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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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मौनी अमावस्या और सोमवती अमावस्या का दुर्लभ संयोग, दान का है विशेष महत्व

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माघ मास के सर्वप्रमुख स्नान माघी अमावस्या यानी मौनी अमावस्या इस बार चार फरवरी को है। माघ की अमावस्या तिथि 3 फरवरी की रात 11.12 बजे लग रही है, जो 4 फरवरी को देर रात 1.13 बजे तक रहेगी। इस बार मौनी अमावस्या को सोमवती अमावस्या का दुर्लभ संयोग होगा, जो लगभग पांच दशक बाद बन रहा है।
 
तिथि विशेष पर मौन रखकर प्रयागराज त्रिवेणी संगम में डुबकी अथवा काशी में दशाश्वमेधघाट पर गंगा स्नान का विशेष माहात्म्य है। सनातन धर्म में हिदी के बारह मास में तीन माह यानी माघ, कार्तिक व वैशाख पुण्य संचय के लिहाज से महापुनीत माने गए हैं। इसमें भी माघ की विशेष महत्ता शास्त्रों में बताई गई है।
 
 रामचरित मानस में तुलसीदास लिखते हैं कि 'माघ मकर गति रवि जब होई, तीरथ पतिहि आव सब कोहि। एहि प्रकार भरि माघ नहाई, पुनि सब निज निज आश्रम जाहि॥' अर्थात प्राचीन समय से ही माघ मास में सभी साधक, तपस्वी और ऋषि-मुनि आदि तीर्थराज प्रयाग आकर आध्यात्मिक साधनात्मक प्रक्रियाओं को पूर्ण कर लौटते हैं। यह परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है।
 
प्रयाग में कुंभ महापर्व का सर्वप्रमुख स्नान मौनी अमावस्या दूसरा शाही स्नान भी होता है। हालांकि कुंभ का यह तीसरा प्रमुख स्नान सोमवती अमावस्या 
 
के योग से बेहद खास होगा। जबकि कुंभ के दौरान मौनी अमावस्या पर सोमवती का संयोग यदाकदा ही देखने को मिलता है।
 
शास्त्रों में कहा गया है कि 'अश्वमेध सहस्त्राणि बाजपेय शतामिव, लक्षम्‌ प्रदक्षिणा भूमे कुंभे स्नानेति तत्फलम...' अर्थात कुंभ स्नान करने वाले धर्म प्राण जनमानस को एक हजार अश्वमेध, सौ बाजपेय यज्ञ तथा धरती की एक लाख परिक्रमा करने के बराबर पुण्य लाभ होता है।
 
कुंभ स्नान से सभी तरह के पापों का नाश और जन्म-जन्मांतर के पुण्य का संचय होता है। उसमें भी यदि मौनी अमावस्या हो तो संयोग दुर्लभ हो जाता है। मौन स्नान तिथि विशेष पर अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध आदि भी जरूर करना चाहिए, जिससे कुंभ-मौनी अमावस्या के संयोग से उन्हें भी तृप्ति मिलती है।
 
इसी दिन मौनी अमावस्या को सोमवती अमावस्या होने से व्रतीजन व्रत रह कर प्रातःकाल निर्णय सिंधु के अनुसार मौन रखकर स्नान-ध्यान करने से सहस्त्र गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है। सोमवार चंद्रमा का दिन है, इस दिन सूर्य तथा चंद्र एक ही राशि पर विराजमान रहते हैं।
 
पीपल परिक्रमा, दान और श्रीहरि के नाम अनुष्ठान पीपल वृक्ष के समीप जाकर श्रीहरि के निमित्त विधिवत पूजन का विधान है। श्रीहरि की पूजा के उपरांत पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमा की जाती है। प्रदक्षिणा के उपरांत धर्म प्राण महिलाएं यथा शक्ति 108 मिष्ठान-फलों का दान करती हैं।

वैसे मौनी अमावस्या पर कुंभ स्नान के बाद दान का भी विशेष महत्व होता है। दान में भूमि, स्वर्ण, अश्व, गज दान करें... आम जनमानस तिल से बनी सामग्री, उष्ण वस्तुएं, कंबल, स्वेटर और साग-सब्जी का दान कर सकते हैं इससे भी विशेष पुण्य लाभ मिलता है।

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