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पं. हेमन्त रिछारिया

ज्योतिषाचार्य पं. हेमंत रिछारिया का शोध एवं विश्लेषण 
 
कई व्यक्तियों को रत्न धारण करने का शौक होता है। कुछ तथाकथित ज्योतिषी भी उनके इस शौक के लिए उत्तरदायी होते हैं जिनका रत्न विक्रेताओं के साथ बड़ा घनिष्ठ संबंध होता है। मैंने देखा है जब मैं किसी को रत्न ना धारण करने का परामर्श देता हूं तो उनमें से कुछ आश्चर्यचकित हो जाते हैं वहीं कुछ मायूस हो जाते हैं। सामान्यतः ज्योतिषीगण राशि रत्न, लग्नेश का रत्न, विवाह हेतु गुरू-शुक्र के रत्न धारण करने की सलाह देते हैं। 
 
वर्तमान में लॉकेट के रूप में एक नया फैशन चल पड़ा है जिसमें लग्नेश,पंचमेश व नवमेश के रत्न होते हैं। मेरे अनुसार ऐसा करना अनुचित है। रत्नों के धारण करने में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। किसी रत्न को धारण करने से पूर्व उसके अधिपति ग्रह की जन्मपत्रिका में स्थिति एवं अन्य ग्रहों के साथ उसके संबंध का गहनता से परीक्षण करना चाहिए भले ही वे रत्न लग्नेश या राशिपति के ही क्यों ना हों। 
 
 
यह भी देखना आवश्यक है कि जिस ग्रह का रत्न आप धारण कर रहे हैं वह जन्मपत्रिका में किस प्रकार के योग का सृजन कर रहा है या किस ग्रह की अधिष्ठित राशि का स्वामी है। यदि जन्मपत्रिका में एकाधिक रत्नों के धारण की स्थिति बन रही हो तो वर्जित रत्नों का भी पूर्ण ध्यान रखना अति-आवश्यक है। 
 
पंचधा मैत्री चक्र के अनुसार ग्रहमैत्री की रत्न धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह सर्वथा गलत धारणा है कि रत्न सदैव ग्रह की शांति के लिए धारण किया जाता है। वास्तविकता इससे ठीक विपरीत है रत्न हमेशा शुभ ग्रह के बल में वृद्धि करने के लिए धारण किया जाता है। अनिष्ट ग्रह की शांति के लिए उस ग्रह के रत्न का दान किया जाता है।

कुछ रत्न आवश्यकतानुसार ग्रह शांति के उपरांत अल्प समयावधि के लिए धारण किए जाते हैं जिनका निर्णय जन्मपत्रिका के गहन परीक्षण के पश्चात किया जाता है। अतः रत्न धारण करने से पूर्व अत्यंत सावधानी रखें। किसी विद्वान ज्योतिषी से जन्मपत्रिका के गहन परीक्षण के उपरान्त ही रत्न धारण करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है।

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