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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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प्रदूषण क्या है?

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वर्तमान युग औद्योगिक विकास का युग है। संसार के सभी विकासशील देशों में हजारों लाखों फैक्टरियाँ दिन रात चलती रहती हैं। इन सब के प्रभाव से हमारा वातावरण दूषित हो गया है। जो वायु हमें सांस लेने के लिए चाहिए, वह शुद्ध नहीं रही। पानी और जमीन भी प्रदूषित हो गए हैं। वायु, पानी और जमीन का प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है।

वायु का प्रदूषण मुख्य रूप से मिलों से निकलने वाले धुएँ से होता है। सड़कों पर चलने वाली गाड़ियों में जलने वाले ईंधन से भी वायु दूषित हो जाती है। इन सबसे वायु में बहुत सी विषैली गैसें मिलती रहती हैं। यही गैसें सांस द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करती हैं, जिनसे स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

नए-नए रोगों को जन्म होता है। कार्बन-मोनोआक्साइड, नाइट्रोजन-डाइआक्साइड और सल्फर-डाइआक्साइड जैसी गैसें जो मोटरों के ईंधनों के जलन से पैदा होती हैं, वायु को विषैला बना देती हैं।

पानी का प्रदूषण मुख्य रूप से फैक्टरियों से निकलने वाले पदार्थों और मनुष्यों के मल-मूत्रों से होता है। बड़े-बड़े शहरों के गंदे नाले, नदियों में गिरते हैं, जिनसे पानी दूषित हो जाता है। इन मल पदार्थों से हजारों प्रकार के विषाणु और बैक्टीरिया पानी में पैदा हो जाते हैं।

यही पानी हम पीते हैं, तो अनेकों रोगों का आक्रमण हमारे ऊपर होता है। अनाजों की सुरक्षा के लिए जो हम अनेकों कीटाणु विनाशक औषधियाँ प्रयोग में लाते हैं, उनसे अनाज दूषित हो जाता है। इन अनाजों को बिना धोए खाने से स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता हैं।

हजारों प्रकार के रसायन और कीटाणु विनाशक औषधियोंके छिड़कने से जमीन का प्रदूषण होता है। बढ़ती हुई आबादी द्वारा जो व्यर्थ के पदार्थ गलियों और सड़कों पर फेंक दिए जाते हैं, उनसे हजारों प्रकार के रोग फैलाने वाले कीटाणु पैदा होते हैं। सड़कों के किनारे लगे कूड़े-करकट के ढेर अनेकों रोगों को जन्म देते हैं।

चलती गाड़ियों और मिलों से पैदा होने वाला शोर भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। तरह-तरह के विकिरण जो हमें दिखाई नहीं देते, परमाणु युग की देन हैं। ये रेडियो विकिरण स्वास्थ्य के लिए बहुत ही घातक हैं। परमाणु शस्त्रों के परीक्षण से इन विकिरणों की मात्रा नि प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

सभी देशों के वैज्ञानिक आज ऐसे उपाय खोजने में लगे हुए हैं, जिनको प्रयोग में लाकर जल, वायु, जमीन आदि का प्रदूषण कम किया जा सके। आज ऐसे तरीके विकसित किए जा रहे हैं, जिनके द्वारा मिलों से निकलने वाले धुएँ को कम किया जा सके।

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