किसी समारोह अथवा यात्रा के दौरान जब मैं अपना परिचय एक ज्योतिषी के रूप में देता हूं तो बड़ी रोचक प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं। कुछ लोग ज्योतिष को अंधविश्वास बढ़ाने वाली ठग विद्या साबित करने के लिए कुतर्क करने लगते हैं, कुछ परीक्षक की भांति मेरे ज्ञान का परीक्षण करने लगते हैं, तो कुछ झट अपना हाथ बढ़ाकर या पास ही पड़े किसी कागज के पुर्जे पर अपनी कुंडली उकेरकर अपना भविष्य पूछने लग जाते हैं।
इस प्रकार का व्यवहार करने वाले महानुभावों से मेरा यही आग्रह है कि वे कृपया ज्योतिष को 'विंडो शॉपिंग' न समझें कि आप यूं ही बाजार में तफरीह के लिए गए और वहां निरुद्देश्य दुकानों पर ताक-झांक करते हुए कोई वस्तु पसंद आ गई और विक्रेता से मोलभाव जम गया तो खरीद ली अन्यथा आगे बढ़ गए। किसी भी ज्योतिषी से इस प्रकार का व्यवहार सर्वथा अनुचित है। हर कार्य की एक उचित प्रकिया होती है। उससे परे जाकर उस कार्य को करना उस कार्य का निरादर करना है।
यहां मुझे रामायण के रावण-वध का प्रसंग स्मरण आ रहा है। अब प्रभु श्रीराम ने अपने अनुज भ्राता लक्ष्मण को भूमि पर गिरे आसन्न मृत्यु की प्रतीक्षा करते हुए महापंडित रावण से उपदेश ग्रहण करने का आदेश दिया। श्रीराम के आदेश का पालन करते हुए लक्ष्मण उपदेश लेने हेतु रावण के सिर के पास जाकर खड़े हो गए।
तब रावण ने लक्ष्मण की ओर मुंह फेरते हुए कहा कि 'लक्ष्मण जब भी किसी से कुछ ग्रहण करने जाओ तो याचक की भांति जाना चाहिए।' तब लक्ष्मणजी रावण के पैर के पास जाकर खड़े हुए किंतु रावण ने मुंह फेरते हुए कहा कि 'जब भी किसी विद्वान से भेंट के लिए जाओ तो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।' यह सुनकर लक्ष्मणजी ने भूमि से एक तृण उठाकर रावण को भेंट किया, तब कहीं जाकर महापंडित रावण ने लक्ष्मण को उपदेश दिया।।
मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हर कार्य की एक मर्यादा होती है और उस मर्यादा का उल्लंघन कर उस कार्य को करना पाप के सदृश्य है।
-ज्योतिर्विद् पं हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
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साभार : ज्योतिष : एक रहस्य