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जोसेफ़ स्टालिन : कुछ इस तरह हुआ था सोवियत तानाशाह का अंत

हमें फॉलो करें जोसेफ़ स्टालिन : कुछ इस तरह हुआ था सोवियत तानाशाह का अंत
, गुरुवार, 5 मार्च 2020 (15:49 IST)
- रेहान फ़ज़ल
21 दिसंबर, 1952 को अपने जन्मदिन पर स्टालिन ने अपने 'बिलज़नाया' डाचा में एक बर्थडे पार्टी दी थी, जिसमें उनके तमाम क़रीबी लोग आमंत्रित थे। ग्रामोफ़ोन पर लोक संगीत और डांस के गाने चल रहे थे। डिस्क का चयन खुद स्टालिन अपनी देखरेख में करवा रहे थे। वहां कम से कम 2 मेहमान ऐसे थे जिन्हें ये सब रास नहीं आ रहा था। उनमें से एक थे निकिता ख्रुश्चेव जिन्हें नाचने से नफ़रत थी। उन्हें छेड़ने के लिए स्टालिन ने उनसे यूक्रेन का 'गोपाक' डांस करने के लिए कहा। स्टालिन खुद कभी डांस के 'स्टेप्स' पर महारथ नहीं हासिल कर पाए, इसलिए उन्हें दूसरों से डांस करवाकर उसे परेशान करने में बहुत मज़ा आता था, ख़ासकर दूसरा जब डांस में अनाड़ी हो।

दूसरी महिला जिसे वो शाम बिल्कुल पसंद नहीं आ रही थी, वो थीं स्टालिन की बेटी स्वेतलाना अलिलुएवा। उस समय वो 26 साल की थीं, लेकिन तब तक उनका 2 बार तलाक हो चुका था। स्वेतलाना को ये कतई बर्दाश्त नहीं था कि कोई उन्‍हें कुछ करने का हुक्म दे। जब स्टालिन ने उसके साथ डांस करने की इच्छा जताई तो उन्होंने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया।

स्टालिन ने स्वेतलाना के बाल पकड़े
स्टालिन इस इंकार को बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्हें ग़ुस्सा आ गया। उन्होंने अपनी बेटी के बाल पकड़े और उसे लगभग खींचते हुए आगे ले आए। स्वेतलाना का चेहरा इस अपमान से लाल हो गया और उनकी आंखों से आंसू निकल आए। निकिता ख्रुश्चेव अपनी आत्मकथा, 'ख्रुश्चेव रिबेंबर्स' में लिखते हैं, स्टालिन ने इतना पाशविक व्यवहार इसलिए नहीं किया था कि वो स्वेतलाना को कोई तकलीफ़ पहुंचाना चाहते थे। असल में ये उनका स्वेतलाना के लिए स्नेह दिखाने का तरीका था, लेकिन दूसरों को लग रहा था कि वो उनके साथ ज़्यादती कर रहे थे, लेकिन स्टालिन अक्सर इस तरह की हरकतें करते रहते थे।

स्टालिन के डाचा में दावत
2 महीने बाद 28 फ़रवरी को स्टालिन ने अपने डाचा पर अपने 4 वरिष्ठ सहयोगियों जॉर्जी मेलेनकोव, बेरिया, ख्रुश्चेव और बुल्गानिन को एक फ़िल्म देखने के लिए बुलाया। फ़िल्म देखने के बाद सबके लिए बहुत अच्छा खाना और शराब परोसी गई। पार्टी प्रेसीडियम के सदस्यों ने जानबूझकर कोई ऐसी बात नहीं की जो स्टालिन को नागवार गुज़रे। पार्टी 1 मार्च को सुबह 4 बजे समाप्त हुई।

किसी को ज़रा भी आभास नहीं मिला कि स्टालिन की तबियत नासाज़ है। बाद में ख्रुश्चेव ने लिखा कि हम सभी स्टालिन को भला-चंगा छोड़कर आए थे। वो हमसे मज़ाक कर रहे थे और बार-बार मेरे पेट में अपनी उंगलियां घुसा रहे थे। वो जानबूझकर यूक्रेनियन लहजे में मुझे 'मिकिता' कहकर पुकार रहे थे।

अंगरक्षकों को कमरे में न आने के निर्देश
स्टालिन ने अपने अंगरक्षकों को निर्देश दिए कि अब वो सोने जा रहे हैं। उनके एक अंगरक्षक पावेल लोज़गाचेव ने उनके जीवनीकार एडवर्ड रादज़िंस्की को बताया कि स्टालिन ने हमसे कहा कि कोई उनके कमरे में तब तक न आए, जब तक वो उन्हें ख़ुद न बुलाएं।

स्टालिन के एक और जीवनीकार रॉबर्ट सर्विस लिखते हैं, 1 मार्च को पूरे दिन स्टालिन के कमरे से कोई आवाज़ नहीं आई। वहां हर अंगरक्षक की शिफ़्ट 2 घंटे की हुआ करती थी। इसके बाद वो 2 घंटे आराम करता था और फिर शिफ़्ट पर आ जाता ता। ऐसा इसलिए किया जाता था कि गार्ड हमेशा मुस्तैद रहें और उनमें सुस्ती न आए।

पूरे दिन कमरे से कोई आवाज़ नहीं
स्टालिन की आदत थी कि जब वो सुबह सोकर उठते थे तो वे नींबू की फांक के साथ चाय का एक कप मांगते थे। उनके एक अंगरक्षक मार्शल एलेक्ज़ेडर योगोरोव ने बाद में बताया कि हम सब लोग थोड़े परेशान हो गए क्योंकि पूरे दिन स्टालिन ने चाय का कप नहीं मांगा। कुछ लोगों ने समझा कि वे चाय इसलिए नहीं मांग रहे हैं, क्योंकि उन्होंने थर्मस में रखी चाय पी ली है।

शाम साढ़े 6 बजे डाचा की लाइट्स ऑन कर दी गईं लेकिन स्टालिन तब भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकले। उन्होंने न तो खाना मंगवाया और न ही कुछ करने का आदेश दिया। रात 10 बजे मास्को से सेंट्रल कमेटी के दफ़्तर से स्टालिन के लिए एक पैकेट आया। गार्डों ने आपस में विचार-विमर्श करने करने के बाद तय किया कि पावेल लोज़गाचेव उस पैकेट के साथ स्टालिन के शयन कक्ष में जाएंगे। जब पावेल शयनकक्ष में घुसे तो वहां का दृश्य देखकर भौचक्के रह गए।

ज़मीन पर गिरे स्टालिन
स्टालिन के जीवनीकार एडवर्ड रादज़िंस्की लिखते हैं, स्टालिन ज़मीन पर गिरे हुए थे। उनका हाथ थोड़ा उठा हुआ था। वे पूरी तरह से बेहोश नहीं हुए थे, लेकिन वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे। उन्होंने अपने पाजामे में ही पेशाब कर दिया था। पास में ही 'प्रावदा' अख़बार और और मिनरल वॉटर की बोतल पड़ी हुई थी। गार्ड्स ने अनुमान लगाया कि जब स्टालिन ने लाइट जलाने की कोशिश की होगी, तभी वे ज़मीन पर गिर पड़े होंगे। दिलचस्प बात ये थी कि इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद किसी ने भी डॉक्टर बुलाने की ज़हमत महसूस नहीं की। अंगरक्षकों ने गृहमंत्री सरजई इग्नातिएव को मास्को फ़ोन मिलाया। इग्नातिएव ने मेलेनकोव और बेरिया को सूचित किया। बेरिया उस समय अपनी एक महिला मित्र के साथ एक डाचा में रात बिता रहे थे।

वोल्कोगोनोव और रादज़िंस्की दोनों स्टालिन की जीवनी में लिखते हैं कि बेरिया ने आदेश दिया कि कॉमरेड स्टालिन की बीमारी के बारे में किसी को कुछ भी नहीं बताया जाए। इस बीच स्टालिन के डाचा में मौजूद लोग ऊपर से निर्देशों का इंतज़ार करने लगे। इस बीच उन्होंने बस इतना किया कि उन्होंने स्टालिन को ज़मीन से उठाकर दीवान पर लिटा दिया और उन्हें कंबल से ढंक दिया। थोड़ी देर बार उन्होंने स्टालिन को डायनिंग हॉल में रखे दूसरे पलंग पर शिफ़्ट कर दिया।

बेरिया ने गार्ड्स को बाहर भेजा
सबसे पहले बेरिया और मेलेनकोव वहां पहुंचे। दिमित्री वॉल्कोगोनोव स्टालिन की जीवनी 'स्टालिन- ट्रायंफ़ एंड ट्रेजिडी' में लिखते हैं, मेलेनकोव ने अपने जूते उतारकर अपने हाथ में ले लिए, क्योंकि वे स्टालिन के कमरे के चमकदार फ़र्श पर शोर कर रहे थे।

वे और बेरिया स्टालिन के सामने खड़े ही थे कि स्टालिन ज़ोर-ज़ोर से ख़र्राटे भरने लगे। डॉक्टर बुलाने के बजाए बेरिया ने गार्ड्स को हड़काते हुए कहा, तुम देख नहीं रहे कि कॉमरेड स्टालिन गहरी नींद में सो रहे हैं। तुम सभी कमरे से बाहर निकलो, ताकि बॉस आराम से सो सकें।

डॉक्टरों को बुलाने में देरी
ख्रुश्चेव अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, सभी नेता 2 मार्च की सुबह स्टालिन के डाचा में पहुंचना शुरू हो गए थे लेकिन तब तक भी किसी डॉक्टर को स्टालिन को देखने नहीं बुलाया गया था। स्वेतलाना को सुबह 10 बजे इसकी ख़बर मिली। उस समय वे फ़्रेंच भाषा की अपनी क्लास में थीं। रॉबर्ट सर्विस लिखते हैं, इससे ऐसी आशंका को बल मिलता है कि स्टालिन की हालत जानबूझकर बिगड़ने दी गई, लेकिन ये भी हो सकता है कि उनके राजनीतिक मातहत जानबूझकर फ़ैसला लेने से हिचक रहे हों, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर स्टालिन ठीक हो गए तो उन्हें इस बात की बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी कि स्टालिन की बीमारी के दौरान उन्होंने देश का इंचार्ज बनने की जुर्रत की थी।

इसके पीछे एक और कहानी बताई जाती है। वॉल्कोगोनोव लिखते हैं, 1953 की शुरुआत में ही स्टालिन कई बार बेहोश हुए थे और उनका रक्तचाप काफ़ी बढ़ा हुआ पाया गया था। उन्होंने सिगरेट पीनी बंद कर दी थी लेकिन आखिर तक उन्हें अपने डॉक्टरों पर विश्वास नहीं था और उनकी पूरी कोशिश होती थी कि उन्हें उनके डाचा से दूर रखा जाए।

ख़ून की उल्टी
जब तक डॉक्टर वहां पहुंचे स्टालिन को बीमार हुए 12 घंटे बीत चुके थे। उन्होंने स्टालिन को अपने ही मूत्र में सना हुआ पाया। उन्होंने उनके कपड़े उतारकर सिरके के सॉल्यूशन से उन्हें साफ़ किया। उसी समय स्टालिन को ख़ून की उल्टी हुई, तभी डॉक्टरों ने स्टालिन के फ़ेफ़ड़ों का एक्स-रे लिया। जोनाथन ब्रेंट और व्लादिमीर नाउमोव अपनी किताब 'स्टालिंस डॉक्टर्स प्लॉट' में लिखते हैं, डॉक्टरों को जल्द ही स्टालिन की गंभीर हालत का अंदाज़ हो गया। उनके शरीर के पूरे दाहिने हिस्से पर लकवा मार गया था।

दोपहर से पहले उन्होंने उन्हें एनीमा देने की कोशिश की लेकिन उन्हें पता था कि इसका सकारात्मक परिणाम आना मुश्किल है। स्टालिन लगातार 3 दिनों तक इसी तरह मूर्छित स्थिति में रहे। इस बीच पार्टी के 2 नेता लगातार उनके बिस्तर के बग़ल में बैठे रहे। बेरिया और मेलेन्कोव दिन में उनके साथ रहते और ख्रुश्चेव और बुल्गानिन रात में उनक बिस्तर के बग़ल में बैठते। 3 तारीख को डॉक्टरों ने कह दिया कि स्टालिन की हालत इतनी गंभीर है कि उन्हें कुछ भी हो सकता है।

चोटी के नेताओं की बैठक
इस बीच 4 मार्च को सोवियत संघ के चोटी के नेताओं की बैठक हुई, क्योंकि डॉक्टरों ने उन्हें बुरी ख़बर के लिए तैयार रहने के लिए कह दिया था। इस बैठक में बुल्गानिन के अलावा सभी नेता शामिल हुए। (बुल्गानिन उस समय स्टालिन की तीमारदारी में लगे हुए थे।) मेलेन्कोव ने बताया कि स्टालिन की हालत बहुत गंभीर बनी हुई है। बेरिया ने प्रस्ताव रखा कि मेलेन्कोव को तुरंत प्रभाव से स्टालिन की जगह ले लेनी चाहिए। इस पर आम सहमति हुई और बैठक समाप्त हो गई, लेकिन स्टालिन अभी मरे नहीं थे।

प्रेसीडियम के सभी सदस्य उनके डाचा पहुंचे, जहां वे अपनी अंतिम सांसें ले रहे थे। वे अपने दीवान पर औंधे मुंह लेटे हुए थे और उनके करीबी साथी मन ही मन सोच रहे थे कि स्टालिन कभी उठ भी पाएंगे या नहीं। वो अभी तक उस शख़्स से ख़ौफ़ खा रहे थे जो आधा बेहोश था और मौत की घड़ियां गिन रहा था। जोनाथन ब्रेंट और नाउमोव अपनी किताब, 'स्टालिंस डॉक्टर्स पलॉट' में लिखते हैं, 5 मार्च को स्टालिन को फिर ख़ून की उल्टी हुई और उनके पेट के अंदर रक्तस्राव शुरू हो गया।

स्टालिन के आख़िरी क्षण
इस बीच सबकी निगाहें बेरिया पर थीं जो स्टालिन का हाथ पकड़कर सबको ये आभास देने की कोशिश कर रहे थे कि वो ही स्टालिन के सबसे अधिक निकट हैं। बाद में स्टालिन की बेटी स्वेतलाना अलिलुएवा ने अपनी आत्मकथा 'ट्वेंटी लेटर्स टू अ फ़्रेंड में' लिखा, उनका चेहरा पूरी तरह से बदल गया था। उनके होंठ काले पड़ गए थे और उनका चेहरा पहचाना नहीं जा रहा था।
आखिरी क्षणों में उन्होंने अचानक अपनी आंख खोली और कमरे में मौजूद हर शख़्स पर अपनी नज़र दौड़ाई। उन्होंने अपना हाथ उठाया जैसे वो किसी की तरफ़ इशारा कर उसे श्राप देने की कोशिश कर रहे हों। अगले ही क्षण उनके प्राण पखेरू उड़ गए। उस समय सुबह के 9 बजकर 50 मिनट हुए थे।

सभी नेता एक-दूसरे को गले लगाकर रोने लगे। ख्रुश्चेव ने स्वेतलाना को गले लगाकर अपनी संवेदना प्रकट की। सभी नौकरों और अंगरक्षकों को स्टालिन के अंतिम दर्शन करने की इजाज़त दी गई। 2 दशकों तक रूस में स्टालिन को महानतम जीवित व्यक्ति माना जाता था। सोवियत संघ के नेतृत्व ने तय किया कि उनके पार्थिव शरीर के साथ भी वही किया जाएगा जो स्टालिन ने 1924 में लेनिन के पार्थिव शरीर के साथ किया था।

तय हुआ कि स्टालिन के शरीर को सुरक्षित रखने के लिए लेप लगाया जाएगा। 9 मार्च 1953 को स्टालिन का अंतिम संस्कार किया गया। चीन के प्रधानमंत्री चू एन लाई, कम्युनिस्ट नेता पालमिरो तोगलियाती और मॉरिस थोरेज़ ने उनकी शवयात्रा में भाग लिया। स्टालिन के पुराने प्रतिद्वंदियों विंस्टन चर्चिल और अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमेन ने शोक संदेश भेजे।

कम्युनिस्ट देशों के समाचारों ने एक सुर में लिखा, इतिहास का एक क़द्दावर पुरुष नहीं रहा। पश्चिम में प्रेस की प्रतिक्रिया मिलीजुली थी। उन्होंने स्टालिन के मानवता के खिलाफ़ किए गए अपराधों को याद करने के साथ-साथ सोवियत संघ के आर्थिक कायापलट और हिटलर के ख़िलाफ़ उनके देश की जीत का पूरा श्रेय स्टालिन को दिया।

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