Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाले दिवंगत साकेतवासी महंत परमहंस रामचंद्र दास जी को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपतराय ने उनके स्थान दिगंबर अखाड़ा पहुंचकर उनकी तस्वीर के सामने 22 जनवरी श्रीराम जन्मभूमि प्राण-प्रतिष्ठा के लिए आमंत्रण दिया।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र महासचिव चम्पत राय सायंकाल दिगंबर अखाड़ा पहुंचकर महंत सुरेश दास के स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त की और फिर साकेतवासी परमहंस रामचंद्र दास महाराज के चित्र पर निमंत्रण पत्र को समर्पित किया। इस दौरान दिगंबर अखाड़ा के उत्तराधिकारी महंत रामलखन दास, दिगंबर अखाड़ा वडोदरा के महंत गंगा दास, शरद शर्मा आदि उपस्थित रहे।
कौन थे महंत परमहंस : फक्कड़ी स्वभाव और दिल के बड़े कहे जाने वाले दिवंगत महंत परमहंस रामचंद्र दास का जिनका जन्म 1912 में हुआ और 2003 मे स्वर्गवास हुआ। इन्होंने 17 वर्ष कि आयु में संन्यास ले लिया था। उन्होंने अपना पूरा जीवन राम मंदिर आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया था। महंत जी सन 1949 से ही राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रहे और 1975 में दिगंबर अखाड़ा का पद संभाला। परमहंस जी पूर्ण रूप से बैरागी साधु थे।
उन्होंने कहा था कि मेरे जीवन की तीन अभिलाषाएं हैं। पहली- राम मंदिर, कृष्ण मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण, दूसरी- भारत में गौहत्या बंद हो, तीसरी - भारत को अखंड रूप में देखना चाहता हूं, इसके लिए मैं जीवन भर संघर्ष करता रहूंगा। मरने पर मैं मोक्ष भी नहीं चाहता। परमहंस जी ने श्रीराम जन्मभूमि में पूजा-अर्चना करने के लिए 1950 में न्यायलय मे प्रार्थना पत्र दिया था, जिस पर अदालत ने अनुकूल आदेश दिया था और निषेधाज्ञा जारी की थी।
77वें संघर्ष की शुरुआत : श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति के 77वें संघर्ष की शुरुआत अप्रैल, 1984 की प्रथम धर्म संसद (नई दिल्ली) में हुई, जिसमें अयोध्या, मथुरा, काशी के धर्म स्थानों की मुक्ति का प्रस्ताव स्वर्गीय दाऊदयाल खन्ना द्वारा रखा गया, जो सर्वसम्मति से पारित हुआ। दिगंबर अखाड़ा, अयोध्या में परमहंस रामचन्द्र दास जी की अध्यक्षता में 77वें संघर्ष की कार्य योजना के संचालन हेतु प्रथम बैठक हुई थी, जिसमें श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ। परमहंस जी सर्वसम्मति से यज्ञ समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष चुने गए।
जन्मभूमि को मुक्त कराने हेतु जन-जागरण के लिए सीतामढ़ी से अयोध्या तक राम-जानकी रथ यात्रा का कार्यक्रम भी इसी बैठक में तय हुआ था। उत्तर प्रदेश में भ्रमण के लिए अयोध्या से भेजे गए 6 राम-जानकी रथों का पूजन परमहंस जी द्वारा अक्टूबर 1985 में सम्पन्न हुआ था। महाराज की दूरदर्शिता के परिणामस्वरूप जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी शिवरामाचार्य जी महाराज के द्वारा श्रीराम जन्मभूमि न्यास की स्थापना हुई।
द्वितीय धर्म संसद : दिसंबर 1985 की द्वितीय धर्म संसद उडुपी (कर्नाटक) में परमहंस जी की अध्यक्षता में हुई, जिसमें निर्णय हुआ कि यदि 8 मार्च 1986 को महाशिवरात्रि तक राम जन्मभूमि पर लगा ताला नहीं खुला तो महाशिवरात्रि के बाद ताला खोलो आंदोलन, ताला तोड़ो में बदल जाएगा और 8 मार्च के बाद प्रतिदिन देश के प्रमुख धर्माचार्य इसका नेतृत्व करेंगे।
रामचन्द्र दास जी महाराज ने अयोध्या में अपनी इस घोषणा से सारे देश में सनसनी फैला दी कि 8 मार्च 1986 तक श्रीराम जन्मभूमि का ताला नहीं खुला तो मैं आत्मदाह करूंगा। इसका परिणाम यह हुआ कि 1 फरवरी 1986 को ही ताला खुल गया। जनवरी, 1989 में प्रयाग महाकुंभ के अवसर पर आयोजित तृतीय धर्मसंसद में शिला पूजन एवं शिलान्यास का निर्णय परमहंस जी की उपस्थिति में ही लिया गया था।
इस अभिनव शिलापूजन कार्यक्रम ने सम्पूर्ण विश्व के रामभक्तों को जन्मभूमि के साथ प्रत्यक्ष जोड़ दिया। श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष जगद्गुरु रामानंदाचार्य पूज्य स्वामी शिवरामाचार्य जी महाराज का निधन हो जाने के पश्चात् अप्रैल, 1989 में परमहंस जी महाराज को श्रीराम जन्मभूमि न्यास का कार्याध्यक्ष घोषित किया गया।
नवंबर 1989 में शिलान्यास : परमहंस जी महाराज की दृढ़ संकल्प शक्ति के परिणामस्वरूप ही निश्चित तिथि, स्थान एवं पूर्व निर्धारित शुभ मुहूर्त 9 नवम्बर 1989 को शिलान्यास कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। 30 अक्टूबर 1990 की कारसेवा के समय अनेक बाधाओं को पार करते हुए अयोध्या में आए हजारों कारसेवकों का उन्होंने नेतृत्व व मार्गदर्शन भी किया। 2 नवम्बर 1990 को परमहंस जी का आशीर्वाद लेकर कारसेवकों ने जन्मभूमि के लिए कूच किया। उस दिन हुए बलिदान के वे स्वयं साक्षी थे। बलिदानी कारसेवकों के शव दिगम्बर अखाड़े में ही लाकर रखे गए थे।
अक्टूबर 1982 में दिल्ली की धर्म संसद में 6 दिसम्बर की कारसेवा के निर्णय में आपने मुख्य भूमिका निभाई और स्वयं अपनी आंखों से उस ढांचे को बिखरते हुए देखा था, जिसका स्वप्न वह अनेक वर्षों से अपने मन में संजोए थे। अक्टूबर 2000 में गोवा में केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में परमहंस जी को मन्दिर निर्माण समिति का अध्यक्ष चुना गया। जनवरी, 2002 में अयोध्या से दिल्ली तक की चेतावनी संत यात्रा का निर्णय परमहंस जी का ही था। 27 जनवरी 2002 को प्रधानमंत्री से मिलने गए संतों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी आपने ही किया था।
मार्च 2002 के पूर्णाहुति यज्ञ के समय शिलादान पर अदालत द्वारा लगाई गई बाधा के समय 13 मार्च को परमहंस की इस घोषणा ने सारे देश व सरकार को हिलाकर रख दिया था कि अगर मुझे शिलादान नहीं करने दिया गया तो मैं रसायन खाकर अपने प्राण त्याग दूंगा।
आंदोलन को तीव्र गति से चलाने के लिए सितंबर, 2002 को केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल की लखनऊ बैठक में परमहंस जी की योजना से ही गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ जी महाराज की अध्यक्षता में श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण आंदोलन उच्चाधिकार समिति का निर्माण हुआ। 29-30 अप्रैल 2003को अयोध्या में आयोजित उच्चाधिकार समिति की बैठक में परमहंस जी के परामर्श से ही श्रीराम संकल्पसूत्र संकीर्तन कार्यक्रम की योजना का निर्णय हुआ। वे बीमारी की अवस्था में भी वे अपने संकल्प को दृढ़ता के साथ व्यक्त एवं देश, धर्म-संस्कृति की रक्षा हेतु समाज का मार्गदर्शन करते रहे।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala