Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

रूस के मिसाइल हमले के बाद अनाथों का गांव बनी यूक्रेन की ये जगह

हमें फॉलो करें ukraine village

BBC Hindi

, शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024 (07:55 IST)
झन्ना बेज़पियात्चुक, बीबीसी यूक्रेनी सेवा, ह्रोजा से
दिमा का परिवार उत्तर-पूर्व यूक्रेन के ह्रोजा में रहता था। उनके माता-पिता और दादा-दादी की एक मिसाइल हमले में मौत हो गई थी।
 
16 साल के दिमा ने बीबीसी को बताया, 'मैं इसे पूरी तरह से समझ नहीं पाया। लेकिन मैं अब अपने घर का जिम्मेदार व्यक्ति हूं। मुझे अपनी छोटी बहन के लिए अफसोस होता है। यह सब होने से पहले जब मैं उसे गले लगाता था, तो उसे पसंद नहीं आता था। लेकिन अब वो मुझे हमेशा गले से लगाकर रखना चाहती है।'
 
5 अक्टूबर 2023 को एक मिसाइल ह्रोजा के एक कैफे पर आकर गिरी थी। इस हमले में 59 लोगों की मौत हो गई थी।
 
इस गांव में रहने वाले हर परिवार का कम से कम एक व्यक्ति एंड्री कोज़ीर के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ था। एंड्री यूक्रेन की सेना में स्वयंसेवक के रूप में भर्ती हुए थे।
 
इस हमले में इस गांव की आबादी के करीब पांचवें हिस्से की मौत हो गई थी। मारे गए अधिकांश लोगों के बच्चे भी थे। ऐसे में अब ह्रोजा की पहचान अनाथों के गांव के रूप में बन गई है।
 
ह्रोजा गांव पर हुआ यह हमला रूसी आक्रमण के बाद से नागरिकों पर हुआ सबसे घातक हमला था। रूस ने दो साल पहले यूक्रेन पर हमला शुरू किया था।
 
रूस ने कभी भी इस हमले पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन रूस की सरकारी मीडिया के मुताबिक सेना का कहना है कि उन्होंने उस इलाके में सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया।
 
यूक्रेन का कहना है कि वहां कोई सैन्य ठिकाना नहीं था। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने भी इसका समर्थन किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वहां सैनिकों की मौजूदगी या किसी वैध सैनिक लक्ष्य का संकेत नहीं था।
 
अल्हड़ किशोर से अनाथ तक
युद्ध शुरू होने से पहले दिमा एक आम किशोर की तरह अपने माता-पिता के साथ रहते थे। अपने दोस्तों के साथ घूमते-फिरते थे और कभी-कभी अपनी बहनों से झगड़ा करते थे।
 
अब वो गांव के बाहर बने कब्रिस्तान में अपने माता-पिता और दादा-दादी की कब्र पर पड़े गुलदस्तों को निहारते हैं। वहां अब भी कब्र का पत्थर नहीं लगा है। लेकिन मरने वालों के मुस्कराते चेहरों के साथ लकड़ी का एक क्रॉस लगा हुआ है।
 
दिमा का गांव रूस की सीमा के पास यूक्रेन के खारकीएव इलाके में है। यहां से 30 किमी दूर कुप्यंस्क कस्बे में भयानक लड़ाई चल रही है। यूक्रेन के राष्ट्रीय झंडे के रंग नीले-पीले रंग के फूल बाहर लगाए गए हैं। दूर से आने वाली धमाकों की आवाज से ही शांति में खलल पड़ता है।
 
तबाह होकर दिमा और उनकी बहनें मदद के लिए अपने नाना-नानी के पास पहुंचे।
 
दिमा के नाना 62 साल के वालेरी कहते हैं, ''हमले में बहुत से लोग मारे गए थे। गांव अचानक से खाली हो गया था। उस दर्द को भुलाया नहीं जा सकता है। हमारे घर में चार ताबूत थे। मेरा दिमाग यह समझता है कि क्या हुआ था, लेकिन मेरा दिल इस पर आज भी विश्वास नहीं कर पाता है।''
 
वो मुझे अपनी बेटी ओल्गा और दामाद अनातोली की अंतिम तस्वीर दिखाते हैं। वालेरी कहते हैं कि वे दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे। यह एक अच्छा घर था।
 
कर दी थी मौत की भविष्यवाणी
वालेरी कहते हैं कि एक बार अनालोती ने मुझसे मजाक में कहा था कि अगर उनकी मौत पहले हो गई तो ओल्गा उससे तेजी से उबर जाएगी और दूसरी शादी कर लेगी। लेकिन ओल्गा ने कहा था, '' नहीं अनातोली, हम दोनों की मौत एक ही दिन होगी। ऐसा तब हुआ था जब वो भविष्य में देखती थी।'' यह कहकर वालेरी बह रहे आंसूओं को पोछने लगते हैं।
 
वालेरी ने अक्टूबर हमले के बाद के हालात को एक तेज गति से चलने वाली डरावनी फिल्म बताया। वो अपनी बेटी को खोजने के लिए घटनास्थल की ओर दौड़े थे, लेकिन समय पर नहीं पहुंच पाए थे।
 
ओल्गा की मौत के समय वहां मौजूद एक महिला ने उनसे कहा, "उसके अंतिम शब्द थे, 'मैं जिंदा रहना चाहती हूं'।"
 
वालेरी और उनकी पत्नी लुबोव ने दिमा, उनकी 17 साल की बड़ी बहन डेरिना और 10 साल की छोटी बहन नास्त्या को गोद ले लिया।
 
वो कहते हैं, "नाती-नातिनों को यहीं मेरे साथ रहना था। मैं इस परिवार को टूटने नहीं दे सकता था।" उन्होंने कहा कि उन्हें उनकी चिंता थी, नहीं तो बच्चे अनाथालय जा सकते थे।
 
हालांकि वालेरी मानते हैं कि अपने नाती-नातिनों की देखभाल करना हमेशा आसान नहीं होता है, लेकिन इस कठिन समय में वे एक-दूसरे के लिए मौजूद हैं।
 
दिमा बगीचे में परिवार के सूअरों की देखभाल में मदद करत हैं। डेरिना ने खाना बनाना सीखा और नास्त्या बहुत विचारशील और दयालु है।
 
कितने बच्चे हुए हैं अनाथ
इस हमले में गांव के 14 बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया। इनमें से आठ बच्चों के माता-पिता दोनों की मौत हो गई। इन सभी मामलों में उनके दादा-दादी या नाना-नानी ने उनकी देखभाल की जिम्मा उठाया, जिससे उन्हें अनाथालय न जाना पड़े।
 
हमले के बाद से अधिकांश लोग अब भी डरे हुए हैं। इस इलाके में रहने वाली डायना नोसोवा बताती हैं, "मैं उन अंतिम संस्कार को कभी नहीं भूल सकती हूं, जब ये बच्चे एक-दूसरे का हाथ थामे चुपचाप और अकेले खड़े थे। मेरा दिल टूट गया था।"
 
इस हमले में अनाथ हुए कुछ बच्चों ने सुरक्षित क्षेत्रों में जाने का फैसला किया। इनमें 14 साल के व्लाद भी शामिल थे। हमले में अपनी माँ, दादा, चाचा और आठ साल के चचेरे भाई की मौत के बाद वे अपनी चाची के साथ पश्चिमी यूक्रेन में रहने चले गए।
 
एक वीडियो कॉल पर वो अपनी दादी से कहते हैं, "मुझे आपकी बहुत याद आती है।" उनके यह कहने पर उनकी दादी वेलेंटीना कहती हैं, "मुझे भी,"
 
इस हमले में इतने लोगों को खोने के बाद भी वेलेंटीना ने गांव में रहने का फैसला किया।
 
किसने दी थी रूस को जानकारी
मैं 57 साल की उस महिला के साथ उस गांव में घूमने जाता हूँ, जहाँ उन्होंने अपना पूरा जीवन बिताया है। लेकिन अब चीजें बदल गई हैं।
 
जब हम उस क्षतिग्रस्त इमारत के पास से गुजर रहे थे, जहां मिसाइल गिरी थी तो उन्होंने मुझसे कहा, 'यह बहुत डरावनी जगह है।'

वो कहती हैं, 'यह कठिन है, जब आप जानते हैं कि आपके बच्चे यहां जमीन पर पड़े हुए थे। उनकी यहां मौत हुई है।'
 
वेलेंटीना कहती हैं कि उन्हें अपने पालतू जानवरों से सुकून मिलता है, इनमें दो कुत्ते और स्टीफन नाम की एक बिल्ली शामिल है। वो कहती हैं कि अब उनकी प्राथमिकता व्लाद है।
 
वह चाहती हैं कि उसे अच्छी शिक्षा मिले। वह उसे बार-बार वीडियो कॉल करती हैं और आईटी की एक्सट्रा क्लास के लिए उसे पैसे देती हैं। वह चाहती हैं कि व्लाद सुरक्षित रहे। उन्हें इस बात की खुशी है कि व्लाद अब खारकीएव इलाके में नहीं है।
 
फरवरी 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद से खारकीएव को हिंसा से बहुत कम राहत मिली है। युद्ध शुरू होने के बाद रूसी सेना ने ह्रोजा समेत इस इलाके पर कब्जा कर लिया था। सितंबर 2022 में हुई एक बड़ी जवाबी लड़ाई के बाद यूक्रेन ने इस पर फिर से कब्जा किया। अब जब लड़ाई जारी है तो कई बार रूसी इसे ड्रोन, बम और मिसाइल से निशाना बनाते हैं।
 
यूक्रेन को संदेह है कि दो पूर्व यूक्रेनी नागरिक, जो रूस की तरफ चले गए थे, उन्होंने सेना को ह्रोजा के बारे में जानकारी दी थी। बीबीसी इसकी पुष्टि नहीं कर सकता लेकिन कई यूक्रेन वासियों को अन्य मामलों में रूस को जानकारी देने का दोषी ठहराया जा चुका है।
 
ये लोग वे अग्रिम मोर्चे के करीब के इलाकों में रहते थे, जिस पर पहले रूस का कब्जा था।
 
आइए दिमा के घर लौटते हैं। उनकी बड़ी बहन ने दीवार पर अपने मारे गए प्रियजनों की तस्वीरें लगाई हैं। जैसे-जैसे वे अपने जीवन को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं, उनके दादा वालेरी सकारात्मक बने रहते हैं। वे कहते हैं, "सब ठीक है।"
 
इस युद्ध का अंत नजर नहीं आ रहा है। रूस पड़ोसी कस्बे कुपयांस्क में और अधिक सैनिक जुटा रहा है।
 
हालांकि इतना कुछ होने के बाद भी वालेरी उत्साहित होने पर जोर देते हैं। वो कहते हैं कि अगर मैं देखता हूं कि मेरे पोते-पोतियां बिल्कुल ठीक हैं, वे मुस्कुरा रहे हैं, तो मुझे राहत महसूस होती है। वे कहते हैं कि जब तक आप जीवित हैं, आपको उम्मीद रखनी चाहिए।
 
(इस खबर के लिए दिमित्रो व्लासोव और हेलेन डेवलिन ने भी रिपोर्टिंग की)

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या भारत में निजी कंपनियां भी करेंगी परमाणु ऊर्जा में निवेश