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सीबीआई के डंडे से डराने वाले मोदी अब ख़ुद डरे हुए हैं: अरुण शौरी

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, शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018 (11:48 IST)
पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने राफेल लड़ाकू विमान मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। उन्होंने याचिका में रफ़ाल सौदे की जांच की मांग की है।
 
 
याचिका में ये भी दावा किया गया है कि सीबीआई पर बहुत अधिक दबाव है जिसके कारण वह निष्पक्ष तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है। साथ ही केंद्र को निर्देश दिया जाए कि जांच से जुड़े अफ़सरों का तबादला न किया जाए और न उन्हें डराया जाए।
 
 
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके अरुण शौरी से रफ़ाल विमान और सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को ​छुट्टी पर भेजे जाने के मसले पर बीबीसी संवाददाता दिलनवाज पाशा ने बात की। अरुण शौरी ने क्या कहा, पढ़ें यहां:
 
 
डरने की तीन वजहें
ये कितनी हैरानी की बात है कि जो नरेंद्र मोदी सभी को सीबीआई के डंडे से डरा रहे थे वो अब ख़ुद सीबीआई से डरे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डरने की तीन वजहें हैं। सबसे पहले तो उन्हें ये डर था कि सीबीआई में उनके ख़ास आदमी राकेश अस्थाना पर अगर अधिक दबाव पड़ा तो वो राज़ खोल सकते हैं। दूसरा डर ये कि सीबीआई का वो जिस तरह से इस्तेमाल करना चाह रहे थे कर नहीं पा रहे थे।
 
 
उनका तीसरा डर ये था कि अगर आलोक वर्मा जैसा स्वतंत्र अधिकारी राफेल पर जांच कर देता, तो क्या होता क्योंकि सीबीआई के निदेशक को जांच शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री या किसी और की अनुमति की आवश्यक्ता नहीं होती है। नरेंद्र मोदी की ये चिंता भी रही होगी कि अगर आलोक वर्मा ने राफेल पर जांच शुरू कर दी तो उनके लिए मुश्किल आ सकती है। शायद इसकी वजह ये है कि आलोक वर्मा दबने या डरने वाले नहीं थे।
 
 
इन सब से बचने के लिए आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा गया है। लेकिन इससे भी सरकार का बहुत ज़्यादा भला नहीं होने वाला है बल्कि उन्होंने एक पहाड़ अपने ऊपर गिरा लिया है। आगे चलकर इसके कई नतीजे होंगे।
 
 
राफेल पर चिट्ठी
सरकार ने जिस तरह से कई अधिकारियों को कालापानी यानी पोर्ट ब्लेयर भेजा है वो दर्शाता है कि सरकार डरी हुई है। शायद उनको पता लगा है कि आलोक वर्मा राफेल पर कुछ करने वाले हैं या एफ़आईआर होने वाली है। हो सकता है कि रक्षा मंत्रालय की ओर से प्रधानमंत्री कार्यालय को कुछ बताया गया हो।
 
 
ऐसा भी हो सकता है कि राफेल से जुड़े दस्तावेज़ हासिल करने के लिए सीबीआई ने कोई चिट्ठी रक्षा मंत्रालय को भेजी हो जिससे प्रधानमंत्री कार्यालय में हड़कंप मचा हो। हमारे पास इस बात के पुख़्ता सबूत तो नहीं हैं लेकिन हमने ऐसी चिट्ठी के बारे में सुना है।
 
 
जब इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी तो हो सकता है कि ऐसी बातें सामने आएं। सुप्रीम कोर्ट में ये सवाल उठेगा कि क्या आलोक वर्मा ने राफेल को लेकर कोई चिट्ठी लिखी। ये सवाल भी उठेगा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे मिले तो उन्होंने उनसे राफेल के बारे में कुछ कहा या नहीं कहा।
 
 
अगर इसके तार राफेल मामले से जुड़ते हैं तो ये सुप्रीम कोर्ट में सामने आ जाएगा। अगर प्रधानमंत्री ने इसमें हस्तक्षेप किया है तो ये जांच में हस्तक्षेप करना है जो हमारे क़ानून की नज़र में अपराध है।
 
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सरकार की छवि हुई कमज़ोर
पिछले एक से डेढ़ साल में भ्रष्टाचार को लेकर सरकार की छवि बहुत कमज़ोर हुई है। बल्कि अब सरकार की कोई छवि रह ही नहीं गई है क्योंकि जो लोग भारत से पैसा लेकर भागे हैं वो इन्हीं के परिवार के सदस्य हैं।
 
 
जिस तरह से अमित शाह के बेटे के बारे में उनके कॉरपोरेट बैंक से जुड़ी जानकारियां सामने आईं, तो इससे सरकार और भारतीय जनता पार्टी की छवि पर असर हुआ है। भारत के हज़ारों करोड़ रुपए लेकर जो लोग विदेश गए हैं, जैसे नीरव मोदी या मेहुल चौकसी वो आम लोगों के दोस्त नहीं हैं बल्कि सरकार में शामिल बड़े लोगों के दोस्त हैं।
 
 
सरकार की पकड़ ढीली
जिस तेज़ी से सीबीआई के अंतरकलह पर घटनाक्रम बदल रहा है वो दर्शाता है कि सरकार की पकड़ ढीली हुई है। एक समय कहा जाता था कि नरेंद्र मोदी की शासन और प्रशासन पर पकड़ मज़बूत है। इस घटनाक्रम के बाद ये कहा जा सकता है कि उनकी वो साख चली गई है।
 
 
पिछले छह महीने में रह-रहकर ऐसी चीज़ें या बेवकूफ़ियां सामने आईं हैं जिनसे पता चलता है कि सरकार का अब वो नियंत्रण नहीं है। इसकी एक वजह ये हो सकती है कि वो किसी से बात नहीं करते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि चाहे कोई और कुछ कर रहा है, लेकिन वो प्रधानमंत्री के ही सिर पर पड़ रही है।
 
 
सरकार की सफ़ाई
इससे पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजे जाने पर विपक्ष की आलोचनाओं को बकवास बताया और कहा कि सीवीसी (केंद्रीय सतर्कता आयोग) की सिफ़ारिश पर ही सीबीआई आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजने का फ़ैसला लिया गया है।
 
 
जेटली ने कहा कि दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं और इसकी निष्पक्ष जांच के लिए किसी तीसरे आदमी ज़रूरत थी। वित्त मंत्री ने कहा कि जांच पूरी होने तक दोनों अधिकारियों को कार्यभार से मुक्त किया गया। जेटली ने कहा कि सरकार ने जो फ़ैसला लिया है वो पूरी तरह से क़ानूनसम्मत है।
 
 
विपक्ष का पलटवार
अरुण जेटली की प्रेस कॉन्फ़्रेस के बाद कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी एक प्रेस वार्ता की और सरकार के दिए तर्कों का जवाब दिया। सिंघवी ने सरकार के फ़ैसले और उसके तर्कों को ख़ारिज करते हुए कहा, ''मोदी सरकार ने असंवैधानिक रूप से सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को हटाया। सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर भेज कर इन लोगों ने देश के सर्वोच्च न्यायालय का अपमान किया है। नियमों के मुताबिक़ दो वर्ष तक सीबीआई प्रमुख को पद से हटाया ही नहीं जा सकता। इसका प्रावधान सीबीआई एक्ट के सेक्शन 4 (a) और 4 (b) में है।''
 
 
सिंघवी ने कहा, ''जिस अधिकारी पर वसूली करने का आरोप है, उसका सरकार ने साथ दिया और अभियोजक को ही हटा दिया। ये गुजरात का नया मॉडल है। प्रधानमंत्री मोदी आज सीधा सीबीआई के अफ़सरों को बुलाते हैं। फ़ौजदारी मामले में पीएम हस्तक्षेप कर रहे हैं। ये क़ानून का ख़ुले तौर पर उल्लंघन है।''
 
 
उन्होंने कहा, ''सीवीसी का पावर नियुक्त करना या हटाना नहीं है। जो बीजेपी ज्ञान दे रही है। वो वही ज्ञान है जो नोटबंदी और आर्थिक मामलों और माल्या पर दिया जाता। सीवीसी एक सुपरवाइज करने वाली संस्था है। ये चुनाव नेता प्रतिपक्ष, जज और प्रधानमंत्री ही कर सकते हैं। ये लोग सीवीसी का दुरुपयोग कर रहे हैं। ये सीवीसी का अधिकार क्षेत्र नहीं है।''
 
 
इस बीच ज़िम्मेदारियां वापस लिए जाने के मसले पर आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है जिसकी सुनवाई शुक्रवार को होगी। नागेश्वर राव ने अंतरिम पद संभालते ही सीबीआई के दफ़्तर की 10वीं और 11वीं मंजिल को सील करवा दिया। यहां आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के दफ़्तर हैं।
 
 
सुब्रमण्यम स्वामी का सरकार पर हमला
उधर सीबीआई पर मोदी सरकार के रुख़ को लेकर बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने ही सरकार पर निशाना साधा है। स्वामी ने ट्वीट कर कहा, ''सीबीआई में क़त्लेआम के खिलाड़ी अब ईडी के अधिकारी राजेश्वर सिंह का निलंबन करने जा रहे हैं ताकि पीसी के ख़िलाफ़ आरोपपत्र दाखिल ना हो। अगर ऐसा हुआ तो भ्रष्टाचार से लड़ने की कोई वजह नहीं है, क्योंकि मेरी ही सरकार लोगों को बचा रही है। ऐसे में मैंने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जितने मुक़दमे दायर किए हैं सब वापस ले लूंगा।''
 

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