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Shravani upakarma 2024: श्रावणी उपाकर्म क्या होता है, कैसे किया जाता है सावन पूर्णिमा के दिन

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WD Feature Desk

, शुक्रवार, 16 अगस्त 2024 (16:44 IST)
shravani upakarma
Avani Avittam 2024: सावन मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन जनेऊधारी लोग श्रावणी उपाकर्म करते हैं। वर्ष में बहुत कम मौके होते हैं जबकि यह कर्म किया जाता है। यह कार्य कुंभ स्नान के दौरान भी होता है। इस बार 19 अगस्त 2024 को रहेगा यह त्योहार। आओ जानते हैं कि क्या होता है श्रावणी उपाक्रम और कैसे किया जाता है यह कर्म।
 
क्या होता है श्रावणी उपाकर्म : इस दिन उत्तर भारत में जनेऊ बदलने का कार्य भी होता है, जिसे श्रावणी उपाकर्म कहते हैं। दक्षिण भारत में इसे अबित्तम कहा जाता है। श्रावणी उपाकर्म में यज्ञोपवीत पूजन और उपनयन संस्कार करने का विधान है। श्रावण पूर्णिमा पर रक्षासूत्र बांधने, यज्ञोपवीत धारण करने, व्रत करने, नदी स्नान करने, दान करने, ऋषि पूजन करने, तर्पण करने और तप करने का महत्व रहता है।
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कैसे करते हैं यह कर्म:-
1. किसी नदी के किनारे, किसी गुरु के सान्निध्य में या समूह में रहकर श्रावणी उपाकर्म करना चाहिए।
 
2. यह प्रत्येक हिन्दू का एक संस्कार है, चाहे वह किसी भी जाति या संप्रदाय का हो। यज्ञोपवीत सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं बल्कि कई अन्य समाज के लोग भी धारण करते हैं। सभी को जनेऊ धारण करने का अधिकार है। 
 
2. इसमें दसविधि स्नान करने से आत्मशुद्धि होती है व पितरों के तर्पण से उन्हें भी तृप्ति होती है। 
 
3. श्रावणी उपाकर में यज्ञोपवीत पूजन और उपनयन संस्कार करने का विधान है। मतलब यह कि श्रावणी पर्व पर द्विजत्व के संकल्प का नवीनीकरण किया जाता है। उसके लिए परंपरागत ढंग से तीर्थ अवगाहन, दशस्नान, हेमाद्रि संकल्प एवं तर्पण आदि कर्म किए जाते हैं।
 
4. चंद्रदोष से मुक्ति के लिए श्रावण पूर्णिमा श्रेष्ठ मानी गई है। श्रावणी उपाकर्म में पाप-निवारण हेतु पातकों, उपपातकों और महापातकों से बचने, परद्रव्य अपहरण न करने, परनिंदा न करने, आहार-विहार का ध्यान रखने, हिंसा न करने, इंद्रियों का संयम करने एवं सदाचरण करने की प्रतिज्ञा ली जाती है।
 
श्रावणी उपाकर्म के 3 पक्ष हैं- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। 
 
प्रायश्चित्त संकल्प : इसमें हेमाद्रि स्नान संकल्प। गुरु के सान्निध्य में ब्रह्मचारी गोदुग्ध, दही, घृत, गोबर और गोमूत्र तथा पवित्र कुशा से स्नानकर वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पापकर्मों का प्रायश्चित्त कर जीवन को सकारात्मकता दिशा देते हैं। स्नान के बाद ऋषिपूजन, सूर्योपस्थान एवं यज्ञोपवीत पूजन करने के विधान है।
 
संस्कार : उपरोक्त कार्य के बाद नवीन यज्ञोपवीत या जनेऊ धारण करना अर्थात आत्म संयम का संस्कार होना माना जाता है। इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है।
 
स्वाध्याय : उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय का है। इसकी शुरुआत सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, स्मृति, सदसस्पति, अनुमति, छंद और ऋषि को घृत की आहुति से होती है। जौ के आटे में दही मिलाकर ऋग्वेद के मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। इस यज्ञ के बाद वेद-वेदांग का अध्ययन आरंभ होता है। इस प्रकार वैदिक परंपरा में वैदिक शिक्षा साढ़े पांच या साढ़े छह मास तक चलती है।
 
वर्तमान समय में वैदिक शिक्षा या गुरुकुल नहीं रहे हैं तो प्रतीक रूप में यह स्वाध्याय किया जाता है। हालांकि जो बच्चे वेद, संस्कृत आदि के अध्ययन का चयन करते हैं वहां यह सभी विधिवत रूप से होता है। उपरोक्त संपूर्ण प्रक्रिया जीवन शोधन की एक अति महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक-आध्यात्मिक प्रक्रिया है।
 

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