चुनावी रैलियों से क्या भारत में कोरोना संक्रमण बढ़ा है?

BBC Hindi
शनिवार, 24 अप्रैल 2021 (14:08 IST)
श्रुति मेनन और जैक गुडमैन, बीबीसी रिएलिटी चेक
एक तरफ़ भारत कोरोना संक्रमण के बेतहाशा बढ़ते मामलों से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ़ भारतीय स्वास्थ्य तंत्र ख़ुद को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है।
 
कुछ लोगों का मानना है कि कोविड-19 के मामलों में अचानक रिकॉर्ड तेज़ी के लिए वो राजनीतिक पार्टियाँ ज़िम्मेदार हैं, जिन्होंने ख़तरों के बावजूद विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र भीड़भाड़ वाली रैलियाँ करने में कोई झिझक नहीं दिखाई।
 
हालाँकि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि कोरोना के बढ़ते मामलों और राजनीतिक रैलियों के बीच कोई संबंध नहीं है। बीजेपी नेता डॉक्टर विजय चौथाइवाले ने बीबीसी से कहा, "संक्रमण के बढ़ते मामलों का धार्मिक या राजनीतिक वजहों से जुटी भीड़ से कोई वास्ता नहीं है।"
 
भारत में संक्रमण की स्थिति
सितंबर 2020 से भारत में कोविड-19 संक्रमण के मामले धीरे-धीरे ही सही मगर कम होने लगे थे लेकिन फिर फ़रवरी 2021 से इनमें तेज़ी आनी शुरू हो गई। मार्च में संक्रमण इतनी तेज़ी से बढ़े कि पिछले साल के सारे रिकॉर्ड टूट गए।
 
मार्च में एक तरफ़ संक्रमण के मामले रिकॉर्ड तेज़ी से बढ़ रहे थे और दूसरी तरफ़ भारत की राजनीतिक पार्टियाँ पश्चिम बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु में होने वाले चुनावों को लेकर बड़ी-बड़ी रैलियाँ कर रही थीं।
 
चुनावी रैलियों का सिलसिला मार्च के शुरुआत से ही जारी था क्योंकि मार्च के आख़िरी हफ़्ते से लेकर पूरे अप्रैल महीने में वोटिंग तय थी।
 
क्या चुनावी रैलियों की वजह से बढ़े मामले?
चुनावी रैलियों में बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ी और लोगों के बीच फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग नाम की कोई चीज़ शायद बची नहीं। रैलियों में मास्क पहने लोग भी बहुत कम ही नज़र आए। आम लोग तो दूर, रैलियाँ कर रहे नेता और उम्मीदवार भी कोविड से जुड़े प्रोटोकॉल का पालन करते नज़र नहीं आ रहे थे।
 
भारतीय निर्वाचन आयोग पश्चिम बंगाल में चुनावी रैलियों के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन न होने के लेकर चेतावनी जारी की। चेतावनी के बावजूद नेताओं को सुरक्षा मानकों का पालन न करते देख आख़िरकार निर्वाचन आयोग ने 22 अप्रैल से चुनावी रैलियों पर रोक लगा दी।
 
पश्चिम बंगाल में मार्च के दूसरे हफ़्ते से लेकर अब तक कोरोना संक्रमण के रोज़ाना मामलों में तेज़ी से बढ़त दर्ज की गई।
 
अन्य चुनावी राज्यों जैसे असम, केरल और तमिलनाडु में भी मार्च के आख़िरी और अप्रैल के शुरुआती हफ़्तों में संक्रमण के मामलों में ऐसी ही तेज़ी देखी गई। हालाँकि हमारे पास उन जगहों पर संक्रमण से जुड़ा स्थानीय डेटा नहीं हैं जहाँ रैलियाँ आयोजित की गईं या जहाँ के लोगों ने रैलियों में हिस्सा लिया।
 
हालाँकि ऐसा नहीं है कि इस समयावधि में सिर्फ़ चुनावी राज्यों में ही संक्रमण के मामले बढ़े। इस दौरान पूरे भारत में संक्रमण मामलों में तेज़ी दर्ज की गई।
 
उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे कई राज्यों में संक्रमण के मामलों में रिकॉर्ड तेज़ी देखी गई जबकि वहाँ चुनाव या चुनावी रैली जैसी कोई बात नहीं थी। इसलिए कोरोना के बढ़ते मामलों और चुनावी रैलियों के बीच कोई सीधा संबंध दिखाने के लिए ठोस प्रमाण या डेटा मौजूद नहीं है।
 
बाहर होने वाले कार्यक्रमों से कितना ख़तरा है?
विशेषज्ञों का मानना है कि बाहर खुली हवा में होने वाले कार्यक्रमों में संक्रमण का ख़तरा अपेक्षाकृत कम ही रहता है। वारविक मेडिकल स्कूल के प्रोफ़ेसर लॉरेंस यंग कहते हैं, "खुली हवा में कोरोना वायरस का असर जल्दी कम हो जाता है।"
 
हालाँकि इसके बावजूद कई ऐसे कारण है चुनावी रैली जैसे कार्यक्रमों में संक्रमण की आशंका को बढ़ा सकते हैं। अगर लोग भीड़भाड़ वाली जगह में खुले में भी लंबे वक़्त तक रहते हैं तो संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है।
 
प्रोफ़ेसर यंग कहते हैं, "अगर बाहर भी लोग बिना फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग के लंबे वक़्त तक रहते हैं तो संक्रमण फैलेगा ही।"
 
यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिस्टल के प्रोफ़ेसर जोनाथन रीड कहते हैं कि खुले में भी अगर लोग एक मीटर के दायरे में आमने-सामने खड़े होंगे तो इससे संक्रमण की आशंका कई गुना बढ़ जाएगी। वो कहते हैं, "चूँकि रैलियों में ज़ोर-ज़ोर से नारे लगते हैं ऐसे में लोगों के मुँह से संक्रमण फैलाने वाले ड्रॉपलेट्स के निकलने की आशंका भी बढ़ जाती है।"
 
संक्रमण के पीछे वायरस का नया वैरिएंट है?
वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने में जुटे हैं क्या कि भारत में संक्रमण की दूसरी लहर के पीछे कोरोना वायरस के नए वैरिएंट का हाथ है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा हो सकता है लेकिन इसे साबित करने के लिए अभी पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं।
 
डेटा की कमी के कारण कोरोना वायरस के भारतीय वैरिएंट को पब्लिक हेल्थ ऑफ़ इंग्लैंड ने अभी 'वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न' घोषित नहीं किया है जबकि ब्रिटेन, ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीकी वैरिएंट को वैरिएंट ऑफ़ कंसर्न माना जा चुका है।
 
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है कि भारत में मार्च से कुंभ मेला जैसा विशाल धार्मिक आयोजन भी हो रहा है। इस मेले में पूरे भारत से लाखों श्रद्धालु आते हैं लेकिन इसके बावजूद यहाँ भी सुरक्षा को लेकर पर्याप्त इंतज़ाम नहीं देखे गए। 10-14 अप्रैल के बीच कुंभ मेले में 1,600 से ज़्यादा पॉज़िटिव मामले देखे गए थे।

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