ईश्वरवादियों के अनुसार किसी भी वृक्ष, पौधे, पहाड़, पशु, पत्थर आदि की पूजा या प्रार्थना करना पाप है तब सवाल उठता है कि हिन्दू धर्म में वृक्ष की पूजा क्यों की जाती है? क्या वृक्ष की पूजा करने से कोई लाभ मिलेगा या वृक्ष हमारी मन्नत पूर्ण करते हैं?
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता। इसी तरह धर्म शास्त्रों में सभी तरह से वृक्ष सहित प्रकृति के सभी तत्वों के महत्व की विवेचना की गई है।
हिन्दू धर्म में वृक्ष में देवताओं का वास माना गया है। क्या सचमुच वृक्ष में देवताओं का वास होता है या कि वृक्ष महज एक वृक्ष से ज्यादा कुछ नहीं जिसे व्यक्ति कभी भी काटकर जला सकता है और वह वृक्ष उस व्यक्ति का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। क्या यह सच है? आखिर वृक्षों की पूजा के पीछे क्या है वैज्ञानिक, धार्मिक और प्राकृतिक कारण?
वृक्ष का होना कितना लाभदायक
1. वृक्ष हमारे जीवन और धरती के पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वृक्ष से एक और जहां ऑक्सीजन का उत्पादन होता है तो दूसरी ओर यही वृक्ष धरती के प्रदूषण को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दरअसल, यह धरती के पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलन प्रदान करते हैं।
2. वृक्ष औषधीय गुणों का भंडार होते हैं। नीम, तुलसी, जामुन, आंवला, पीपल, अनार आदि अनेक ऐसे वृक्ष हैं, जो हमारी सेहत को बरकरार रखने में मददगार सिद्ध होते हैं।
3. वृक्ष से हमें भरपूर भोजन प्राप्त होता है, जैसे आम, अनार, सेवफल, अंगूर, केला, पपीता, चीकू, संतरा आदि ऐसे हजारों फलदार वृक्षों की जितनी तादाद होगी, उतना भरपूर भोजन प्राप्त होगा। आदिकाल में वृक्ष से ही मनुष्य के भोजन की पूर्ति होती थी।
4. वृक्ष के आसपास रहने से जीवन में मानसिक संतुष्टि और संतुलन मिलता है। वृक्ष हमारे जीवन के संतापों को समाप्त करने की शक्ति रखते हैं। माना कि वृक्ष देवता नहीं होते लेकिन उनमें देवताओं जैसी ही ऊर्जा होती है। हाल ही में हुए शोधों से पता चला है कि नीम के नीचे प्रतिदिन आधा घंटा बैठने से किसी भी प्रकार का चर्म रोग नहीं होता। तुलसी और नीम के पत्ते खाने से किसी भी प्रकार का कैंसर नहीं होता। इसी तरह वृक्ष से सैकड़ों शारीरिक और मानसिक लाभ मिलते हैं।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमारे ऋषि-मुनियों ने पर्यावरण संरक्षण हेतु वृक्ष से संबंधित अनेक मान्यताओं को प्रचलन में लाया।
उपरोक्त वैज्ञानिक कारणों से हमारे पूर्वज भली-भांति परिचित थे और इस तरह वे पारिस्थितिकी संतुलन के लिए और उपरोल्लिखित उद्देश्यों की रक्षा के लिए वृक्ष को महत्व देते थे, लेकिन उन्हें यह भी मालूम था कि मनुष्य आगे चलकर इन वृक्षों का अंधाधुंध दोहन करने लगेगा इसलिए उन्होंने वृक्षों को बचाने के लिए प्रत्येक वृक्ष का एक देवता नियुक्त किया और जगह-जगह पर प्रमुख वृक्षों के नीचे देवताओं की स्थापना की।
क्या वृक्ष में सचमुच देवता होते हैं?
गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूं।'
।।मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रूपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
भावार्थ- अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण 'अश्वत्त्थ' नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है। -पुराण
दरअसल, वृक्ष हमारी धरती पर जीवन का प्रथम प्रारंभ हैं। जीवों ने या कहें आत्मा में सर्वप्रथम प्राणरूप में खुद को वृक्ष के रूप में ही अभिव्यक्त किया था। जब धरती पर स्वतंत्र जीव नहीं थे, तब वृक्ष ही जीव थे। यही जीवन का विस्तार करने वाले थे, जो आज भी हैं।
इसके बाद जब चेतना परम पद को प्राप्त कर लेती है, तो वह वृक्षों जैसी ही स्थिर हो जाती है। अनंत ऐसी आत्माएं हैं जिन्होंने वृक्ष को अपना शरीर बनाया है। वृक्ष इस धरती पर ईश्वर के प्रथम प्रतिनिधि या दूत हैं। वेद शास्त्रों और पुराणों को पढ़ने पर इस बात का खुलासा होता है।
।।तहं पुनि संभु समुझिपन आसन। बैठे वटतर, करि कमलासन।।
भावार्थ- अर्थात कई सगुण साधकों, ऋषियों यहां तक कि देवताओं ने भी वटवृक्ष में भगवान विष्णु की उपस्थिति के दर्शन किए हैं। -रामचरित मानस
क्या वृक्ष के समक्ष खड़े होकर मन्नत मांगने से पूर्ण होती है...
धरती के दो छोर हैं- एक उत्तरी ध्रुव और दूसरा दक्षिणी ध्रुव। वृक्ष इन दोनों ध्रुवों से कनेक्ट रहकर धरती और आकाश के बीच ऊर्जा का एक सकारात्मक वर्तुल बनाते हैं। वृक्ष का संबंध या जुड़ाव जितना धरती से होता है उससे ज्यादा कई गुना आकाश से होता है।
वैज्ञानिक शोधों से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि धरती के वृक्ष ऊंचे आसमान में स्थित बादलों को आकर्षित करते हैं। जिस क्षेत्र में जितने ज्यादा वृक्ष होंगे, वहां वर्षा उतनी ज्यादा होगी। धरती के वर्षा वनों के समाप्त होते जाने से धरती पर से वर्षा ऋतु का संतुलन भी बिगड़ने लगा है जिसके चलते कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ के नजारे देखने को मिलते हैं। खैर, यह तो सिद्ध होता है कि वृक्षों का संबंध आकाश से है।
यदि आप किसी प्राचीन या ऊर्जा से भरपूर वृक्षों के झुंड के पास खड़े होकर कोई मन्नत मांगते हो तो यहां आकर्षण का नियम तेजी से काम करने लगता है। वृक्ष आपके संदेश को ब्रह्मांड तक फैलाने की क्षमता रखते हैं और एक दिन ऐसा होता है जबकि ब्रह्मांड में गया सपना हकीकत बनकर लौटता हैं।
वैज्ञानिक कहते हैं, मानव मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग 60 हजार विचार आते हैं। उनमें से ज्यादातर नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचारों का पलड़ा भारी है तो फिर भविष्य भी वैसा ही होगा और यदि मिश्रित विचार हैं तो मिश्रित भविष्य होगा। जो भी विचार निरंतर आ रहा है वह धारणा का रूप धर लेता है।
ब्रह्मांड में इस रूप की तस्वीर पहुंच जाती है फिर जब वह पुन: आपके पास लौटती है तो उस तस्वीर अनुसार आपके आसपास वैसे घटनाक्रम निर्मित हो जाते हैं अर्थात योगानुसार विचार ही वस्तु बन जाते हैं। यदि आप निरंतर वृक्षों की सकारात्मक ऊर्जा के वर्तुल में रहते हैं तो आपके सोचे सपने सच होने लगते हैं इसीलिए वृक्षों को कल्पवृक्ष की संज्ञा दी गई है।