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महालक्ष्मी की आरती । Mahalaxmi Aarti

हमें फॉलो करें महालक्ष्मी की आरती । Mahalaxmi Aarti
, शनिवार, 4 नवंबर 2023 (16:41 IST)
Mahalaxmi Diwali Aarti: दिवाली पर्व के दिन और महालक्ष्मी के व्रत की पूजा के बाद महालक्ष्मी की आरती का महत्व रहता है। लक्ष्मी और महालक्ष्मी दोनों की ही आरती का प्रचलन है। यहां पढ़ें देवी महालक्ष्मी की हिंदी और मराठी आरती।
 
महालक्ष्मी हिंदी आरती | Mahalaxmi hindi Aarti
 
महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं सुरेश्र्वरी |
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
 
ॐ जय लक्ष्मी माता…
उमा ,रमा,ब्रम्हाणी, तुम जग की माता |
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥
 
ॐ जय लक्ष्मी माता…
दुर्गारुप निरंजन, सुख संपत्ति दाता |
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता ॥
 
ॐ जय लक्ष्मी माता…
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता |
कर्मप्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता ॥
 
ॐ जय लक्ष्मी माता…
जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद् गुण आता |
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता ॥
 
ॐ जय लक्ष्मी माता…
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता |
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥
 
ॐ जय लक्ष्मी माता…
शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरनिधि जाता|
रत्न चतुर्दश तुम बिन ,कोई नहीं पाता ॥
 
ॐ जय लक्ष्मी माता…
महालक्ष्मी जी की आरती ,जो कोई नर गाता |
उँर आंनद समा,पाप उतर जाता ॥
 
ॐ जय लक्ष्मी माता…
स्थिर चर जगत बचावै ,कर्म प्रेर ल्याता |
रामप्रताप मैया जी की शुभ दृष्टि पाता ॥
 
ॐ जय लक्ष्मी माता…
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता…
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महालक्ष्मी मराठी आरती | Mahalaxmi marathi Aarti 
 
जय देवी जय देवी जय महालक्ष्मी।
वससी व्यापकरुपे तू स्थूलसूक्ष्मी॥धृ॥
 
करविरपुरवासिनी सुरवरमुनिमाता
पुरहरवरदायिनी मुरहरप्रियकांता
कमलाकरें जठरी जन्मविला धाता 
सहस्त्रवदनी भूधर न पुरे गुण गाता ॥१॥
 
मातुलिंग गदा खेटक रविकिरणीं 
झळके हाटकवाटी पीयुषरसपाणी 
माणिकरसना सुरंगवसना मृगनयनी 
शशिकरवदना राजस मदनाची जननी ॥२॥
 
तारा शक्ति अगम्या शिवभजकां गौरी 
सांख्य म्हणती प्रकृती निर्गुण निर्धारी 
गायत्री निजबीजा निगमागम सारी 
प्रगटे पद्मावती निजधर्माचारी ॥३॥
 
अमृत भरिते सरिते अघदुरितें वारीं 
मारी दुर्घट असुरां भव दुस्तर तारीं 
वारी मायापटल प्रणमत परिवारी 
हे रुप चिद्रुप तद्रुप दावी निर्धारी ॥४॥
 
चतुरानने कुत्सित कर्माच्या ओळी 
लिहिल्या असतील माते माझे निजभाळी 
पुसोनि चरणातळी पदसुमने क्षाळी 
मुक्तेश्वर नागर क्षीरसागरबाळी ॥५॥
 
जय देवी जय देवी जय महालक्ष्मी।
वससी व्यापकरुपे तू स्थूलसूक्ष्मी॥

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