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शरीर से जोड़े अंतर स्वर मुद्रा योग

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

, शुक्रवार, 17 जून 2011 (14:26 IST)
शरीर के भीतर की आवाज या हरकत को पहचानने की शक्ति प्रदान करती है अंतर स्वर मुद्रा। व्यक्ति आधुनिक जीवन शैली में इतना व्यस्त है कि उसे अपने शरीर का भान नहीं रहता। यही वजह है कि रोग से ग्रस्त हो जाने के बाद ही उसे पता चलता है कि शरीर रोगी बन गया, जबकि अंतर स्वर मुद्रा का अभ्यस्त व्यक्ति रोग की पहचान रोग होने से पहले ही कर लेता है और संभल जाता है। 
 
अंतर स्वर मुद्रा की विधि- सर्व प्रथम किसी भी सुखासन में बैठकर अपनी दोनों आंखों को बंद कर लें। फिर अपने दोनों हाथों से अपने दोनों कानों को जोर से बंद करें जिससे की बाहर की कोई भी आवाज आपको सुनाई ना दें। कुछ देर बाद कानों में अजीब-सी सांय-सांय की आवाज गूंजने लगेगी। इसे ही अंतर स्वर मुद्रा कहते हैं।
 
समयावधि- अंतर स्वर मुद्रा को प्रतिदिन सुबह 15 मिनट और शाम को 15 मिनट तक कर सकते हैं। फिर धीरे-धीरे इस मुद्रा को करने का समय बढ़ाते जाएं।
 
इसका लाभ- इस मुद्रा को करने से व्यक्ति धीरे-धीरे शरीर की सूक्ष्म से सूक्ष्म आवाज और तरंगों को पहचानने लगता है। इसके माध्यम से साधक के शरीर में ऊर्जा शक्ति बढ़ने लगती हैं और वह निरोगी रहता है। यह मुद्रा पांचों इंद्रियों को शक्ति तथा मस्तिष्क को शांति प्रदान करती है।

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