कई लोग भारत की विश्वकप जीत को तुक्का मानते हैं। नए नवेले कप्तान कपिल देव की अगुआई में भारतीय टीम ने वो कर दिखाया जो विश्वकप के पहले किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। कपिल ने कप्तान बनते ही टीम का नजरिया ही बदल दिया।
टीम विश्वकप शुरू होते ही एक बेहतरीन टीम बन गई। यह कपिल का ही जादू था जो पूरे विश्वकप में चला और हर खिलाड़ी ने चाहे वह यशपाल हो य मोहिंदर अमरनाथ ने अपेक्षा से कहीं बढ़कर प्रदर्शन किया।
अगर इस सबके बावजूद भारतीय टीम की 1983 की जीत को तुक्का माना जाए तो यह बेमानी होगी। असल में वह तुक्का जीत नहीं बल्कि खूंखार टीम की एक दमदार जीत थी।
साथ ही ऐसा नहीं है कि विश्वकप फाइनल के पहले भारत ने विंडीज को हराया नहीं था। उस सीजन में भारत ने वेस्टइंडीज को तीन बार पटखनी दी थी। भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 118 रनों से हराकर विश्वकप के सेमीफाइनल में पहली बार प्रवेश किया।
सेमीफाइनल में भारत का मुकाबला इंग्लैंड से हुआ। इंग्लैंड के बल्लेबाज भारतीय गेंदबाजों के सामने आत्मसमर्पण करते नजर आए। भारत ने यह मैच 6 विकेट से जीतते हुए फाइनल में प्रवेश किया।
फाइनल में पहुंच कर इसी भारतीय टीम ने क्लाइव लॉयड की टीम को एक बार फिर समुद्र की छोटी मछली साबित किया और लीग मैच की ही तरह वेस्टइंडीज को फाइनल में हराकर विश्वकप फाइनल अपने नाम किया।