Kushotpatni Amavasya: इस बार 14 सितंबर को भाद्रपद अमावस्या है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इसे कुशग्रहणी अमावस्या, कुशोत्पाटिनी, कुशोत्पाठिनी अमावस्या और पोला पिठोरा अमावस्या भी कहते हैं। इस अमावस्या का अन्य अमावस्याओं की अपेक्षा अधिक महत्व बताया गया है, क्योंकि इस दिन कालसर्प और पितृ दोष से संबंधित निवारण किया जाता है।
पिठोरी अमावस्या पर पितृ तर्पण कैसे करें?
1. पवित्र नदी में स्नान करने के बाद तट पर ही पितरों के नाम का तर्पण किया जाता है। इसके लिए पितरों को जौ, काला तिल और एक लाल फूल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खास मंत्र बोलते हुए जल अर्पित करना होता है।
2. सर्वप्रथम अपने पास शुद्ध जल, बैठने का आसन (कुशा का हो), बड़ी थाली या ताम्रण (ताम्बे की प्लेट), कच्चा दूध, गुलाब के फूल, फूल-माला, कुशा, सुपारी, जौ, काली तिल, जनेऊ आदि पास में रखे। आसन पर बैठकर तीन बार आचमन करें। ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम: बोलें।
3. आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़के अर्थात् पवित्र होवें, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका अंगुली में पहन कर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर निम्न संकल्प लें।
4. अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करें फिर बोले अथ् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये।।
5. इसके बाद थाली में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें। स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, जनेऊ को रखें। कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें, देवतीर्थ से अर्थात् दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण दें, इसी प्रकार ऋषियों को तर्पण दें।
6. अब उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके (माला जैसी) पहने एवं पालकी लगाकर बैठे एवं दोनों हथेलियों के बीच से जल गिराकर दिव्य मनुष्य को तर्पण दें। अंगुलियों से देवता और अंगूठे से पितरों को जल अर्पण किया जाता है।
7. इसके बाद दक्षिण मुख बैठकर, जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाए, थाली में काली तिल छोड़े फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरों का आह्वान करें- ॐ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम। फिर पितृ तीर्थ से अर्थात् अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तर्पण दें।
8. तर्पण करते वक्त अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह और परदादा को भी 3 बार जल दें। इसी प्रकार तीन पीढ़ियों का नाम लेकर जल दें। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।
9. जिनके नाम याद नहीं हो, तो रूद्र, विष्णु एवं ब्रह्मा जी का नाम उच्चारण कर लें। भगवान सूर्य को जल चढ़ाए। फिर कंडे पर गुड़-घी की धूप दें, धूप के बाद पांच भोग निकालें जो पंचबली कहलाती है।
10. इसके बाद हाथ में जल लेकर ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: बोलकर यह कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में छोड़ दें। इस कर्म से आपके पितृ बहुत प्रसन्न होंगे एवं मनोरथ पूर्ण करेंगे।
भाद्रपद अमावस्या के 5 अचूक उपाय:-
सूर्य को अर्घ्य दें : इस दिन सूर्योदय के समय उठकर किसी नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें और फिर बहते जल में तिल प्रवाहित करें।
पितृ शांत के उपाय : इस दिन किसी शुद्ध नदी के तट पर पितरों की आत्म शांति के लिए तर्पण या पिंडदान करने के बाद किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान दक्षिणा दें।
काल सर्पदोष निवारण : यदि आपकी कुंडली में काल सर्पदोष है तो इस दिन इस दोष का निवारण करने के लिए नागबलि पूजा करें या किसी पंडित से पूछकर उपाय करें।
पीपल पूजा : यदि आप तर्पण या पिंडदान नहीं कर सकते हैं तो किसी पीपल के पेड़ के नीचे जाकर सरसो के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों का स्मरण करके श्रीहरि विष्णुजी से प्रार्थना करें। पीपल की सात परिक्रमा लगाएं।
शनि दोष से मुक्ति के उपाय : अमावस्या का दिन शनि दोष से मुक्ति का भी दिन होता है। इसलिए इस दिन उनकी पूजा करना जरूरी है।