायरस के कारण सर्दी-खांसी जैसे लक्षण दिखते हैं और इनके लिए अब तक कोई टीका नहीं है।
क्या सभी उम्र के लोग बच पाएंगे?
माना जा रहा है कि अगर कोरोना वायरस का टीका बना तो ज़्यादा उम्र के लोगों में इसका असर कम हो सकता है। लेकिन इसका कारण टीका नहीं बल्कि लोगों की रोग प्रतरोधक क्षमता से है क्योंकि उम्र अधिक होने के साथ-साथ व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती जाती है। हर साल फ्लू के संक्रमण के साथ ये देखने को मिलता है।
सभी दवाओं के दुष्प्रभाव भी होते हैं। बुख़ार के लिए आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली पैरासेटामॉल जैसी दवा के भी दुष्प्रभाव होते हैं।
लेकिन जब तक किसी टीके का क्लिनिकल परीक्षण नहीं होता, ये जानना मुश्किल है कि उसका किस तरह से असर पड़ सकता है।
जब तक टीका नहीं बनता जब तक क्या किया जा सकता है?
ये बात सच है कि टीका व्यक्ति को बीमारी से बचाता है, लेकिन कोरोना वायरस से बचने का सबसे असरदार उपाय है अच्छी तरह साफ़-सफ़ाई रखना।
अगर आपको कोरोना वायरस संक्रमण हो भी जाता है तो अक्सर ये मामूली संक्रमण की तरह होता है। क्लिनिकल ट्रायल में कई तरह के एंटी-वायरल का इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन ये सभी कोरोना में भी कारगर होंगे ये कहना मुश्किल है।
टीका बनता कैसे है?
इंसानी शरीर में ख़ून में व्हाइट ब्लड सेल होते हैं जो उसके रोग प्रतिरोधक तंत्र का हिस्सा होते हैं।
बिना शरीर को नुक़सान पहुंचाए टीके के ज़रिए शरीर में बेहद कम मात्रा में वायरस या बैक्टीरिया डाल दिए जाते हैं। जब शरीर का रक्षा तंत्र इस वायरस या बैक्टीरिया को पहचान लेता है तो शरीर इससे लड़ना सीख जाता है।
इसके बाद अगर इंसान असल में उस वायरस या बैक्टीरिया का सामना करता है तो उसे जानकारी होती है कि वो संक्रमण से कैसे निपटे।
दशकों से वायरस से निपटने के लिए जो टीके बने उनमें असली वायरस का ही इस्तेमाल होता आया है।
मीज़ल्स, मम्प्स और रूबेला (एमएमआर यानी खसरा, कण्ठमाला और रुबेला) टीका बनाने के लिए ऐसे कमज़ोर वायरस का इस्तेमाल होता है जो संक्रमण नहीं कर सकते। साथ ही फ्लू के टीके में भी इसके वायरस का ही इस्तेमाल होता है।
लेकिन कोरोना वायरस के मामले में फिलहाल जो नया टीका बनाया जा रहा है उसके लिए नए तरीक़ों का इस्तेमाल हो रहा है और जिनका अभी कम ही परीक्षण हो सका है। नए कोरोना वायरस Sars-CoV-2 का जेनेटिक कोड अब वैज्ञानिकों को पता है और अब हमारे पास टीका बनाने के लिए एक पूरा ब्लूप्रिंट तैयार है।
टीका बनाने वाले कुछ डॉक्टर कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड के कुछ हिस्से लेकर उससे नया टीका तैयार करने की कोशिश में हैं।
कई डॉक्टर इस वायरस के मूल जेनेटिक कोड का इस्तेमाल कर रहे हैं जो एक बार शरीर में जाने के बाद वायरल प्रोटीन बनाते हैं ताकि शरीर इस वायरस से लड़ना सीख सके।