Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

telepathy क्या है, जानिए टेलीपैथी का रहस्य, क्या सचमुच मिलता है भविष्य की घटनाओं का संकेत

हमें फॉलो करें telepathy क्या है, जानिए टेलीपैथी का रहस्य, क्या सचमुच मिलता है भविष्य की घटनाओं का संकेत
टेलीपैथी देती है भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत, जानें उसकी रहस्यमयी अनोखी दुनिया
 
भविष्य में होने वाली घटना का पहले से संकेत मिलना ही पूर्वाभास यानी टैलीपैथी है। आमतौर पर हमें प्रेजेंट की, अपने आसपास की घटनाओं की जानकारी होती है। फ्यूचर अथवा पूर्वजन्मों की घटनाओं का हमें ज्ञान नहीं होता है। परंतु, कभी-कभी हमारे के जीवन में कोई ना कोई ऐसी घटना घट जाती है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि इंसान में जरूर कोई विलक्षण शक्ति कार्य कर रही है, जो पास्ट, फ्यूचर अथवा प्रेजेंट में झांकने की 
क्षमता रखती है। 
 
कुछ लोगों में टैलीपैथी का विशिष्ट ज्ञान काफी विकसित होता है। सामान्यतः हम पांच ज्ञानेन्द्रियों (सेंसस) के जरिए वस्तु या दृश्यों का विवेचन कर पाते हैं, परंतु कभी-कभी या किसी में छठी इन्द्रिय जागृत हो जाती है। इस इन्द्रिय को विज्ञान ने अतीन्द्रिय ज्ञान (एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन) का नाम देते हुए अपनी बिरादरी में शामिल कर लिया है। दरअसल हम सबमें थोड़ी-बहुत टैलीपैथी होती है, लेकिन कुछ लोगों में यह इतनी स्ट्रांग होती है कि वह अपनों 
के साथ घटने वाली अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की घटनाओं को आसानी से जान लेते हैं।
 
इंसान की इस पूर्वाभास की शक्ति को पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने चार वर्गों में बांटा है :
 
परोक्ष दर्शन-
अर्थात वस्तुओं और घटनाओं की वह जानकारी, जो ज्ञान प्राप्ति के बिना ही उपलब्ध हो जाती है।
 
भविष्य ज्ञान- 
यानी बिना किसी मान्य आधार के भविष्य के गर्भ में झाँककर घटनाओं को घटित होने से पूर्व जान लेना।
 
भूतकालिक ज्ञान- 
बिना किसी साधन के अतीत की घटनाओं की जानकारी। 
 
टेलीपैथी- 
अर्थात बिना किसी आधार या यंत्र के अपने विचारों को दूसरे के पास पहुँचाना तथा दूसरों के विचार ग्रहण करना। इसके अलावा साइकोकाइनेसिस, सम्मोहन, साइकिक फोटोग्राफी आदि को भी परामनोविज्ञानियों ने अतीन्द्रिय शक्ति में शुमार किया है। 
 
विल्हेम वॉन लिवनीज नामक वैज्ञानिक का कहना है- 'हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह अपनी इंटियूशन पॉवर को जगाकर फ्यूचर को प्रेजेंट के दर्पण में देख ले।' केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के एक विद्वान एड्रियन डॉन्स ने फरमाया था, 'भविष्य में घटने वाली हलचलें वर्तमान में मानव मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंगें पैदा करती हैं, जिन्हें साइट्रॉनिक वेवफ्रंट कहा जा सकता है।
 
इन तरंगों के अहसास को मानव मस्तिष्क के न्यूरान्स पकड़ लेते हैं। इस प्रकार व्यक्ति भविष्य-कथन में सफल होता है। उनके मुताबिक मस्तिष्क की अल्फा तरंगों तथा साइट्रॉनिक तरंगों की आवृत्ति एक-सी होने के कारण सचेतन स्तर पर जागृत मस्तिष्क द्वारा ये तरंगें सहज ही ग्रहण की जा सकती हैं।  
 
डरहम यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड के गणितज्ञ डॉ. गेरहार्ट वांसरमैन का कथन है, 'मनुष्य को भविष्य का आभास इसलिए होता रहता है कि विभिन्न घटनाक्रम टाइमलेस (समय-सीमा से परे) मेंटल पैटर्न (चिंतन क्षेत्र) के रूप में विद्यमान रहते हैं। ब्रह्मांड का हर घटक इन घटनाक्रमों से जुड़ा होता है, चाहे वह जड़ हो अथवा चेतन।' 
 
'एक्सप्लोरिंग साइकिक फिनॉमिना बियांड मैटर' नामक अपनी चर्चित पुस्तक में डी-स्कॉट रोगो लिखते हैं, 'हमारी कल्पनाएँ तथा भावनाएं डिस्चार्ज ऑफ वाइटल फोर्स हैं। 
 
यही डिस्चार्ज अंतःकरण में कभी-कभी स्फुरणा यानी फीलिंग्स या विशेष अहसास बनकर प्रकट होते हैं। जब यह दो व्यक्तियों के बीच होता है तो टेलीपैथी कहा जाता है और यदि यह समय-सीमा से परे भविष्य की सूचना देता है तो इसका आधारभूत कारण कॉस्मिक अवेयरनेस यानी ब्राह्मी चेतना होता है।'
 
इस चेतना का जिक्र आइंस्टीन के सापेक्षवाद के सिद्धांत में मिलता है। उन्होंने लिखा है, 'यदि प्रकाश की गति से भी तीव्र गति वाला कोई तत्व हो तो वहां समय रुक जाएगा। दूसरे शब्दों में, वहां बीते कल, आज और आने वाले कल में कोई अंतर न रहेगा।' हालांकि अभी तक प्रामाणिक रूप से ऐसी कोई उपलब्धि वैज्ञानिकों को हासिल नहीं हो सकी है, जिसके आधार पर टेलीपैथी के रहस्यों से पूरा पर्दा उठ सकें।   

वास्तव में बगैर किसी उपकरण की मदद से लोगों से संपर्क करने की कला को ही टेलीपैथी कहते हैं। जरूरी नहीं कि हम किसी से संपर्क करें। हम दूरस्थ बैठे किसी भी व्यक्ति की वार्ता को सुन सकते हैं, देख सकते हैं और उसकी स्थिति को जान सकते हैं। इसीलिये टेलीपैथी को हिन्दी में दूरानुभूति कहते हैं।

टेलीपैथी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1882 में फैड्रिक डब्लू एच मायर्स ने किया था। कहते हैं कि जिस व्यक्ति में यह छठी ज्ञानेंद्रिय होती है वह जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है। यह परामनोविज्ञान का विषय है जिसमें टेलीपैथी के कई प्रकार बताए जाते हैं। 
 
'टेली' शब्द से ही टेलीफोन, टेलीविजन आदि शब्द बने हैं। ये सभी दूर के संदेश और चित्र को पकड़ने वाले यंत्र हैं। आदमी के मस्तिष्क में भी इस तरह की क्षमता होती है। कोई व्यक्ति जब किसी के मन की बात जान ले या दूर घट रही घटना को पकड़कर उसका वर्णन कर दे तो उसे पारेंद्रिय ज्ञान से संपन्न व्यक्ति कहा जाता है। महाभारतकाल में संजय के पास यह क्षमता थी। उन्होंने दूर चल रहे युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को कह सुनाया था।
 
भविष्य का आभास कर लेना भी टेलीपैथिक विद्या के अंतर्गत ही आता है। किसी को देखकर उसके मन की बात भांप लेने की शक्ति हासिल करना तो बहुत ही आसान है। चित्त को स्थित कर ध्यान से देखने और सुनने की क्षमता बढ़ाएंगे तो सामने वाले के मन की आवाज भी सुनाई देगी। इसके लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता है। 
 
दरअसल टेलीपैथी दो व्यक्तियों के बीच विचारों और भावनाओं के आदान-प्रदान को भी कहते हैं। इस विद्या में हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों का इस्तेमाल नहीं होता, यानी इसमें देखने, सुनने, सूंघने, छूने और चखने की शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया जाता। यह हमारे मन और मस्तिष्क की शक्ति होती है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

महाभारत के युद्ध में इन 3 लोगों ने बदल लिया था पाला